ब्राह्मणों की नाराजगी, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नये कृषि अधिनियमों के खिलाफ किसानों के जबरदस्त असंतोष और हाथरस में दलित किशोरी की रेप के बाद हत्या जैसे सुलगते मुद्दों के बीच उत्तर प्रदेश सरकार के लिए सर्वथा प्रतिकूल परिस्थितियों में हुए सात विधानसभा क्षेत्रो के उपचुनावों में सत्तारूढ़ पार्टी को मिली शानदार कामयाबी ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का आत्मविश्वास बढ़ा दिया है। इन उपचुनावों के लिए विपक्ष के बीच एकता नहीं बन सकी। बसपा उसूल तोड़कर सभी सात क्षेत्रों में उपचुनाव के मैदान में कूदी। कांग्रेस को प्रियंका गांधी की लगातार सक्रियता से बने माहौल में कोई बटेर हाथ लग जाने की उम्मीद रही होगी तो वह नाकाम साबित हुई। अलबत्ता कांग्रेस को इस पर संतोष हो सकता है कि दो निर्वाचन क्षेत्रों में उसके उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे। भीम आर्मी के चन्द्रशेखर ने भी बुलंदशहर में जोर आजमाइश की लेकिन वे कोई गुल नहीं खिला सके। उधर समाजवादी पार्टी को चैधरी अजीत सिंह के राष्ट्रीय लोकदल से गठबंधन का कोई सुफल नहीं मिल सका। बुलंदशहर सदर की सीट पर खुद रालोद उम्मीदवार की जमानत जब्त हो गई उसे चन्द्रशेखर की आजाद समाजपार्टी के उम्मीदवार से भी बहुत कम वोट मिले। उधर सपा को उसके लिए एक सीट छोड़ने के बदले में फिरोजाबाद की टूंडला और अमरोहा की नौगांव सादात सीट पर रालोद से मदद की उम्मीद थी जो निष्फल हो गई। बहरहाल सपा ने अपनी जौनपुर की मल्हना सीट बचा ली। कुल मिलाकर उपचुनावों का निष्कर्ष यह रहा कि फिलहाल भाजपा अपराजेय तो है ही उसके सामने कोई एक दल चुनौती देने वाला भी नहीं उभर पा रहा है जबकि सपा के नाम पर कयास लगाये जा रहे थे जो छह में से तीन सीटों पर दूसरे नम्बर पर भी नहीं रह सकी।
कहां-कहां हुए उपचुनाव-
जिन सात सीटों पर उपचुनाव हुए उनमें अमरौहा की नौगांव सादात सीट कैबिनेट मंत्री चेतन चैहान और कानपुर की घाटमपुर सुरक्षित सीट एक और कैबिनेट मंत्री कमलारानी वरूण के कोरोना से निधन के कारण रिक्त हुई थी। फिरोजाबाद की टूंडला सुरक्षित सीट के भाजपा विधायक एसपी सिंह बघेल ने सांसद चुने जाने के बाद इस्तीफा दे दिया था और उन्नाव जिले की बांगरमऊ विधानसभा सीट के भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की सदस्यता रेप के मामले में चली गई थी। बुलंदशहर सदर सीट के भाजपा विधायक बीरेन्द्र सिंह सिरोही जो कि पार्टी विधायक दल के मुख्य सचेतक भी थे। देवरिया सदर के भाजपा विधायक जन्मेजय सिंह और जौनपुर की मल्हनी सीट के सपा विधायक पारसनाथ यादव का भी देहांत हो गया था।
सभी दलों ने अपने अनुरूप जातिगत समीकरणों को देखकर बांटे टिकट-
प्रत्याशियों के चयन में सभी दलों ने अपने माफिक के जातिगत संतुलन को ध्यान में रखकर काम किया। भाजपा ने दो ठाकुर, दो दलित, एक ब्राह्मण और कुर्मी प्रत्याशी पर दाव लगाया। समाजवादी पार्टी ने एक मुस्लिम, एक ब्राह्मण, एक यादव, एक अन्य ओबीसी व दो दलित उम्मीदवार मैदान में उतारे जबकि एक सीट उसने रालोद को छोड़ दी थी। कांग्रेस ने मुख्य रूप से ब्राह्मण कार्ड खेला जिसके कामयाब होने की उसे बेहद उम्मीद थी। उसने तीन ब्राह्मण प्र्रत्याशी बनाये। बसपा ने मुस्लिमों को प्राथमिकता दी और दो मुसलमान उम्मीदवार बनाये। चन्द्रशेखर की पार्टी ने भी दलित मुस्लिम समीकरण को आगे बढ़ाने के लिए मुस्लिम उम्मीदवार लड़ाया। सातों क्षेत्रों में कुल 88 उम्मीदवार मैदान में रहे जिनमें सबसे ज्यादा दस बांगरमऊ में थे जबकि घाटमपुर सीट पर सबसे कम छह उम्मीदवारों ने ही चुनाव लड़ा।
कांग्रेस का महिला कार्ड-
हाथरस मामले में कांग्रेस बेहद सक्रिय रही। प्रियंका गांधी और राहुल गांधी दोनों हाथरस गये। इस मामले में महिलाओं के समर्थन को कैश कराने के लिए पार्टी ने बांगरमऊ और टूंडला दो स्थानों पर महिला प्रत्याशी बनाये। भाजपा ने भी सहानुभूति कार्ड खेलने के लिए दो महिलाओं को उम्मीदवार बनाया। इसमें नौगांव सादात सीट से दिवंगत मंत्री चेतन चैहान की पत्नी संगीता चैहान और बुलंदशहर से बीरेन्द्र सिंह सिरोही की पत्नी ऊषा सिंह शामिल हैं। उन्नाव की बांगरमऊ सीट पर पूर्व गृहमंत्री स्व0 गोपीनाथ दीक्षित के परिवार की बहू अर्चना वाजपेयी को कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाया था। वे चुनाव तो नहीं जीत सकी लेकिन दूसरे नम्बर पर रहकर उन्होंने कांग्रेस की इज्जत बचा ली। बसपा केवल बुलंदशहर सदर सीट पर दूसरे नम्बर पर रही जहां पार्टी ने हाजी युनूस को उम्मीदवार बनाया था। इस सीट पर भाजपा की ऊषा सिरोही को 86 हजार 879, हाजी युनूस को 65 हजार 917 जबकि तीसरे नम्बर पर चन्द्रशेखर की आजाद समाज पार्टी के मो0 यामीन को महज 13 हजार 402 मत मिले। जौनपुर की मल्हनी सीट पर निर्दलीय धनंजय सिंह दूसरे स्थान पर रहे।
ये हैं विजयी उम्मीदवार-
घाटमपुर से उपेन्द्र पासवान (भाजपा), नौगांव सादात से संगीता चैहान (भाजपा), बुलंदशहर से ऊषा सिरोही (भाजपा), टूंडला सुरक्षित से प्रेमपाल सिंह धनगर (भाजपा), बांगरमऊ से श्रीकांत कटियार (भाजपा), देवरिया सदर से डा0 सत्यप्रकाश मणि त्रिपाठी (भाजपा) और मल्हनी से लकी यादव (सपा)। देवरिया सदर सीट से भाजपा से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़े अजय सिंह पिंटू ने 19 हजार 526 वोट बटोरे लेकिन वे भाजपा की जीत की राह नहीं रोक पाये।
उपचुनाव के बाद पार्टियों ने बदले पैंतरे-
उपचुनाव के परिणामों से सबक लेकर बसपा ने अपने मुस्लिम प्रदेश अध्यक्ष को हटा दिया तो कांग्रेस ने तय किया कि फिलहाल आंदोलनों में उलझने की वजाय ब्लाक स्तर तक संगठन को मजबूत करने की कवायद की जायेगी। समाजवादी पार्टी की स्थिति भी उपचुनावों में कोई बेहतर नहीं रही लेकिन वह इस बात से आश्वस्त है कि यादवों के अलावा विकल्प के अभाव में मुस्लिम और एन्टी इनकाम्बेंसी प्रभावित वोटर अंततोगत्वा एकमुस्त उसकी ओर मुखातिब होंगे। पिछड़ों में भी राज्य सरकार की नीतियों से भाजपा के प्रति मोहभंग की आशा उसे प्रोत्साहित किये हुए है साथ ही मायावती के दिशाहीन फैसलों से खिन्न दलितों के एक वर्ग के अपनी ओर आकर्षित होने का सपना भी समाजवादी पार्टी संजोये हुए है।
उधर भविष्य में प्रधानमंत्री पद के दावेदार समझे जा रहे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ग्राफ उपचुनावों के परिणामों ने न केवल संभाल दिया है बल्कि बहुत ऊपर चढ़ा दिया है। जबकि इसके पहले उनकी आलोचना बढ़ने लगी थी। योगी आदित्यनाथ भी इसे महसूस करके निद्र्वंद हो गये हैं जो उनके फैसले करने की रफ्तार से झलक रहा है। खाली पड़े पदों पर तेजी से भर्तियां शुरू हो गई हैं, बदमाशों के एनकाउंटर और माफियाओं की संपत्ति जब्ती भी धड़ल्ले से हो रही है, रोजमर्रा की परेशानियों से जूझ रहे आम आदमी की समस्याओं के निदान के लिए भी मुख्यमंत्री ने सरकारी तंत्र के पेंच कस दिये हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि मुख्यमंत्री अब सारे दबावों से मुक्त होकर अपने मुताबिक फैसले लेने में समर्थ दिखने लगे हैं।
उपचुनाव परिणामों से मुख्यमंत्री योगी के हौसले बुलंद
