उरई। गरीबों की खाद्य सुरक्षा से जुड़ जाने के कारण बेहद संवेदनशील हो चुकीं सार्वजनिक वितरण प्रणाली की हालत जिले में अधिकारियों की मंशा ठीक न होने की वजह से सुधर नही पा रही है। जिला मुख्यालय तक पर कोटेदार मनमानी से बाज नही आ रहे। इसके बावजूद पूर्ति विभाग की तंद्रा नही टूट रही।
भारत सरकार और प्रदेश सरकार दोनों ने गरीब परिवारों की अस्तित्व रक्षा के लिए नियंत्रित मूल्य की सरकारी दुकानों की व्यवस्था को पारदर्शी और सुचारू बनाने की मंशा जताई है। इसके बाद उम्मीद की जाती थी कि प्रशासन इसमें गंभीरता दिखायेगा। लेकिन 12 वर्ष दबी रहने के बाद भी जो पूंछ टेढ़ी की टेढ़ी रहती है वह इतनी जल्दी सीधी कैसे हो सकती है। इसलिए हृदय हीनता के पर्याय बने अधिकारियों ने सरकारों की एक कान से सुनी और दूसरे कान से निकाल देने की अपनी आदत को बनाये रखा है। जिसकी वजह से कोटेदार निरंकुशता से बाज नही आ रहे।
जिला मुख्यालय पर शहर के वार्ड नं. 12 के कोटेदार की बदस्तूर बिगड़ी करतूत इस बात की गवाही देती है। पात्र गृहस्थी के राशन कार्ड धारक राजेंद्र नगर निवासी रामगोपाल वर्मा ने बताया कि उन्हें कोटेदार ने राशन और चीनी देने में मनमाने ढंग से कटौती कर दी। जब उन्होंने इस पर आपत्ति की तो कोटेदार झगड़े पर आमादा हो गया। इस दुकान से जुड़े अन्य कार्ड धारकों ने भी बताया कि उक्त कोटे पर घटतौली और कम सामग्री देने की शिकायत आम हैं। कोटेदार का व्यवहार भी काफी अभद्र है। शिकायत करने की कहने पर वह कहने लगता है कि जिले के सीनियर अधिकारियों तक को मंथली देता हूं कोई मेरा क्या बिगाड़ लेगा।
कोटेदारों की यह धारणा पूरे सिर पैर की भी है। जालौन ब्लाॅक के शहजादपुरा के कोटेदार के खिलाफ ग्रामीण 8 बार प्रार्थना पत्र दे चुके हैं। सभी शिकायतें प्रमाणित हैं फिर भी कोटेदार को जांच में क्लीन चिट दे दी जाती है। भ्रष्टाचार विरोधी वाहिनी के जिलाध्यक्ष अविनीश द्विवेदी भुआ वाले ने कहा कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली में जिले में हो रही घपलेबाजी की शिकायतों का पुलिंदा लेकर वे नई दिल्ली में प्रधानमंत्री कार्यालय में देने जायेगें तभी स्थिति में सुधार हो पायेगा।






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