अपने छोटे बेटे के विवाह का निमंत्रण देने पहुंचे देश के शीर्ष उद्योगपति मुकेश अंबानी से लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी का न मिलना चर्चा का विषय बना हुआ है। बताया जाता है कि जब मुकेश अंबानी का यह संदेश उनके पास आया कि वे आ रहे हैं उस समय राहुल गांधी अपने आवास पर ही मौजूद थे लेकिन इसके बाद वे आवास से चले गये और उन्होंने रेलवे के लोको पायलटों के साथ संवाद किया जिसके वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुए। राहुल गांधी कभी-कभी अपने मुद्दों को लेकर कट्टर प्रतिबद्धता दिखाने के लिए उग्र हो जाते हैं लेकिन किसी ने यह नहीं कहा कि वे ऐसे समय भी भद्दता का ध्यान न रखते हों। इस कारण यह तो नहीं कहा जा सकता कि राहुल गांधी ने मुकेश अंबानी के प्रति उन्हें जलील करने की भावना दिखानी चाही हो लेकिन जिस तरह से उन्होंने पिछली लोकसभा में सदन के भीतर और बाहर भी अदाणी अंबानी से संबंधों को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर प्रहार किये थे और उन्हें ज्यादा से ज्यादा फायदा पहुंचाने के लिए काम करने का आरोप लगाया था उनके मद्देनजर राहुल को लगा होगा कि नैतिकता के नाते उनका मुकेश अंबानी से मिलना और फिर उनका निमंत्रण स्वीकार कर उनके बेटे की शादी के अवसर पर उपस्थिति देने के लिए बंध जाना कहीं से उचित नहीं कहा जायेगा। उन्होंने शिष्टाचार के चक्कर में मुकेश अंबानी के साथ संबंध निभाने की गलती कर दी तो जनता के बीच बुरा संदेश जाने से राजनीतिक तौर पर बड़ा संदेश जायेगा। राहुल गांधी तेलंगाना के एक प्रचार विशेषज्ञ की सलाह पर काम कर रहे हैं जिन्होंने उन्हें काफी राजनैतिक सफलतायें दिलायी हैं और उनके डूबते कैरियर को बचाकर उन्हें बढ़त हासिल करने की ओर अग्रसर कर दिया है। इसलिए वे अपने इस प्रोफेशनल सलाहकार पर बहुत भरोसा करने लगे हैं और शायद उनका भी मशविरा यह रहा कि प्रधानमंत्री पर अपने दो उद्योगपति मित्रों के लिए अपनी सरकार चलाने के लगातार आरोप मढ़कर जो स्थिति बना ली है उसे कायम रखने के लिए जरूरी है कि वे अंबानी और अदाणी के साथ सार्वजनिक रूप से कोई रिश्ता बनाते हुए फिलहाल कहीं न दिखें।
अंबानी और अदाणी पर मेहरबानी का मोदी पर उनका आरोप अत्यंत मारक शस्त्र बन चुका है। यह समझ में आने के कारण ही हाल के लोकसभा चुनाव में इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी ने आपा खोने की चूक कर दी थी और इस भावावेश में उन्होंने राहुल गांधी पर जो जबावी हमला किया था वह बूंमरिंग कर गया था। मोदी ने यह कहा था कि राहुल गांधी वैल्थ क्रियेटरों पर हमला करके राष्ट्रीय हितों के साथ बड़ा खिलवाड़ कर रहे हैं। मोदी भूल गये थे कि जनसाधारण में रईसों के प्रति रंजिश की भावना रहती है। उनके बयान से ऐसा लगा कि रईसों को राहुल गांधी द्वारा घेरे जाने से उन्हें बहुत दर्द हो रहा है जिसे लोगों ने पसंद नहीं किया और चुनाव परिणामों में उनकी पार्टी के पिछड़ने का एक कारण उनका यह बयान भी रहा। जनता के मनोविज्ञान को पहचानने वाले नेता के द्वारा ऐसी गफलत का शिकार होने की उम्मीद नहीं की जाती थी।
पश्चिम के प्रसिद्ध विचारक रूसो का यह कथन बहुत उद्धृत किया जाता है कि हर धन संचय के पीछे कोई न कोई अपराध होता है। काफी हद तक उसका यह कथन प्रमाणित है। हालांकि अपवाद हर नियम के होते हैं लेकिन ऐसा भी नहीं है कि अर्थ को सदैव निंदा की दृष्टि से देखा जाना चाहिए। हिन्दू अध्यात्म ने चार तरह के पुरूषार्थ वर्णित हैं जिनमें अर्थ भी शामिल है। सनातन धर्म के मनीषियों ने समाज के विकास में अर्थ की रचनात्मक भूमिका का पहलू भी देखा था इसलिए उन्होंने यह स्थापनायें व्यक्त की थी। भारत के ही संदर्भ में ले तो राष्ट्र के नव निर्माण में टाटा और बिरला जैसे उद्योगपतियों के योगदान का उल्लेख छोड़ा नहीं जा सकता पर क्या अंबानी और अदाणी ऐसे उद्योगपतियों की श्रेणी में आते हैं।
अंबानी और अदाणी ने उद्यम की किसी प्रतिभा से नहीं बल्कि देखा जाये तो सरकार में बैठे लोगों के सहयोग से की गई ठगी के जरिये अपनी हैसियत बनाई है जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र और सरकारी खजाने को बड़ी चोट झेलनी पड़ी है। ऐसा नहीं है कि क्रोनी कैपटिलिज्म के इन अवतारों का प्रकटन अचानक मोदी युग में ही हुआ हो। कांग्रेस ने क्रोनी कैपटिलिज्म को पोषित करने में कम योगदान नहीं दिया। धीरूभाई अंबानी कांग्रेस सरकार की कृपा से ही उद्योग जगत में इतनी ऊंचाई पर पहुंचे थें। दुर्लभ रेयान के आयात के मामले में नुस्ली वाडिया के मुकाबले उन्होंने कांग्रेस पार्टी के तमाम खर्चे उठाकर स्वयं वरीयता हासिल की जिसमें नियमों के विरूद्ध कार्य हुआ था और राजीव गांधी व वीपी सिंह के बीच दूरियां इसी मसले के कारण बनना शुरू हुई। वीपी सिंह जब वित्त मंत्री थे तो उन्होंने कालेधन का पता लगाने के लिए आर्थिक अपराधों की विश्वसनीय जानकारी देने वाली विश्व की तत्कालीन सबसे बड़ी कंपनी फेयर फैक्स की सेवायें खरीदी तो पता चला कि टैक्स चोरी से सबसे ज्यादा कमाई करने वाला तो अंबानी ही है इस पर उन्होंने धीरूभाई अंबानी की मुश्कैं कसनी चाही। घबराये धीरूभाई राजीव गांधी के शरणागत हुए। राजीव गांधी धीरूभाई अंबानी से इस कदर अनुग्रहीत थे कि वे वीपी सिंह की इस हरकत से तमतमा गये और उनसे वित्त मंत्रालय छीनकर उन्हें रक्षा मंत्रालय में स्थानान्तरित कर दिया लेकिन रक्षा मंत्रालय में पहुंचकर वीपी सिंह ने आर्मी के सौंदों के दलालों की नाक में नकेल डालनी शुरू कर दी। राजीव गांधी इस मोर्चे पर भी उन्हें नहीं झेल पाये और इसके बाद क्या हुआ यह इतिहास में दर्ज है।
धीरूभाई अंबानी को कांग्रेस ने इतना शक्तिशाली बना दिया था कि देश में सरकार बनाने का अधिकार तक उनके हाथ में आ गया। देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य था जब उन्होंने सांसदों को खरीदकर चन्द्रशेखर का राजतिलक कराया। उद्योगपति की अनुचर सरकार की नौबत किसी भी लोकतंत्र के पतन की पराकाष्ठा है। नरसिंहाराव की सरकार में भी तमाम फैसलों में धीरूभाई अंबानी की चलती थी। इस दौरान अंबानी ग्रुप ने देश की प्रगति में रचनात्मक भूमिका निभाने की बजाय अपनी कृपापात्र सरकारों की गर्दन दवाकर टेलीकाम सेवा के घोटाले किये और हैसियत के मामले में शिखर पर चढ़ने की दौड़ लगाने का अवसर हासिल किया। अदाणी को सरकार की कृपा गुजरात में नरेन्द्र मोदी के माध्यम से मिली। यह उनकी शुरूआत थी। नरेन्द्र मोदी ने मुख्यमंत्री रहते हुए उन्हें सिर्फ एक रूपये की लीज पर हजारों एकड़ जमीन उपलब्ध कराई और टैक्स में छूट, रियायती दर पर भरपूर बजट आदि के जरिये नियमों के दायरे से बाहर जाकर मदद पहुंचायी। नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद तो अंबानी और अदाणी की पांचों अंगुलियां घी में और सिर्फ कढ़ाई में पहुंच गया। अदाणी की तो रियायती दर पर इतना ज्यादा सरकारी ऋण उपलब्ध कराया गया जितनी उनके पास कुल पूंजी नहीं है। इसके अलावा अदाणी और अंबानी का न जाने कितना कर्जा माफ कर दिया गया। सार्वजनिक क्षेत्र की अति संपन्न कंपनियां उनके हवाले बिना किसी प्रतिस्पर्धा के कर दी गई। यहां तक कि उनके माल को दुनिया भर में बिकवाने के लिए प्रधानमंत्री अपने दबाव का प्रयोग भी करने से नहीं चूकते जो खुलकर सामने आ चुका है।
रचनात्मक उद्योग व्यवसाय की भूमिका आवश्यक वस्तुओं की क्वालिटी सुधारने, उनका उत्पादन बढ़ाने, तकनीकी नवाचार के जरिये उनकी लागत कम करके लोगों के लिए कम कीमत पर उत्पाद और सेवाओं की व्यवस्था करने में परिलक्षित होती है और टाटा बिरला ने यही किया। टाटा के स्टील ने देश में विकास की गति को तीव्र गति प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसी तरह बिरला ने एक समय लोगों की कपड़ों की जरूरत पूरी करने के लिए बड़ा काम किया। ये उद्योगपति अपने उत्पादों और सेवाओं की साख के लिए बहुत सचेत रूख अपनाते हैं लेकिन अदाणी और अंबानी भले ही दुनिया के टाप अमीरों की सूची में पहुंच गये हों पर उनके उत्पादों के बारे में लोगों में अच्छी धारणा आज तक नहीं बन पायी। अंबानी के जियो को लेकर प्राय जनचर्चा सुनी जाती है कि इनके लिए सरकार ने बीएसएनएल को बर्बाद कर दिया पर इनकी सेवा का कोई भरोसा नहीं है। पहले नाममात्र के चार्ज में डाटा देकर इन्होंने नेटवर्क यूजर्स को लत लगाई और अब एकदम से इनके चार्ज बढ़ाने में लगकर लोगों की सिट्टी पिट्टी गुम कर रहे हैं।
तो अगर पुरूषार्थ के एक पहलू के रूप में अर्थ को वरेण्य बनाने के लिए उन उद्यमियों और व्यवसायियों को सरकार द्वारा सम्मान और प्रोत्साहन देना चाहिए जो देश के लिए समर्पित हों। ऐसे शाहकार खड़े करें जो लोगों के जीवन को सुखमय बनाये और देश का गौरव बढ़ायें। साथ ही देश के विकास के लिए अगर संसाधन बढ़ाने की जरूरत पड़े तो वैल्थ टैक्स जैसी पेशकश के लिए स्वयं को प्रस्तुत करने को खड़े हो जायें। अर्थशास्त्री हाल के कुछ वर्षो में लगातार सुझाव दे रहे हैं कि देश की जरूरतें पूरी करने के लिए एक प्रतिशत अति संपन्न लोगों पर एक प्रतिशत वैल्थ टैक्स लगाने का साहस सरकार दिखाये लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के कारपोरेट मित्रों के लिए केवल अपना मुनाफा बढ़ाना अभीष्ट है। भले ही देश भाड़ में चला जाये लेकिन वे किसी अतिरिक्त कर को अपने सिर पर लादना कदापि स्वीकार नहीं कर सकते हैं।