शनिवार को आखिर मुलायम सिंह ने जसवंतनगर के ताखा में शिवपाल के पक्ष में चुनावी सभा को सम्बोधित किया। उनके रुख को लेकर अनिश्चितता बरकरार है। शिवपाल के अलावा समाजवादी पार्टी के अन्य उम्मीदवारों के भी पक्ष में उनकी सभाएं होंगी या नहीं, यह नहीं कहा जा सकता। कभी वे गूढ़ होने का आभास देते हैं तो कभी लगता है कि उम्र के नाते उनकी सोच का संतुलन डगमगाने लगा है। ताखा की सभा में मुलायम सिंह ने अपने को शारीरिक, मानसिक रूप से पूरी तरह फिट साबित किया लेकिन बिना किसी का नाम लिये, बिना किसी की आलोचना किये उन्होंने जो भाषण दिया वह एकदम रूपहीन, गंधहीन और स्वादहीन नहीं था। उनका भाषण उनके भावी कदम को लेकर अटकलों को हवा देने वाला रहा है।
चुनावी घमासान चरम पर पहुंच रहा है और मुलायम सिंह राजनीतिक के परदे से अपने को अभी तक अदृश्य बनाए हुए थे। हालांकि उन्होंने शिवपाल के लिए और समाजवादी पार्टी के पक्ष में कुछ अन्य जगह सभाएं करने का ऐलान करके पार्टी की अपने कारण बिगड़ती हवा को कुछ दिनों पहले संभाला भी था, लेकिन इसके बाद उनकी तय सभाएं टाल दी गईं तो चर्चाओं का बाजार फिर से गर्म हो गया। राजनीतिक प्रेक्षक चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के समय से इस बारे में अटकलपच्ची करने में व्यस्त हो गए थे कि मुलायम सिंह ने जीवित रहते हुए ही अपने को राजनीति के सबसे अहम इवेंट चुनाव के सम्बंध में उदासीन बना लिया है। जिसे यह माना जाना चाहिए कि राजनीति में खुद के अप्रासंगिक होने का बोध उन पर पुत्र के साथ पार्टी अध्यक्ष और साइकिल सिम्बल को लेकर चुनाव आयोग तक पहुंची लड़ाई में बैकफुट पर पहुंचने की नियति की वजह से हावी हो चुका है।
लेकिन अपने को लेकर हर अनुमान को धता बताने पर आमादा मुलायम सिंह यादव अचानक शिवपाल के समर्थन में सभा करने के लिए उनके चुनाव क्षेत्र में पहुंचकर ही माने। उन्होंने अपने भाषण में अखिलेश को उनका नाम न लेकर इग्नोर किया और अनुज शिवपाल के लिए जमकर हमदर्दी भी उड़ेली लेकिन उन्होंने वहां असल में जो मैसेज दिया उसे राजनीति के बारीक सयाने ही पढ़ पाये होंगे। मुलायम सिंह के इस बाबत पूरे उपक्रम से लोगों में प्रभाव यह पड़ा कि शिवपाल अखिलेश से लड़कर जसवंतनगर में इतने कमजोर पड़ गये थे कि अगर मुलायम सिंह उनके लिए सभा करने से चूक जाते तो उन्हें चुनाव हार जाना पड़ता। सपा की अंदरूनी लड़ाई में शिवपाल के लगातार होते नीचे कद में इस मैसेज ने और ज्यादा गिरावट पैदा कर दी है।
शिवपाल ने कुछ दिनों पहले धमकी दी थी कि वे चुनाव के बाद अपनी नई पार्टी बनाएंगे। अगर चुनाव परिणामों में अखिलेश को बड़ी विफलता हाथ लगी तो उनके खिलाफ विद्रोह हो सकता है क्योंकि उन्होंने बड़े पैमाने पर पार्टी के मगरमच्छों के टिकट काटे हैं। शिवपाल बगावत के केंद्र बनकर भतीजे से हारी लड़ाई की बाजी पलटने का ख्वाब देख रहे हैं। एक पिता के नाते मुलायम सिंह को पुत्र पर मंडराते संकट की चिंता करना लाजिमी था। उन्होंने शिवपाल की दयनीय हालत साबित करके विपरीत चुनाव परिणाम की स्थिति में अखिलेश के लिए विपत्तिकारक स्थिति बनाने के उनके मंसूबे की हवा निकाल दी है। उन्होंने जसवंतनगर की जनता से कहा कि उनकी सारी गलतियां भूलकर शिवपाल को जिता देना। शिवपाल के लिए रहम की भीख मांगने जैसा उनका अंदाज लोगों पर क्या प्रभाव छोड़ गया होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
मुलायम सिंह ने इस सभा में अपने स्वास्थ्य को लेकर भी सफाई दी। उन्होंने कहा कि अमेरिका और इंग्लैंड के डाक्टर उन्हें रोगमुक्त होने का प्रमाणपत्र दे चुके हैं। इस सभा में मुलायम सिंह ने अखिलेश के कांग्रेस के साथ गठबंधन की कोई बुराई नहीं की जबकि कुछ दिनों पहले वे इस गठबंधन को करने के लिए अखिलेश पर बुरी तरह बरस चुके थे। कांग्रेस के साथ-साथ उन्होंने बुराई तो भाजपा और बसपा की भी नहीं की। टीवी चैनलों के सर्वे में विधानसभा में किसी दल को स्पष्ट बहुमत न मिलने की बात कही जा रही है। बेटे से खुद को नाराज साबित करने में लगे मुलायम सिंह क्या अंदरखाने हंग एसेंबली की स्थिति में बेटे की राह अनुकूल बनाने के लिए दूसरे दलों के साथ रिश्तों की चौसर बिछा रहे हैं।
मजे की बात यह है कि जब समाजवादी पार्टी का घोषणापत्र जारी हो रहा था उस समय लखनऊ में मौजूद होने के बावजूद मुलायम सिंह कार्यक्रम से नदारद थे। इसके बाद अखिलेश मुलायम से यह आग्रह करने गये भी नहीं कि वे उनके पक्ष में कुछ सभाएं सम्बोधित कर डालें। क्या उनके द्वारा प्रकारांतर से अपने पिता की यह उपेक्षा लिखी हुई पटकथा के अनुरूप किया जा रहा मंचन रहा ताकि अखिलेश अपने पिता की छाया से एकदम मुक्त होकर स्वतंत्र रूप से प्रदेश की राजनीति में अपनी विराट पहचान स्थापित कर सकें।
ताखा की सभा में मुलायम सिंह ने एक तरह से बहुत ही सात्विक भाषण दिया लेकिन उन्हें जानने वाले कहते हैं कि मुलायम सिंह कभी इतने सादा और संयमित नहीं हो सकते। इसके चलते उनके ऊपरी तौर पर एकदम स्वतःस्फूर्त भाषण की वास्तविक गहराई को टटोलने की जरूरत राजनीतिक प्रेक्षकों को महसूस करनी पड़ रही है।
उधर अखिलेश ने हाल ही में उनके बहुत खास मंत्री शारदा प्रसाद शुक्ल को बर्खास्त कर दिया। अखिलेश ने यह जताया कि वे पिता होने के नाते मुलायम सिंह का अदब तो बहुत करते हैं लेकिन अब सपा में उन्हें पार्टी के दो केंद्र होना मंजूर नहीं हैं। भले ही दूसरा समानांतर केंद्र उनके पिता क्यों न हों। अब तो समाजवादी पार्टी में वही रहेंगे जो अखिलेश की जय-जय कर सकें। अखिलेश के मंतव्य को ऐसा समझा जाये तो लगेगा कि मुलायम सिंह और उनमें नूराकुश्ती नहीं वास्तविक जंग चल रही है। इस लाइन पर सोचने वालों को इसलिए यह लगता है कि मुलायम सिंह चुनाव परिणाम आने का इंतजार कर रहे हैं जिसके बाद वे कोई न कोई अप्रत्याशित कदम जरूर उठायेंगे। ताखा में दिये गये उनके भाषण के गूढ़ार्थ को डिकोड करने वाले एक वर्ग का एंगिल ऐसा भी है।







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