जालौन जिले के रहने वाले यूपी पैरा क्रिकेट टीम के कप्तान की दुर्दशा की कहानी दुखद है। इनका नाम है राजाबाबू। इनके पिता रेलवे में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे। सन 1977 में सात साल की उम्र में ट्रेन की चपेट में आने से राजाबाबू का बांया पैर कट गया। अपने दोस्तों के साथ उन्होंने एक पैर से क्रिकेट खेलना शुरू किया और धीरे-धीरे क्रिकेट के प्रति उनका जुनून बढ़ता गया।
हालांकि परिजनों और दूसरे लोगों ने उनके पैर को देखते हुए उन्हें खेलने से रोका लेकिन अपने जोश और जज्बे के दम पर राजाबाबू ने खुद को एक पैर से खेलने में सक्षम बनाया। 2013 तक वह क्लब स्तर पर सामान्य क्रिकेट ही खेलते थे। इसी बीच बिजनौर में एक टूर्नामेंट के दौरान उनकी मुलाकात दिव्यांग स्पोर्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष अमित कुमार शर्मा से हुई।
इसके बाद उन्होंने सामान्य क्रिकेट को छोड़कर दिव्यांग क्रिकेट पर फोकस किया। अमित जो खुद दिव्यांग हैं उन्होंने राजा को काफी प्रोत्साहित किया। इसके बाद लगातार दिव्यांग क्रिकेट में उन्होंने बेहतर खेल दिखाया और हौंसले के बूते डिसेबल्ड क्रिकेट एसोसिएशन से मान्यता प्राप्त यूपी टीम के कप्तान बन गये। वर्तमान में भी वे दिव्यांग क्रिकेट टीम के प्रदेश की टीम के कप्तान हैं। इंडियन डिसेबल्ड प्रीमियर लीग भी खेल चुके हैं।
फिर भी सरकार की नजरें इस होनकार दिव्यांग खिलाड़ी पर इनायत नहीं हो पा रही है। उन्हें आजीविका के लिए भटकना पड़ रहा है। पहले उन्होंने जूते बनाये और फिर लाॅकडाउन में ई-रिक्शा चलाया। बैट्री खराब होने से उनका ई-रिक्शा अब ठप हो गया है और वे मुश्किल में हैं।
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