0 पुराना संविधान लागू करने के मुद्दे पर जीत कर आई है नई कमेटी
cropped-27c0e33e-70ae-40cd-b9cb-6e01381eb0ce11.pngकोंच-उरई। कल यहां निपटे कोंच धर्मादा रक्षिणी सभा के चुनाव में आये अप्रत्याशित परिणामों के बाद अब नगर के लोगों खासतौर पर गल्ला व्यापारियों की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि नई कमेटी कब पुराना संविधान लागू करने का प्रस्ताव लाती है। नई कमेटी की जीत भी इसी महत्वपूर्ण मुद्दे को लेकर हुई है लिहाजा उम्मीद की जा सकती है कि संभवतः अपनी पहली ही बैठक में नई कमेटी यह प्रस्ताव ला सकती है।
नगर की सबसे बड़ी धार्मिक और सांस्कृतिक संस्था कोंच धर्मादा रक्षिणी सभा मूलतः गल्ला व्यापारियों द्वारा संचालित होती है। यद्यपि इसमें कुछ किसान प्रतिनिधि रखने का भी प्रावधान डाला गया था जिसके चलते किसानों के तीन सदस्य चुन कर धर्मादा की वर्किंग कमेटी का हिस्सा बनते रहे हैं। यहां गौर तलब यह है कि कमेटी के पदाधिकारियों का सीधा चुनाव नहीं होता था बल्कि नौ सदस्य व्यापारी वर्ग और तीन सदस्य किसान वर्ग के जो जीत कर आते थे, उन्हीं में से पदाधिकारियों का चुनाव आपसी सहमति के आधार पर कर लिया जाता था और अगर कभी वोटिंग की स्थिति बनती भी थी तो वही बारह सदस्य आपस में वोट करके पदाधिकारियों का चुनाव करते रहे हैं। निवर्तमान कमेटी ने संविधान में आमूलचूल परिवर्तन करके नई व्यवस्था लागू कर दी थी जिसमें किसानों को अपने मत से पदाधिकारियों का डायरेक्ट चुनने का अधिकार दे दिया गया था। संविधान में की गई इस तोडफोड़ को लेकर गल्ला व्यापारियों में भारी आक्रोश था। उनका मानना था कि गल्ला व्यापारियों की यह संस्था अब किसानों के हाथों में खेलने की चीज बन गई है और अपने किसान वोट बना कर संस्था पर मुस्तकिल कब्जा करने की भी स्थितियां बन सकती थीं। इस मुद्दे को अबकी चुनाव में खूब हवा मिली और नवनिर्वाचित मंत्री मिथलेश गुप्ता ने इसे मजबूत चुनावी मुद्दा बना कर व्यापारियों को भरोसा दिया कि वह जीते तो उनकी पहली प्राथमिकता पुराना संविधान लागू करना ही होगी। अब जबकि वे चुन कर आ गये हैं तो व्यापारियों में उम्मीद जगना स्वाभाविक है कि संविधान अपने मूल रूप में आ जाये।
क्या था पुराना संविधान…?
नगर के गल्ला व्यापारियों द्वारा कोंच में बीसवीं शताब्दी के तीसरे दशक में धर्मादा रक्षिणी सभा का गठन किया गया था और वर्ष 1927 में इसका पंजीकरण कोंच धर्मादा रक्षिणी सभा कोंच के नाम से कराया गया था। इसके प्रादुर्भाव काल में जो संवैधानिक व्यवस्था थी उसके मुताबिक गल्ला व्यापार के लिये मंडी में लाईसेंस धारकों के अलावा कुछ किसान भी मतदाता बनाये जाते थे और कुल 12 सदस्य चुने जाते थे जिसमें नौ व्यापारी और तीन किसान सदस्य होते थे। इन्हीं बारह सदस्यों में से अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, मंत्री, उपमंत्री, कोषाध्यक्ष तथा ऑडीटर पदों के लिये निर्वाचन किया जाता था, शेष छह कार्यकारिणी सदस्य होते थे। तहसीलदार इस कमेटी में पदेन सदस्य होते थे और एक सदस्य जिलाधिकारी नामित करके भेजते थे जो व्यापारी और किसान से इतर होता था। निवर्तमान कमेटी ने इस संविधान में भारी बदलाव किये थे और किसान भी पदाधिकरियों को चुनने के हकदार हो गये थे जो गल्ला व्यापारियों को खटक रहा था और वे संविधान को पुराने पैटर्न पर लाना चाहते थे जिसके चलते नई कमेटी के मंत्री ने इसे चुनावी मुद्दा बना कर मैदान मारा है।
क्या क्या कार्य हैं धर्मादा के…?
अपनी विशेषताओं, परंपराओं और अनुष्ठानों को लेकर लिम्का बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में स्थान पाने बाली तथा अयोध्या शोध संस्थान द्वारा वर्ष 2009 में किये गये देशव्यापी सर्वेक्षण के आधार पर देश की सर्वश्रेष्ठ मैदानी रामलीला का खिताब पाने की गर्वानुभूति करने बाली कोंच की विख्यात रामलीला का संचालन यही धर्मादा संस्था करती है। इसके अलावा बल्दाऊ धर्मशाला, बल्दाऊ मंदिर और कल्याणराय मंदिर की देखरेख का जिम्मा भी धर्मादा संस्था के पास ही है। हालांकि शुरुआती दौर में श्री संस्कृत पाठशाला का प्रबंधन भी धर्मादा के ही हाथों में था लेकिन कालांतर में इसे स्वतंत्र हाथों में कतिपय कारणों से जाना पड़ा।

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