18orai07उरई। विख्यात श्रीमद्भागवत कथा एवं श्रीराम कथा प्रवक्ता संत श्री पुरुषोत्तम शरण शास्त्री सत्संग एवं संत सत्ता का महात्म्य प्रगट करते हुए कहा कि सत्संग से व्याधियों का हरण करता है। सत्संग बेहतर जीवन जीना सिखाता है। सत्संग से अज्ञानी एवं निरक्षर व्यक्ति भी एक परमज्ञानी व्यक्ति बनने के साथ बेहतर समाज के निर्माण में योगदान देता है।
शास्त्री जी मंगलवार को अंबेडकर चैराहे के निकट श्री बांके बिहारी जन कल्याण समिति द्वारा आयोजित श्रीरामकथा के तृतीय दिवस प्रवचन कर रहे थे। सत्संग के महात्म्य को ग्रहण करते हुए मुख्य यजमान राकेश पोरवाल श्रीमती ऊषा पोरवाल एवं समस्त श्रीराम कथा प्रेमी भाव विभोर हो उठे।
महाराज जी ने सत्संग प्रभाव पर कहा कि एक घड़ी आधी घड़ी आधी में पुनि आधि, तुलसी संगति साधु की हरे हजारों व्याधि। यहां भजन -सुखी रहे संसार सब, दुखिया रहे न कोई, यह अभिलाषा साधु की भगवन पूरी होय….. ने सभी भक्तों को झूमने पर विवश कर दिया। महाराज जी ने सारांश में कहा कि सत्संग करके प्राणी मात्र सुखी हो सकता है। सत्संग व्यक्ति को समाज विरोधी, प्राणी विरोधी कृत्यों से दूर कर किसी को कष्ट न पहुंचानें तथा सबकी सहायता करने वाले भावों से भर देता है। महाराज जी ने यहां कहा कि लोग श्रीरामकथा पढ़ते है सुनते है। श्रीमदभागवत कथा पढ़ते और सुनते है, सुंदरकांड का पाठ प्रतिदिन करते हैं किंतु इनसे शिक्षा ग्रहण नही करते। सुबह प्राप्त ज्ञान को शाम होते ही भुला देते हैं तथा फिर रावण जैसे आचरण में आ जाते हैं। यदि व्यक्ति ने अपने आसुरी वृत्ति वाले आचरण को नहीं बदला तो वह सफल संसार के लिए एक व्याधि बनकर ही सामने आयेगा। उसे सत्संगति भी सभी रुचिकर नही लगेंगी। वह साधुजनों का उपहास उड़ा अपने को विशेष विद्वान प्रकट करने की कोशिश में रहेगा और व्याधियों से घिरकर नारकीय कष्ट भोगने जायेगा।
आगे महाराज जी ने शिव महिमा का गुणगान किया। शिवजी संसार के सबसे बड़े वक्ता हैं। शिवजी परम गुरू हैं अगर इंसान को कोई गुरू न मिले तो उसे बाबा शंकर को अपना गुरू मान लेना चाहिए। तुलसीदास जी ने शंकर जी को जगत गुरू कहा है। वीर बजरंगवली शंकर जी के अवतार हैं अतः उन्हें तुलसी बाबा ने गुरू स्वयं कहा है।
जय जय हनुमान गुसाई, कृपा करहु गुरु देव के नाई।
आगे राजा हिमांचल की कहानी एवं माता पार्वती के जन्म का वृतात सुनाया और हिमांचल राजा और रानी मौनी पार्वती माता की झांकी दिखाकर सभी को भाव विभोर कर दिया।

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