आरएसएस के मंसूबे सर्वसत्तावादी हैं। इसके लिये संघ ने चरणबद्ध ढंग से काम किया । एक समय सघ के राजनीतिक मुखौटे भाजपा को सभी दलों ने अछूत घेाषित कर रक्खा था जिससे संघ को पैर पसारना दुश्वार रहा । अटल जी को भाजपा में कांग्रेस नेता कहा जाता था जो अन्यथा नहीं था लेकिन राजनीतिक अछूत के दाग से उबरने के लिये सघ को भाजपा में अटल जी की गरज थी इसलिये संघ ने उनके इस्तेमाल से परहेज नहीं किया । अटल जी ने संघ की आलोचना में जनता पार्टी के समय अखबार में एक लेख भी लिखा तो भी संघ ने उन्हें नहीं छोडा । सघ उनके माध्यम से सबसे पहले सत्ता की सीढिया चढ सका । लेकिन अटल जी को गठबन्धन सरकार चलानी पडी इसलिये उनके युग में अपने एजेण्डे को लागू करने के लिये संघ ने कोई अधीरता नहीं दिखाई । पर मोदी अमित शाह युग में स्थितिया बदल चुकी है। संघ के ये दोनो धनुधर््ार बहुत ही मुस्तैदी के साथ उसके सर्वसत्तावाद का विस्तार करने में जुटे है ताकि हिन्दू राष्ट्र के रूप में देश का संचालन करने में कोई रूकावट न रहे ।
बिहार मे राजग की सरकार के अन्दर जो उठा पटक सामने आ रही है उसे इसी संदर्भ में देखना चाहिये। भाजपा शिवसेना से लेकर अकाली दल तक लगभग सारे सहयोगी दलों से पिण्ड छुडा चुकी है क्योंकि केन्द्र वह पूर्ण बहुमत में है। उस ेअब केन्द्र की सरकार चलाने के लिये गठबंधन की बैशाखियों की कोई जरूरत नहीं रह गयी है। इस क्रम में अब उसे नीतिश कुमार को लादे रखना रास नहीं आ रहा है। सुशील मोदी का बिहार से राज्य सभा में भेजकर जलावतन इसीलिये किया गया । सुशील मोदी के नीतिश कुमार से ज्यादा गहरे सम्बन्ध बन गये थे जो अमित शाह को गवारा नहीं था ।
अब अरूणांचल प्रदेश में भाजपा ने सहयोगी दल होते हुये भी जदयू के आधा दर्जन विधायक तोड लिये । अमित शाह का मकसद इस पैतरे से नीतिश कुमार को राजग से अलग होने के लिये उकसाना है हालांकि नीतिश कुमार भी ठण्डा करके खाने वाले नेता माने जाते है इसलिये तिलमिला जाने के बाबजूद अभी उन्होने अपने को संयत रक्खा है। उनके खास लेफ्टीनेन्ट केसी त्यागी ने भाजपा की कार्रवाई को गठबंधन धर्म के प्रतिकूल बताया । दूसरी ओर नीतिश कुमार ने कहा कि वे मुख्यमंत्री बनने के बहुत उत्सुक नहीं थे लेकिन भाजपा ने ही उनसे आग्रह किया । मकसद भाजपा को यह संदेश देना है कि वे मुख्यमंत्री बने रहने के बहुत लालायित नहीं है इसलिये उन्हें बेआबरू करने की कोशिश से भाजपा बाज आये तो ही अच्छा होगा ।
इसके अलावा केसी त्यागी ने भाजपा के लव जिहाद विरोधी अभियान का भी कडा प्रतिवाद किया ताकि उसे दबाव में लिया जा सके । दूसरी ओर नीतिश कुमार ने कहा कि वे मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी की व्यस्तताओं के कारण पार्टी के लिये समय नहीं दे पा रहे है जबकि पार्टी को एक पूर्णकालिक अध्यक्ष की आवश्यकता है। यह कहते हुये उन्होने सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी आरसीपी सिंह को जदयू का पूर्णकालिक अध्यक्ष नियुक्त कर दिया है जिस पर सभी को हैरानी है। उनके पास अध्यक्ष बनाने के लिये जगदानन्द सिंह और केसी त्यागी के रूप में बेहतर विकल्प थे पर उन्होने आरसीपी सिंह को चुना जिनकी कोई राजनीतिक हैसियत नहीं है इसलिये प्रथम दृष्टया नीतिश कुमार पर आरोप लग रहा है कि वे भी जातिवादी राजनीति पर उतर आये है। वरिष्ठ साथियों को छोडकर अध्यक्ष के लिये उन्होने आरसीपी सिंह का चुनाव इसलिये किया क्योंकि आरसीपी सिंह उनके सजातीय कुर्मी है।
पर शायद ऐसा नहीं है । दरअसल उन्होंने आरसीपी सिंह के माध्यम से दूर का निशाना साधा है। आरसीपी सिंह के भाजपा नेताओं और खासकर अमित शाह से बहुत अच्छे सम्बन्ध है। इसलिये उनके माध्यम से भाजपा के साथ सम्वाद का पुल नीतिश कुमार बनाये रखना चाहते है। यह दूसरी बात है कि वे चाहे या न चाहे पर भाजपा उनसे पल्ला झाडकर रहेगी ।
उधर राष्ट्रीय जनता दल की भी इस पूरे घटना क्रम पर पेनी निगाह है। नीतिश के भाजपा से बिगडते सम्बन्धों के मददे नजर राजग द्वारा उनके प्रति नरम रूख अपनाया जा रहा है। राजद की ओर से नीतिश कुमार पर इसीलिये अभी कोई तीखा प्रहार नहीं हुआ है। राजद के वरिष्ठ नेता शिवानन्द तिवारी ने समाजवादी परिवार की वृहद एकता की दुहाई देकर नीतिश पर कमंद फेंकी है लेकिन नीतिश अभी भाजपा से झगडा नहीं चाहते ।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि नीतिश कुमार ने अभी ऐसा कुछ नहीं किया जिससे भाजपा से अलग होने के बाद लोग उन्हें चुनना पसन्द करें। बल्कि फिलहाल जदयू की प्रासगिकता पर प्रश्न चिन्ह है। नीतिश कुमार ने अपर कास्ट और अति पिछडा अति दलित का समीकरण बनाया था लेकिन उनके पास से अपर कास्ट छिटक कर भाजपा की झोली में जा चुका है। जहां तक अतिपिछडा कार्ड का सम्बन्ध है वह भाजपा के लिये ही मुफीद साबित होगा क्योंकि पिछडे वर्ग में नीतिश कुमार द्वारा डाली गयी दरार से भाजपा को अपने मुख्य प्रतिद्वन्दी राजद से पार पाने में सहूलियत होगी । बहरहाल नीतिश कुमार के प्रति भाजपा के बर्ताव से उसकी नीयत खुलकर सामने आ गयी है। सर्वसत्ता स्थापित करने के लिये हर सहयोगी की बलि चढाना भाजपा की फितरत में शामिल हो गया है।