
उरई। यह कहानी है उस मां की जो आशनाई के आगे ममता को भूल बैठी। यह ऐसे बच्चों की भी कहानी है जो इस निष्ठुरता के बावजूद बड़े होने पर मां से प्यार मांगने दिल्ली से चलकर पचनदा के बीहड़ों के लिए कुख्यात इस अनजान वतन में भटकते हुए आ पहुंचे।
दिल्ली में बलिया का इखलाख अपनी बीबी आशना खातून के साथ मजे की गृहस्थी चला रहा था। दोनों के चार बच्चे भी हो गये थे। उम्मीद नही की जा सकती थी कि इस मोड़ पर आशना का किसी गैर मर्द से इश्क का भूत सवार हो सकता है।
इखलाख एक फैक्ट्री में काम करता है। उन दिनों उसके साथ जालौन जिले के अमीटा
का रहने वाला राजेश अहिरवार भी उसी फैक्ट्री में काम करने लगा। इखलाख और राजेश में ज्यादा छनी तो राजेश का उसके घर भी आना-जाना शुरू हो गया। यह सन् 2003 की बात है। इसी मेल-मिलाप में आशना राजेश से आंख लड़ा बैठी और एक दिन चारों बच्चों को अनाथ छोड़कर उसके साथ भाग निकली।
कई वर्ष गुजर गये। राजेश यहां सरसौंखी गांव में आशना के साथ रहने लगा। आशना ने नाम बदलकर आशा कर लिया। राजेश के साथ भी उसके चार मासूम बच्चे हैं। रोशनी (11वर्ष), पूजा (9वर्ष), तनिष्क (7वर्ष) और अंशिका (2वर्ष)। इस बीच इखलाख के साथ जन्में उसके बच्चे बड़े हुए तो उन्हें अपनी मां की याद सताने लगी। मां को ढूढ़ते-ढूढ़ते उसका लड़का इरफान (18वर्ष), बहन शमसीर उर्फ बॉबी (16वर्ष) के साथ सोमवार को उरई पहुंच गये जहां उनकी संयोग से अपनी मां से मुलाकात भी हो गई।

उन्होंने मां से वापस चलने को कहा तो वह बोली कि यहां जो मासूम है उनका क्या होगा। उसके बच्चे बोले जो हम लोगों का हुआ था जब तुम अब्बा को छोड़कर राजेश के साथ चली आई थी। जिददोजहद इतनी बढ़ी कि सरसौंखी में 100 नंबर की गाड़ी पहुंच गई। लेकिन पुलिस भी क्या करती। इरफान और बॉबी को समझाया गया कि मां को ले जाकर क्या करोगे वो तो हिंदू हो गई है।
बच्चे बोले मां तो मां होती है हमे उसके मुसलमान हिंदू होने से कोई सरोकार नही है। आखिर में फैसला यह हुआ कि आशना उर्फ आशा रहेगी तो सरसौंखी में ही लेकिन अपने दिल्ली में रह रहे बच्चों के पास भी आती-जाती रहेगी। बहरहाल यह समझौता कितना निभेगा, फिल्म और सीरियल से भी ज्यादा सस्पेंस भरी इस रियल स्टोरी का अंजाम क्या होगा यह अभी कोई नही कह सकता।






Leave a comment