उरई।
जिले की स्वास्थ्य सेवायें अव्यवस्था का अखाड़ा बनी हुयीं हैं। ताजा मामला सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र माधौगढ़ का है जहां के अधीक्षक डा. कुलदीप राजपूत के खिलाफ अस्पताल से संबद्ध सभी सीएचओ ने सामूहिक रूप से विभाग के उच्चाधिकारियों को ज्ञापन भेजा है जिसमें आरोप लगाया गया है कि डा. कुलदीप राजपूत और उनके चहेते कुछ कर्मचारी अस्पताल परिसर में ही शराब पीते हैं और नशे में हो जाने पर उनसे व अन्य लोगों से दुव्र्यवहार करते हैं।
इस मामले को लेकर खुलासा हुआ है कि जिले में एल-2 और एल-3 स्तर के वरिष्ठ चिकित्सकों को जानबूझकर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में तैनात रखा गया है जहां काम न होने से उन्हें ड्यूटी से गायब रहकर अन्यत्र प्राइवेट प्रैक्टिस करने की सुविधा मिल जाती है। दूसरी ओर एल-1 लेवल के कनिष्ठ चिकित्सकों को सीएचसी में अधीक्षक बना दिया गया है जो कि नियमों की अवहेलना है।
खुद डा. कुलदीप राजपूत इसके उदाहरण हैं। वे एल-1 श्रेणी के डाॅक्टर हैं लेकिन सीएमओ से सेटिंग गेटिंग करके अधीक्षक बने बैठे हैं। उन्होंने लखनऊ में 6 महीने तक एनेस्थीसिया का कोर्स किया। इसे पूर्ण करने के लिये बाद में उन्हें 3 महीने जिला अस्पताल में ट्रेनिंग करनी थी। जिसके लिये वे जिला अस्पताल पहंुचे भी और 10-12 दिन प्रशिक्षण किया। इस बीच माधौगढ़ के एमओआईसी का गैर जनपद तबादला हो गया और मौका देखकर डा. कुलदीप राजपूत ने बीच में ही ट्रेनिंग छोड़कर सीएमओ को खुश करके माधौगढ़ में अधीक्षक की कुर्सी संभाल ली।
हालत यह है कि लखनऊ में 6 महीने कोर्स में सरकार को डा. कुलदीप राजपूत को वेतन के अलावा वृत्ति भी देनी पड़ी जिसमें लाखों खर्च हुआ। यह टेªनिंग पूरी न हो पाने से बेकार चला गया है। माधौगढ़ में अगर कोई ऐसा केस आता है जिसमें ऐनेस्थीसिया लगाने की जरूरत हो तो डा. कुलदीप राजपूत के काम न कर पाने से जालौन सीएचसी से बेहोशी के डा. को बुलाया जाता है।
डा. कुलदीप राजपूत अपने स्थान पर इमरजेंसी ड्यूटी आयुष डा. से करवाते हैं जो मरीजों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ जैसा है। इसके अलावा ओपीडी में वे बाहर की दवायें लिखते हैं और उनके निर्देश हैं कि उन्हें एक खास मेडिकल स्टोर से ही लिया जाये। अगर मरीज दूसरे मेडिकल स्टोर से दवा लेकर आता है तो उसे वापस भेज दिया जाता है। एक बार एक दूसरा मेडिकल स्टोर वाला इसे लेकर डा. कुलदीप राजपूत को उलहाना देने पहंुच गया तो कुलदीप राजपूत आग बबूला हो गये। उन्होंने पुलिस बुला ली जिससे 4-5 घंटे मेडिकल स्टोर वाले को थाने में बैठे रहना पड़ा। प्रदेश के तेज तर्रार उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक जो कि स्वास्थ्य महकमा देख रहे हैं उनके स्पष्ट निर्देश हैं कि सरकारी अस्पताल में डा. बाहर की दवायें न लिखें लेकिन डा. कुलदीप राजपूत को इसकी कोई परवाह नहीं है।
डा. कुलदीप राजपूत की पत्नी डा. पूजा राजपूत भी सीएचसी माधौगढ़ में ही तैनात है। अकबरपुरा के एक फौजी की पत्नी की डिलेवरी सीएचसी माधौगढ़ में हुयी जिसमें केस बिगड़ गया और उसकी नवजात बच्ची की मौत हो गयी जिसमें डा. पूजा राजपूत पर लापरवाही का आरोप लगाया गया। पुलिस में भी मामला कायम हुआ जिसकी जांच चल रही है। लोगों का कहना है कि डा. पूजा राजपूत के पति ही जब सीएचसी के सर्वे सर्वा हैं तो सही तरीके से जांच कैसे हो सकती है। उक्त प्रकरण के समय ड्यूटी कर रहे अस्पताल कर्मियों की हिम्मत नहीं है कि वे कोई ऐसा बयान दे सकें जो डा. पूजा राजपूत के विरूद्ध हो।
सीएचसी माधौगढ़ में अनियमित तरीके से हो रहे कामकाज की श्रंखला में एक कड़ी मेडिको लीगल केसों की भी है। अधीक्षक कोई एमएलसी नहीं करते। यह दायित्व संविदा वाले आयुष चिकित्सक के हवाले कर दिया गया है जो कि एकदम गैर कानूनी है। आश्चर्य यह है कि स्वास्थ्य सेवाओं को पूरी तरह चुस्त दुरूस्त बनाने के प्रदेश सरकार के दावों के बावजूद हकीकत इतनी खराब है फिर भी दिया तले अंधेरे की कहावत की तरह सरकार में बैठे लोगों को इसका पता नहीं चल रहा है।