कोंच। तहसील क्षेत्र के ग्राम नरी में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह ज्ञान यज्ञ में कथा व्यास पं. ब्रह्मानंद शास्त्री ने कहा कि सच्चा भक्त वही है जो अपने लिये कुछ नहीं करके अपने आराध्य के लिये ही करता है, अर्थात् जो कुछ भी करना है प्रभु के लिये ही करना है क्योंकि जीव का एकमात्र आश्रय परमात्मा ही है इसलिये हमारा निश्चय होना चाहिये, बना कर तुमको मौला खुद को वंदा कर लिया मैंने, अब मंहगा हो या सस्ता सौदा कर लिया मैंने।
कथा व्यास कहते हैं कि शुकदेवजी महाराज ने परीक्षित को बताया, पांडवों पर भगवान ने ऐसी कृपा की थी कि वे स्वयं अर्जुन के सारथी बन कर रहे, महाराज युधिष्ठिर को अपना बड़ा भाई माना और उनकी हर आज्ञा का पालन करते थे। भगवान इतने दयालु हैं कि बिना बुलाये विदुर के घर पहुंच गये और विदुरानी द्वारा प्रेमातिरेक में खिलाये गये केले के छिलकों को ही प्रेमपूर्वक ग्रहण कर लिया। परमात्मा का वास सब जगह है, बस जरूरत है उसे पहचानने की। जो भी उसे सच्चे मन से स्मरण करता है वह अवश्य ही उसे प्राप्त होता है। आज की कथा में उन्होंने गंगावतरण की मनभावन कथा सुनाते हुये कहा कि राजा सगर के पुत्रों के मोक्ष के लिये रघुवंश के तमाम राजाओं ने पतित पावनी गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिये नाना प्रकार के उपाय किये लेकिन किसी को भी सफलता नहीं मिली। इसी रघुवंश में भगीरथ नाम के एक प्रतापी राजा हुये, उन्होंने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिये घोर तपस्या की और अंततः वह उन्हें लाने में सफल रहे। उन्होंने कहा कि जो सुरसरि लोगों को पापों से मुक्त करने बाली है। इस दौरान परीक्षित की भूमिका में अयोध्याप्रसाद लंबरदार व उनकी पत्नी गिरिजादेवी रहे। वाद्ययंत्रों में ऑर्गन पर रामशरण, पैड पर दीप द्विवेदी एवं तबले पर शिशुपाल संगत कर रहे थे।






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