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Saturday, October 5, 2024

गीत और गज़लों से कर डाली प्रेम रस की बरसात

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उरई | साहित्य सभा के ऑफिस अजनारी रोड स्थित अध्यक्ष अनुज भदौरिया के आवास पर वरिष्ठ साहित्यकार यज्ञदत्त त्रिपाठी की अध्यक्षता एवम अमरेंद्र पोतस्यायन के मुख्य आतिथ्य में दिव्यांशु दिव्य के जन्मोत्सव के मौके पर हुई काव्य गोष्ठी की शुरुआत गरिमा पाठक की वाणी वंदना और शायर अनवार साहब की नाते पाक से हुई जो देर रात चली |

संचालन कर रहे अनुज भदौरिया ने पढ़ने के लिया बुलाया युवा कवि सौमित्र त्रिपाठी को तो उन्होंने पढा,तुम संघर्षों की रार लिए संघर्ष तुम्हीं से सीखा है,तुम दिव्य अंश दिव्यांशु सजे सब इसके बाद फीका है,इसके बाद कवियित्री शिखा गर्ग ने पढ़ा,प्रेम के तप में डूबी हुई ज़िन्दगी,लो समर्पण सुमन ये चढ़ाती हूँ मैं,फिर पढा,शायर अनवर ने,याद उसकी दिला गया कोई,मेरे दिल को दुखा गया कोई,कवियित्री प्रिया श्रीवास्तव दिव्यम ने सुनाया –उम्र भर शाद रहो चाँद से चमको हर दम,सारी खुशियाँ हों मयस्सर दुआ है दिव्यम,सिद्धार्थ त्रिपाठी ने पढ़ा,कहते हैं हम तो तुम्हारे सहारे,मिलते हैं जब भी तो ऐसे निहारे,इंदु विवेक उदैनिया ने पढ़ा,आत्मविश्वास और ऊर्जा की दिव्य स्वर्णिम खान, काव्य विवेचन क्या कहें कर न सके बखान,शायर अख्तर जलील ने पढ़ा,इसे पीने का मुझमें दम नहीं है,ये आँसू हैं कोई शबनम नहीं है,संचालन कर रहे अनुज ने पढ़ा,दिव्य हो यह जन्मदिन व दिव्य यश समृद्धि हो,नित मिले नूतन सफलता हर कार्य में ही सिद्धि हो,कवियित्री प्रियंका शर्मा ने पढ़ा,कभी गुंजार करती हूँ कभी पढ़कर सुनाती हूँ, जगत मे जो भी जागते हैं उसे समक्ष लाती हूँ, साहित्य सभा के संयोजक पहचान के अध्यक्ष शायर शफीकुर्रहमान कशफ़ी ने पढ़ा,परदेस जा के गाँव की मिट्टी को खो दिया,धुंधलाई यादें रह गईं बाक़ी को खो दिया,कलार्पण के अध्यक्ष रामशंकर गौर ने पढ़ा,दिल का दर्द बताएं आँसू, निर्मल ह्रदय बनाये आँसू, गरिमा पाठक ने पढ़ा,चाँद से चमके हर पल यह आशीष हमारा है,गुलशन सा महकता दिव्य यह जीवन तुम्हारा है,हास्य कवि रामप्रकाश श्रीवास्तव दुर्मुट ने पढ़ा,दुर्मुट को ठीक करने का यही इक उपाय है,रख्खो हमेशा हाथ में डंडा छिला हुआ,दिव्यांशु दिव्य ने सुनाया,वक़्त की अभिव्यक्ति पर हम वक़्त के मारे नहीं हैं, ज़िन्दगी की दौड़ में हम थके हारे नहीं हैं,अतिथि कवि अमरेंद्र जी ने पढ़ा,हर पल उत्साह उमंग भरा हो जीवन में,पतझड़ भी मधुमास सरीखा लगता है,महेश प्रजापति ने पढ़ा,ये ज़माना झुके बस तुम्हारे लिए,आये मौसम सुहाना तुम्हारे लिए,अभिषेक सरल ने पढ़ा,उर्मिला सी आस मन पूर्ण में वनवास होंगे,आज नहीं तो कल पूर्ण में उपवास होंगे  ब्रह्मप्रकाश दीपक ने पढ़ा,दिव्य यशगान को पुण्य उत्थान को,प्रेम का शुभ उदाहरण हुआ ये विलम,गोपाल ने पढ़ा,उठ आया हूँ वहाँ से ऐसे,जाना न हो दोबारा जैसे,के अलावा अन्य कवियों ने काव्यपाठ किया | अंत में अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ्य साहित्यकार यज्ञदत्त त्रिपाठी ने सभी को शुभाशीष दिया और पढा,जो अपने को बड़ा समझता वह छोटा है बड़ा नहीं है,जो छोटा बनकर चलता है सच पूछो तो बड़ा वही है,इस दौरान तांचाल सर,अवध नारायण द्विवेदी सहित अन्य लोग सभी का उत्साह वर्धन करते रहे |

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