उरई। पांचवे चरण के मतदान में अब एक पखवारे से भी कम का समय शेष रह गया है फिर भी राजनीतिक बहस मुबाहिशों की गर्मी अभी कहीं नजर नहीं आती। मतदाता विरक्ति की चादर ओढ़े हुए हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था के बावजूद कोऊ होए नृप हमें का हानि जैसा लोगों में छाया परिदृश्य परेशानी पैदा करने वाला है।
पहले किसी चुनाव में मतदाताओं में इतनी तटस्थता और ठंडापन नहीं रहा जितना इस बार है। हमने उरई से कोंच, फिर कोंच से कमसेरा, बंगरा होते हुए माधौगढ़ और ऊमरी तक निपट देहातों में सभी तरह के लोगों से बात की जिनमें बुजुर्ग थे, प्रौंढ़ थे और युवाओं से भी मिले। हर जाति वर्ग के व्यक्ति को हांडी के चावल के पकने की थाह लेने की तर्ज पर टटोला। कहीं किसी ने एक पार्टी या नेता के लिए जोश नहीं दिखाया। यह बात दूसरी है कि लोग मतदान के कर्तव्य को निभाने का महत्व समझने लगे हैं लेकिन उन्हें लगने लगा है कि सारे नेता और पार्टियां एक जैसी हैं। चाहे जिसे जिता दो और चाहे जिसे सत्ता में पहुंचा दो सभी मुट्ठी भर निहित स्वार्थों को पोसेंगे, बजाय आम जनता को खुशहाल बनाने के।
एक वर्ग चाहता है कि भाजपा की सत्ता को दस वर्ष हो गये। अब बदलाव होना चाहिए और किसी और को आना चाहिए। कोंच में प्रमोद कुशवाहा ने कुछ ऐसी बात कही। प्रमोद कुशवाहा पिछड़े वर्ग से आते हैं लेकिन जब उनसे यह पूंछा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के यह कहने में क्या आपको कोई दम नजर नहीं आती कि सत्ता बदली तो कांग्रेस पिछड़ों के आरक्षण को छीनकर मुसलमानों के हवाले कर देगी। वे बोले यह केवल चुनावी शिगूफेबाजी है। अलबत्ता कोंच के अत्यंत संभ्रांत परिवारों में से एक कृष्ण जी शर्मा का कहना है कि लोगों में इस सरकार की नीतियों को लेकर नाराजगी तो बहुत है लेकिन सरकार दुबारा भाजपा की ही बनेगी। पल्लेदारी करने वाले जगन्नाथ ने कहा कि मजबूरी है क्योंकि अभी मोदी का कोई विकल्प नहीं है। प्रधानमंत्री के हमलावर भाषणों को लेकर कुछ लोगों की राय थी कि विपक्ष द्वारा उन्हें बदनाम करने के प्रयास के काट के लिए उन्हें भी कुछ कहना पड़ रहा है लेकिन चुनावी आरोपों को भले ही वे प्रधानमंत्री द्वारा लगाये जा रहे हों महत्व नहीं दिया जाना चाहिए। गत नगर पालिका चुनाव में पेशेवर उम्मीदवारों को बेनकाब करने के नाम पर पर्चा भरने वाले सुरेश गुप्ता ने विपक्ष के सत्ता में आने पर महिलाओं के मंगलसूत्र तक छिन जाने के दिखाये जा रहे हउवे को लेकर कहा कि ऐसा कभी हुआ है। लोग इन आशंकाओं को कतई गंभीरता से नहीं लेते फिर वे प्रधानमंत्री द्वारा उछाली जायें या किसी छुटभैये नेता द्वारा। बंगरा में गोरा भूपका के एक युवक शिवकांत से बात हुई। वे मोदी सरकार पर बहुत बरस पड़े। उन्होंने कहा कि मोदी का काम केवल हवाई बातें करने का है। इस सरकार में युवाओं का रोजगार छिन रहा है यह सरकार बदलनी चाहिए। लेकिन एक होटल पर चाय पीते लोगों ने कहा कि सरकार के कारण कानून व्यवस्था बहुत सुधर गई है। बहुऐं, बेटियां रात बिरात बेखौफ आने जाने लगी हैं। हमें तो यह सरकार बहुत पसंद है।
ऊमरी में भीम आर्मी के कार्यकर्ताओं से भेंट हुई। उन्होंने कहा कि हमारी बिरादरी के बुजुर्गों का झुकाव अभी भी बसपा की ओर है लेकिन हम घर-घर जाकर उन्हें समझा रहे हैं कि भाजपा तीसरी बार सत्ता में आयी तो संविधान बदलकर आरक्षण खत्म कर देगी ताकि प्रशासन में हमें जो भागीदारी मिली है उस पर पानी फिर जाये। इसका असर हो रहा है। पिछड़ों में भी संविधान बदलने की आशंका का मुद्दा जोर पकड़ता नजर आया। ईंटों में बताया गया कि यहां कुशवाहा, प्रजापति और बाथम बिरादरी का झुकाव पूरी तरह भाजपा की ओर है। गोहन में याज्ञिक समाज के एक युवक ने कहा कि भाजपा छोड़कर कोई और नहीं। कारण पूंछने पर उसके पास कोई स्पष्ट जबाव नहीं था लेकिन अनुमान हुआ कि शायद इस बिरादरी पर कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिये जाने का असर है। पाल समाज में अतीक अहमद के सफाये को लेकर लोगों में भाजपा के लिए कृतज्ञता नजर आयी लेकिन सपा की ओर से भी सैंधमारी हो रही है। निश्चित रूप से एंटीइनकम्बेंसी है और पीडीए का नारा भी रंग दिखा रहा है जबकि लाभार्थी योजना से लेकर राम मंदिर तक के सत्ता पक्ष के लिए अनुकूल मुद्दों से लोगों का ध्यान बंट चुका है। फिर भी अभी बदलाव को लेकर कोई निर्णायक तस्वीर तैयार नहीं हो पायी है। देखना है कि बचे समय में विपक्ष कौन सी रणनीति अपनाता है जिससे मतदान केन्द्र तक वह निर्णायक बढ़त की आशा कर सके।
चुनावी सफरनामा- जिले में गुल खिला रहे विपक्ष के मुद्दे लेकिन अभी निर्णायक बढ़त के आसार दूर
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