back to top
Monday, December 2, 2024

रामदेव के पहले भी योग और आयुर्वेद था, आगे भी रहेगा

Date:

Share post:

जब से उच्चतम न्यायालय ने बाबा रामदेव और बालकृष्ण के अदालत को चकमा देने के लिए उनके द्वारा फरेब किये जाने को आड़े हाथों लिया है उसके बाद से एक मुहिम जैसी छेड़ दी गई है जिसमें बाबा रामदेव के खिलाफ सुनवाई को संस्कृति और धर्म की प्रतिष्ठा से जोड़ा जा रहा है। तथ्य यह है कि बाबा रामदेव की पतंजलि के उत्पाद अभी से नहीं लंबे समय से प्रयोगशाला परीक्षण में मिलावटी साबित हो रहे थे फिर वह चाहे घी की बात हो या तेल की अथवा नूडल्स की। बाबा की कंपनी से तैयार होने वाली भस्मों में भी भारी घालमेल का संदेह व्यक्त किया जा रहा था क्योंकि भस्म में स्वर्ण आदि कीमती धातुओं और अन्य सामग्री पड़ती है जिसमें मिलावट होने पर बड़ा वारा न्यारा किया जा सकता है। इस बीच कुछ ही वर्षों में बाबा की कंपनी का मुनाफा आश्चर्यजनक रूप से बहुत ऊंचाई पर पहुंचने को भी मार्क किया गया था जिसका संबंध कहीं न कहीं उनके द्वारा की जाने वाली कथित मिलावट से जोड़ने के लिए विश्लेषक मजबूर हो जाते थे।
इन खुलासों से बाबा रामदेव की साख और प्रतिष्ठा को भी धक्का पहुंचा था और उनके उत्पादों की बिक्री कम हो जाने के रूप में इसका असर सामने आया था। पर पहले इस पर इतना बितंडा नहीं हुआ जितना चुनावी सीजन के कारण वर्तमान में हो रहा है। नीचता की पराकाष्ठा तो यह हो गई है कि उनके मामले की सुनवाई करने वाले जजों के धर्म का भी उल्लेख किया जाने लगा है। भाजपा के सत्ता में आने के बाद उसका समर्थक वाचाल तबका अपनी बातचीत में भारत को कितना भी हिन्दू राष्ट्र जाहिर करता रहे लेकिन संवैधानिक रूप से भारत अभी भी धर्मनिरपेक्ष राज्य है। वैसे भी भारत में विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के लोग रहते हैं जिसके कारण यहां एक ऐसी समावेशी व्यवस्था का गढ़ा जाना अपरिहार्यता है जिसमें व्यवस्था और वैधानिकता के स्तर पर एकरूपता स्थापित हो। इसी क्रम में विभिन्न संस्थाओं के लिए देश में ऐसे पेशेवर मानदंड स्थापित हैं जिनके रहते उनमें बैठे किसी पदाधिकारी के लिए नार्मस से हटकर धर्म, संस्कृति, जाति, भाषा इत्यादि के आधार पर पक्षपातपूर्ण किसी दृष्टिकोण का प्रतिपादन संभव न हो। जो लोग आज बाबा रामदेव की सुनवाई कर रहे जजों के धर्म का रहस्योदघाटन कर रहे हैं उन्हें मालूम होना चाहिए कि अयोध्या में विवादित स्थल पर रामजन्म भूमि मंदिर के निर्माण का फैसला देने वाली पीठ में इतर धर्म के जज भी थे लेकिन इसका कोई प्रभाव फैसले पर नहीं झलका था।
नई रीति में देश की पूरी व्यवस्था को अविश्वास में घेरकर किसका भला किया जा रहा है। व्यवस्था पर इस तरह का प्रहार देश की नींव को कमजोर करने का कुत्सित दुराग्रह है। होना तो यह चाहिए कि इसका दृ़़ढ़ता से प्रतिवाद किया जाये लेकिन माहौल इस समय पूरे कुऐं में भांग पड़ जाने के सदृश्य है जिसका पानी पीकर लगभग पूरा समाज की विवेक खोता नजर आ रहा है। दरअसल चुनाव के मौके पर इस केस का संदर्भ लेकर रामदेव को सर्वोच्च पुण्यात्मा के रूप में प्रदर्शित करने के स्पष्ट रूप से राजनीतिक अभिप्राय हैं। यह कहने की कोशिश की जा रही है कि भाजपा को छोड़कर सारे दल घनघोर हिन्दू विरोधी हैं और सुप्रीम कोर्ट के जजों के एक वर्ग के साथ मिलकर हिन्दुत्व के खिलाफ षणयंत्र रच रहे हैं। तथ्य यह है कि बाबा का सैंपिल भाजपा शासित राज्यों में भी फेल हो चुके हैं। क्या उन राज्यों की सरकारों को विपक्षी दलों ने मतिभ्रष्ट कर दिया था।
पाखंड की इंतहा यह है कि राम भद्राचार्य से लेकर केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह तक किसी का भी जीवन बीमारी की भंवर में फंसा है तो उसने शरण ऐलापैथी की ही ली है न कि बाबा रामदेव के पास गया फिर भी धारणा बनाई जा रही है कि ऐलोपैथी की महिमा प्रवंचना मात्र है। कैसी भी बीमारी हो उसका निदान सिर्फ आयुर्वेद से हो सकता है। आयुर्वेद की उपयोगिता पर कोई उंगली नहीं उठा रहा। हो सकता है कि अपने समय में आयुर्वेद विश्व की सर्वश्रेष्ठ पद्धति रही हो लेकिन उसे अपडेट न किया गया हो या अन्य कोई कारण हो आज बीमारियों के निदान में उसके उपयोग की एक सीमा है। ऐलोपैथी आयुर्वेद से बहुत उन्नत चिकित्सा व्यवस्था बन चुकी है जिसको अपनाये रखना मजबूरी है। आज की तथाकथित हिन्दूवादी सरकार आयुर्वेद को तो बढ़ावा दे रही है लेकिन उपरोक्त हकीकत के कारण ऐलोपैथी को यह सरकार भी आयुर्वेद की तुलना में बहुत ज्यादा बजट आवंटित कर रही है। आत्म गौरव की भावना होनी चाहिए लेकिन आज जबकि पूरी दुनिया एक गांव में सिमटकर रह गई है तो अपनी श्रेष्ठता की इकतरफा बीन बजाना बीमार मानसिकता का परिचायक है। आज दुनिया में नया ज्ञान किसी देश या समाज से आये पूरी दुनिया उसका लाभ उठाने के लिए तत्पर रहती है। किसी भी कुतर्क से इस यथार्थ को बदला नहीं जा सकता है।
एक पोर्टल के स्वयंभू संचालक एंकर बाबा रामदेव के महिमा मंडन के क्रम में विरोधी दलों की सरकारों को बदनाम  करने के लिए अपने प्लेटफार्म पर कह रहे हैं कि जब से पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार आयी है तब से वहां धार्मिक चिकित्सा के जादू के जोर से इसाई मिशनरियों द्वारा धर्मांतरण का खेल खेला जाना आम हो गया है। अब इससे बड़ा सफेद झूठ क्या हो सकता है। सच्चाई तो यह है कि विरोधी दलों के नेता कई मामलों में भाजपा के नेताओं से ज्यादा अंध आस्था में लीन रहते देखे जाते हैं। मध्य प्रदेश में हाल के दिनों में राज्य के पार्टी के सबसे बड़े नेता कमलनाथ बाबाओं के दरबार में जितने साष्टांग रहते थे उतने तो भाजपा के नेता नहीं देखे जाते थे। फिर भी पोर्टल संचालक साबित करना चाहते हैं कि कांग्रेस शासित राज्यों में हिन्दू धर्म को कुचला जाता रहा है जबकि यह बात नितांत धूर्ततापूर्ण है। उन एंकर महोदय ने उत्तर प्रदेश में योगी की सरकार आने के बाद चिकित्सा के क्षेत्र में अंधविश्वासों और चमत्कारों के दखल पर पूर्ण विराम लगने का दावा ठोंकने में भी गुरेज नहीं किया। जबकि तथ्य यह है कि मुस्लिम इसाई या अन्य गैर धर्मावलंबियों को वर्तमान में उत्तर प्रदेश में किसी भी तरह का ढ़ोंग फैलाने की कोई गुजांइश न छोड़ी जा रही हो लेकिन हिन्दू धर्म के नाम पर लोगों का भावनात्मक आर्थिक शोषण करने की छूट तो पूरी है। कानपुर के एक कथित सिद्ध भदौरिया बाबा की तरह प्रदेश भर में अंधविश्वास की दुकानें खुली हुई हैं जो असाध्य से असाध्य बीमारी को अभिमंत्रित अपने पानी को फंूककर ठीक कर देने का ठेका लेते हैं। हिमाचल प्रदेश में कैंसर ठीक करने का चूर्ण बांटा जा रहा है। इन पाखंडियों के जाल में गरीब जनता फंसती है जिसके पास ऐलोपैथी इलाज का महंगा खर्चा उठाने की कुब्बत नहीं होती। इलाज कराने की तसल्ली के लिए वह जाने-अनजाने नीम हकीमों की शरण में जाने को अभिशप्त रहता है।
बाबा रामदेव के खिलाफ हो रही सुनवाई का आयुर्वेद और हिन्दुत्व के खिलाफ षणयंत्र से कोई संबंध नहीं है। ऐसा होता तो डाबर, बैद्यनाथ आदि कंपनियां इतने दशकों से कैसे फल फूल रहीं होती। योग और आयुर्वेद के महारथी बाबा रामदेव के पहले से देश में थे और आगे भी रहेंगे। इनकी और आयुर्वेद की तुलना असंगत है। इनमें प्रतिस्पर्धा को ढ़ूढ़ने का कोई अर्थ नहीं है। इन पद्धतियों के दायरे अलग-अलग हैं। बाबा रामदेव को केवल इतना श्रेय है कि उन्होंने योग की प्रसिद्धि को नये सिरे से विश्व स्तर पर स्थापित किया लेकिन इसके कारण उन्हें मिलावटी उत्पाद बेचकर अंधाधुंध मुनाफाखोरी करने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। उनके इस कृत्य से लोगों के जीवन से खिलवाड़ हुुआ है जिसके लिए उन्हें दंडित किया जाना जरूरी है। आशा राम बापू के खिलाफ कार्यवाही हुई थी तो भी कई लोग उनके समर्थन में आगे आ गये थे। यह एक तरह की सामूहिक रूग्ण भावुकता की निशानी है जिससे समाज को बचाया जाना चाहिए। एक समय जापान में इस रूग्णता के प्रभाव के कारण कितनी संगठित हाराकिरी हुई थी इसको याद कर लें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Related articles

जिले में होगा हैंडबॉल का स्टेट टूर्नामेंट

    उरई। जिला खेल विकास एवं प्रोत्साहन समिति की बैठक में विशेष आमंत्री सदस्य , जिला पंचायत सदस्य  और...

हर क्षेत्र में आज की नारी जमा रही है धाक –गौरीशंकर

    उरई |  दयानंद वैदिक कॉलेज के भव्य प्रांगण में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद उरई कानपुर प्रान्त के तत्वावधान...

इस बार दिसंबर में होंगे यूपीसीए ट्रायल के रजिस्ट्रेशन … 

      उरई। उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (यूपीसीए) के खिलाड़ियों के रजिस्ट्रेशन अब दिसंबर के पहले हफ्ते में होंगे। गत...

*समग्र शिक्षा अंतर्गत कैरियर गाइडेंस मेले का आयोजन*

जगम्मनपुर-उरई । समग्र शिक्षा योजना के अंतर्गत कैरियर गाइडेंस व करियर मेले का भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया।...