उरई | चाहे रेंढर थाना क्षेत्र के ग्राम नावली में परशुराम कुशवाहा से हुई बात का सार हो या रामपुरा कस्बे के मंगली पाल से चर्चा का , इस निष्कर्ष की पुष्टि होती है कि लोकसभा चुनाव की दिशा अव्यक्त व्यापक मुद्दे तय करते हैं जबकि स्थानीय समस्याएं बेअसर रहते हैं | यहाँ तक कि अपवाद को छोड़ कर उम्मीदवार का प्रोफायल भी दर किनार रहता है | इस बार भी यही कारक प्रभावी है | यह भी हकीकत है कि चुनाव को ले कर सामाजिक आधार पर लोग बंटे हुए हैं | देश के अन्य क्षेत्रों की तरह इस संसदीय क्षेत्र में भी पिछड़े वर्ग की जातियों का बहुमत है इसलिए जानबूझ कर हमने पिछड़ी जातियों पर अपना फोकस केन्द्रित रखा क्योंकि अगर किसी मुद्दे पर उनकी सामूहिक चेतना काम कर रही होगी तो चुनाव परिणाम का पलड़ा उसी और झुक जाएगा |
ग्राउंड जीरो पर यह दिखा कि जिले के पिछड़े वर्ग के मतदाताओं में मुद्दों को ले कर सामूहिक चेतना प्रभावी है | हालांकि उनमें सामूहिक चेतना तो पिछले 2 लोकसभा चुनावों में भी संगठित रही थी | तब के दौर में प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी का यह छाती ठोंक अंदाज पिछड़ों को खूब भाया था कि उनकी जाति के कारण उन्हें नीच कह कर गालियाँ दी जा रही हैं | स्वयं को पिछड़ी जाति का साबित करने में प्रधानमन्त्री कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे इसलिए पिछड़ी जातियों में अपने हम बिरादर को देश की सत्ता सौपने का जोश जज्बा ठाठें मार रहा था | साथ ही अपने सजातीय नेता को पहली बार हिन्दू धर्म के ध्वजावाहक के रूप में स्वीकार किये जाने के अहसास ने उनमें अनोखे गौरव का संचार कर दिया था | पर इस चुनाव में प्रधानमन्त्री की पिछड़ा शिनाख्त जैसे धुल पुंछ गयी है | वे खुद भी अपने को पिछड़ा बताने में परहेज बरत रहे हैं | यह पिछड़ों में उनके प्रति शक के गहराने की वजह बन गयी है | एक तरह से उनके इस मामले में कवचहीन होने का ही असर है कि आरक्षण का मुद्दा चुनावी समर भूमि में जोर पकड गया |
रामपुरा कस्बे में एक व्यक्ति से बात हुई | उनके घर में छोटे छोटे बच्चे हैं , नौकरी का तलबगार एक भी सदस्य नहीं है | आरक्षण की बात चली तो उनका भी जोर था कि यह तो जरूरी है | जागरूकता की एक बानगी देखने को मिली जब एक बुजुर्ग से बात हुई | उन्होंने ताना दिया कि कोई पार्टी पिछड़ों का भला करने की नहीं सोचती | केवल वी पी सिंह ने आरक्षण दे कर हमारी भलाई करनी चाही थी तो उन्हें सत्ता में नहीं रहने दिया गया | पिछड़ों के आरक्षण को छीन कर मुसलमानों को दिए जाने के बयान को लोग कतई तवज्जो देते नहीं दिखे | महिलाओं के मंगल सूत्र और लोगों के घर बार जब्त किये जाने जैसी डरावनी आंशंकाओं को लोग बचकानी करार दे कर खारिज कर रहे हैं | बेरोजगार युवकों में सरकारी भर्ती के ठप रहने से उबाल दिखा |
विपक्ष के पास तो जमीनी संगठन की कमी पहले से ही जाहिर है लेकिन माइक्रो मैनेजमेंट का दावा करने वाली भाजपा के कार्यकर्ताओं की फ़ौज जैसी कोई चीज भी नदारत है | सुदूर गलियों और बस्तियों में लोगों के बीच अभी तक किसी पार्टी के कार्यकर्ता नहीं पहुंचे हैं | भाजपा के हक़ में कोई मुद्दा ढंग से काम कर रहा है तो वह राज्य की क़ानून व्यवस्था का है | इसके अलावा धर्मभीरु जनता में राम मंदिर की चर्चा है | आश्चर्यजनक रूप से मुफ्त अनाज, आवास , शौचालय जैसी योजनाओं को ले कर मतदाताओं में पिछले चुनावों में जो कृतज्ञता छलकती थी इस बार उस आभार ग्रंथि को मतदाताओं ने छिटका दिया है |