cropped-cropped-12065564_1515048802143994_20145587447710710_n3.jpgउरई। वाणिज्यकर विभाग जिला प्रशासन की नाक कटवाने पर आमादा है। लक्ष्य की तुलना में इसकी वसूली काफी पिछड़ी हुई है। प्रमुख सचिव समाज कल्याण की समीक्षा में भी इसे लेकर जिलाधिकारी की फजीहत हुई थी। वैसे तो विभाग के पास कम वसूली को लेकर कई मजबूत बहाने हैं। लेकिन असलियत यह है कि यह विभाग वाणिज्यकर की उगाही करने की बजाय कर चोर व्यापारियों का उददेश्य कामयाब करने में सहायता दे रहा है।
वाणिज्यकर विभाग की करतूत का एक नमूना यह है कि जिले में हर रोज लाखों रुपये की दवायें बेंची जाती हैं। लेकिन कोई दवा विक्रेता ग्राहकों को पक्का बिल नही देता। मंडलायुक्त ने गत्वर्ष जिला अस्पताल के सामने के मेडिकल स्टोरों पर अपनी आंखों के सामने यह स्थिति देखकर वाणिज्यकर विभाग को जमकर फटकार लगाई थी लेकिन इस विभाग को कमिश्नर का भी कोई खौफ नही है जो उसकी रीति-नीति में कोई बदलाव न होने से उजागर है। दवा विक्रेताओं के अलावा मिठाई विक्रेता शहीद भगत सिंह चैराहे के आसपास के जनरल स्टोंरो पर भी कम बड़ा कारोबार नही होता लेकिन इन पर भी विभाग ने कभी कंप्यूटराइज्ड बिल देने का दबाव नही बनाया।
विभाग के सचल दस्ते की छवि आम लोगों में डकैत गिरोह के रूप में है। कर चोरी के अंतर्राज्यीय व्यापार को रोकने की बजाय फलने-फूलने में योगदान देकर वाणिज्यकर विभाग ने नमक हरामी की सारी सीमाएं तोड़ दी हैं। प्रमुख सचिव समाज कल्याण ने बैठक में एडीएम को इस विभाग की अक्ल दुरुस्त करने के कुछ नुस्खे बताये थे लेकिन उन पर अमल के बाद भी यह विभाग चोरी की अपनी नीयत से बाज आयेगा। इसकी बहुत ही कम लोगों को उम्मीद है।

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