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Friday, September 20, 2024

उत्तर प्रदेश साहित्यसभा के एक वर्ष पूर्ण होने पर भक्ति रस में डूबी काव्यसंध्या

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उरई | उत्तर प्रदेश साहित्य सभा जालौन के गठन का एक वर्ष पूर्ण होने और सभा के अध्यक्ष अनुज भदौरिया के जन्मदिन के मौके पर एक काव्य संध्या का आयोजन निज निवास अजनारी रोड पर कड़कड़ाती सर्दी में यज्ञदत्त त्रिपाठी जी की अध्यक्षता और सभा के संयोजक शफीकुर्रहमान कशफ़ी के संचालन में कवि और शायरों ने अपने गीत ग़ज़ल मुक्तकों से गर्मी का अहसास कराया |

गोष्ठी की शुरुआत शिखा गर्ग की सरस्वती वंदना से हुई| |  उसके बाद शुरू हुई गोष्ठी में कवियत्री शिवा दीक्षित ने पढ़ा मुझे प्रेम की भीख नहीं सर्वस्व चाहिए,दोनों ओर प्रेम की पीर पले ऐसी दिव्य लौ चाहिए,इसके बाद दिव्यांशु दिव्य ने पढ़ा झूमे जग ये प्रभु जी अपने धाम मिलेंगे,माटी के कण कण में प्रभू के नाम मिलेंगे,शायर अख्तर जलील ने पढ़ा तमाशा क्यों बनाया जा रहा है,ज़रा ठहरो वो आया जा रहा है,शिखा गर्ग ने पढ़ा राम से है बंधी मन की हर साधना,राम के लिए ही मन की हर साधना,प्रिया श्रीवास्तव दिव्यम ने पढ़ा  बहुत कुछ कह भी कुछ अनकहा है,बहुत नजदीक हैं पर फ़ासला है,अनुज भदौरिया ने पढ़ा मैं उजड़ा हूँ मगर सहरा नहीं हूँ, मैं टूटा हूँ मगर बिखरा नहीं हूँ, सिद्धार्थ त्रिपाठी ने पढ़ा अपनी इज्ज़त के साथ कविता की आबरू न उछालो,श्रीमान कवि महोदय अपने आपको सम्भालो,हास्य व्यंग्य के शायर असरार अहमद मुक़री ने पढा घरबार जो चलाना इज्ज़त सुकून से, बीवी अगर जबर है तो झुक जाना चाहिए | कवियत्री माया सिंह ने पढ़ा राम हैं सभी के सब है श्री राम जी के,वर्गों में कोई मेरे राम को न बांटिए,राघवेन्द्र कनकने ने सुनाया इत्ती सर्दी काय कर दई भगवान,ठिठुर ठिठुर के कढ़न लगे हैं प्राण,संचालन कर रहे कशफ़ी ने पढ़ा वो इमामे हिन्द हैं और हिन्द के वासी हैं हम,ऐसे रिश्ता जुड़ गया है मेरा सुन लें राम से,शिरोमणि सोनी ने पढ़ा मेरे ख्वाबों के दर्पण में शाम सतरंगी हो जाना,इंद्रधनुषी फुहारें मन में रंग बिरंगी हो जाना,अभिषेक सरल ने पढा उर्मिला सी आस मन में पूर्ण सब बनवास होंगे,आज नहीं तो कल खत्म ये उपवास होंगे,अंत में अध्यक्षता कर रहे जिले के वरिष्ठ साहित्यकार यज्ञदत्त त्रिपाठी जी ने अपने उद्बोधन में साहित्यसभा को निरंतर साहित्यिक कार्यक्रमों कराते रहने पर और अनुज भदौरिया को जन्मदिन की मुबारकबाद दी और पढा  कर्म जीवन है तथा आलस्य निष्क्रियता मरण है | शेष तो कुछ भी नहीं है | बस बदलता आवरण है,अंत में साहित्य सभा के जिला संयोजक कशफ़ी ने सभी का आभार व्यक्त किया |

 

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