उरई | पांच पवित्र नदियों के संगम के साक्षी जालौन जिले को विद्वान् तीव्र आध्यात्मिक तरंगों का बड़ा केंद्र मानते हैं | इस संगम को तपोस्थली के रूप में चुनने के कारण बाबा मुकुंदवन इतने पहुंचे संत माने जाने लगे थे कि उनसे सत्संग के लिए स्वयं तुलसीदास को बाढ़ से उफनती यमुना को जान जोखिम में डाल कर मांझते हुए उनके पास आना पडा था | जाते समय विदाई में तुलसीदास जी ने मुकुंद वन महाराज को शंख ,मनकों की माला और खडाऊं भेंट किये थे जो आज भी जगम्मनपुर के किले में सुरक्षित रखे हैं | वर्ष में एक दिन इन स्मृति चिन्हों की शोभा यात्रा गाजे बाजे के साथ निकाली जाती है | इसके अलावा बीरबल के रंगमहल , अक्षरा देवी और रक्त दंतिका देवी जैसी तंत्र पूजा की राष्ट्रीय ख्याति की बड़ी शक्ति पीठ , कालपी के हाथ कागज़ उद्योग और कोंच में कपास उद्योग की मिलों के अवशेष भी जिले के अतीत की गौरवशाली पहचान से जुड़े हैं |
किवदंती है कि एक समय अलग अलग जिलों के सर्वे में जालौन के लोगों का आई क्यू प्रदेश में सबसे ऊंचा माना गया था | यह दावा कितना सच है या यह मात्र गल्प है इस पर सवाल हो सकते हैं पर सियासी क्षेत्र में यहाँ के नेताओं ने देश , प्रदेश में अपने कौशल का जिस ढंग से लोहा मनवाया उसे इसकी गवाही मानने को जी क्यों न चाहेगा | लम्बे समय तक नेहरु युग में प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री रहे चतुर्भुज शर्मा और इंदिरा गांधी के समय केंद्र की राजनीति के महारथी रहे चौधरी राम सेवक इसके उदाहरण हैं | चतुर्भुज शर्मा कई बार मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुँचते , पहुँचते रह गए जबकि नरसिम्हाराव के समय चौधरी राम सेवक राष्ट्रपति पद के लिए नाम लगभग तय हो जाने के बाद भी चूक गए थे | जनता दल सरकार के समय जिले के गंगाचरण राजपूत को युवा जनता के राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गयी थी तो प्रदेश जनता दल यू की कमान लम्बे समय तक यहाँ के सुरेश निरंजन भैयाजी के हाथ में रही | बसपा का पहली चुनावी खाता जालौन जिले में ही खुला था तो मायावती के पहले मुख्यमंत्रित्व काल में उनके चिकित्सा के लिए लन्दन जाने पर एक सप्ताह तक मुख्यमंत्री का चार्ज चैन सुख भारती के हाथ में रहा था जो उस समय जिले के कोंच विधानसभा क्षेत्र से विधायक और माया सरकार के कैबिनेट मंत्री थे | प्रदेश के वर्तमान जल शक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह की जन्मभूमि भले ही मिर्जापुर हो लेकिन राजनीति में सिफर से शिखर तक का सफ़र उन्होंने जालौन जिले को कर्मभूमि बना कर ही तय किया है | इसी जिले के बृजलाल खाबरी अभी कुछ समय पहले तक प्रदेश कांग्रेस की जिम्मेदारी सम्हाले हुए थे | बसपा में जब वे थे तो बहिन जी के उत्तराधिकारी के तौर पर एक समय उनका नाम चर्चित रहा था |
देश के पहले आम चुनाव से ही जालौन जिले का महत्व राजनीति में रहा | 1952 में हुए पहले आम चुनाव में जालौन और इटावा जिलों को मिला कर एक संसदीय क्षेत्र बनाया गया था और इस सीट से 2 लोकसभा सदस्य चुने जाते थे जिनमें एक सामान्य निर्वाचन क्षेत्र से होता था और दूसरा अनुसूचित जाति सुरक्षित क्षेत्र से | 1957 में इस सीट से इटावा को अलग कर हमीरपुर को जोड़ दिया गया लेकिन 2 सांसदों के चुनाव को यथावत रखा गया | 1962 में संसदीय क्षेत्र का फिर पुनर्गठन किया गया जिसके तहत इसे जालौन सुरक्षित सीट घोषित कर दिया गया | पहले इस संसदीय क्षेत्र में जालौन जिले के 4 विधानसभा क्षेत्र शामिल थे जबकि एक झांसी जिले के गरौठा विधानसभा क्षेत्र को भी इससे जोड़ दिया गया था | 2012 में जालौन जिले की कोंच विधानसभा सीट को कम कर दिया गया जिसके कारण संसदीय क्षेत्र में विधानसभा सीटों की संख्या पूरी करने के लिए जालौन की 3 , झांसी की एक गरौठा और कानपुर देहात की भी एक भोगनीपुर विधानसभा सीट को इसमें शामिल कर दिया गया | वर्तमान में संसदीय क्षेत्र की 4 विधानसभा सीट भाजपा के पास हैं जबकि एक कालपी सीट से सपा के विनोद चतुर्वेदी विजयी हुए थे जिन्होंने राज्यसभा चुनाव में पाला बदल लिया था | अब विधायक बने रहने के लिए वे बरायेनाम सपा में हैं लेकिन चुनाव में काम भाजपा का कर रहे हैं जबकि उनके सुपुत्र आशीष चतुर्वेदी खुल्लम खुल्ला भाजपा में शामिल हो चुके हैं | अभी तक इस सीट के लिए हुए 17 चुनावों में 7 बार कांग्रेस को और 6 बार भाजपा को सफलता मिली है हालांकि इस बार कांग्रेस चुनाव मैदान में ही नहीं है | सोमवार 20 मई को इस क्षेत्र के लिए मतदान होना है जिसकी सारी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं |