मई(बटेश्वर) रविवार की सुबह के पौने 12 बजे थे जब यहां एक इतिहास रचा गया। कमांडर इन चीफ गेंदालाल दीक्षित शीर्षित पुस्तक का विमोचन उनके उस जन्म स्थल पर उनके तीसरी पीढ़ी के परिजनों के कर कमलों से किया गया। इस पुस्तक को चम्बल फाउंडेशन के द्वारा प्रकाशित किया गया है। जिसको लिखा है दस्तवेजी लेखक शाह आलम ने। बताते हैं इस पुस्तक को फ़िल्म के लिए भी चुना गया है। शिफा और आजाद के लिए ….. कि वे बड़े होने के बाद जब इस तहरीर को पढ़ेंगे, तब समझ सकेंगे कि उनके पुरखों ने किस तरह अंग्रजी शासन के बेपनाह जुल्म सहे थे, किस तरह मातृभूमि के लिए बलिदान सहे गए थे और कुर्बानियों की अंतहीन कथाओं में अपने पुरखों के इंकलाबी रक्त की खुशबू भी महसूस कर सकेंगे।”
पंक्तियों को गवाही के रूप में परिजनों ने विमोचित पुस्तक का पहला सफा खोलकर पढ़ा वैसे ही गेंदालाल दीक्षित जिंदाबाद अमर रहे क्रांति अमर रहे के नारे लगे।
विमोचन मंच था मई गांव का उस घर का हिस्सा जहां उनका जन्म हुआ था। बरगद का पेड़ तीसरे नम्बर के अशोक , व पंचवा पवन व शेष तीन पेड़ भी उनके परिजनों ने रोपित किये । मंच पर लेखक शाह आलम , शंकर देव तिवारी, जितेंद्र सिंह, नरेंद्र भरतीय बबलू भारतीय , गौरव शर्मा , अनु वशिष्ठ , डाक्टर वीपी मिश्रा, रमेश कटारा के साथ दीक्षित परिवार के सदस्य भी मौजूद थे।
इस समय कुल 11 वृक्ष रोपित हुए। इस समय संक्षिप्त संगोष्ठी की अध्यक्षता डॉक्टर वी पी मिश्र ने व संचालन रमेश कटारा ने किया । मुख्य वक्ता के रूप में शंकर देव तिवारी ने कहा कि अब आजादी की लड़ाईं की कहानी लिखना चुनौती है। जिस चुनौती को शाह आलम ने बखूबी स्वीकारा है। यह किताब देश में एक साथ नई पीढ़ी को सन्देश देगी ।
शाह आलम ने इस समय किताब के लिए मेटर कैसे एक एक पैरा पेज बना की जानकारी दी।
गोष्ठी में शाह आलम, शंकर देव तिवारी, भगवती प्रसाद मिश्र, रमेशचंद्र कटारा इंडिया, इं. राज त्रिपाठी, डॉ कमल कुशवाहा, रंजीत सिंह, विनोद सिंह गौतम, बटेश्वर हैल्पिंग हैंड्स, टीम भारतीय व उनके परिवारीजन महेश दीक्षित, विजेंद्र दीक्षित, रामजी दीक्षित,कमल दीक्षित आदि मौजूद रहे।