किस्सा योगी का, अपनों तक को भांपने में हो रही मुश्किल

खांटी राजनीतिज्ञ से ज्यादा कूटनीतिक पैंतरेबाज साबित हो रहे हैं योगी आदित्यनाथ। उनकी पार्टी का ही एक वर्ग मुगालते में है कि राज-काज योगी के बूते की बात नहीं है इसलिए उनकी सरकार अंतरिम है और इस नाते वे घात लगाये बैठे हैं कि कब योगी सत्ता सिंहासन से नीचे आएं और कब वे लपक कर उनकी जगह पहुंचें। लेकिन सही बात यह है कि ऐसा सोचने वालों की हालातों की नब्ज पर कोई पकड़ नहीं है। आदित्यनाथ योगी होकर भी बेहद कैलकुलेटिव हैं। उन्होंने बहुत पहले देश के सबसे बड़े सूबे की गद्दी तक पहुंचने की ठान रखी थी और इसके लिए वे लम्बे समय से कारगर तरीके से गोटियां खेल रहे थे। अंदाजा यह था कि कट्टर हिंदुत्ववादी लाइन को अख्तियार करने की वजह से योगी यूपी जैसे राज्य में कभी स्वीकार नहीं हो पाएंगे लेकिन योगी ने सारे अनुमान फेल कर दिये। उन्होंने जोखिम भरी राजनीतिक राह पर चलकर सोचा हुआ मुकाम हासिल करके जो करामात दिखाई है उससे उनका सिक्का जम जाना स्वाभाविक है। लेकिन योगी का महत्वाकांक्षा का यह सबसे पहला प्रमुख पड़ाव भर है जबकि उनकी मंजिल अभी इसके बहुत आगे है।

ऐसा नहीं है कि पीएम नरेंद्र मोदी को योगी की अति महत्वाकांक्षा का इल्हाम न हो, लेकिन योगी की यह खूबी है कि यूपी का मुख्यमंत्री बनने के बाद वे मोदी को इस बात में आश्वस्त करने में कामयाब हो रहे हैं कि उनके पास अभी प्रतीक्षा के लिए बहुत वक्त है। इस कारण वे कहीं से उनके आड़े आने वाले नहीं हैं। योगी ने कहा कि वे राहुल गांधी से एक वर्ष छोटे हैं और अखिलेश से एक वर्ष बड़े। जब उन्होंने यह बताया तो वे न तो राहुल को संबोधित कर रहे थे न अखिलेश को। उन्हें यह प्रसंग छेड़कर पीएम मोदी को संदेश देना था और वे इसमें पूरी तरह सफल रहे।

योगी ने सुनियोजित ढंग से अपने को शोपीस सीएम के रूप में पेश करने की चेष्टा की लेकिन सही बात यह है कि वे कच्ची गोलियां नहीं खेल रहे हैं। योगी मंत्रियों को विभाग वितरण के मामले में हाईकमान के इतने ही अधीन होते तो गृह विभाग अपने पास नहीं रख सकते थे। प्रधानमंत्री मोदी की भी इच्छा थी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की भी कि किसी सक्षम नेता को गृह मंत्री बनाकर इस मामले में वर्षों से चले आ रहे गतिरोध को तोड़ें लेकिन योगी ने वही किया जो उनके लिए मुफीद था। इसके बावजूद भाजपा हाईकमान उनसे खुश है क्योंकि उसे खुश रखने की कला योगी को अच्छी तरह मालूम है। हर भाषण में वे पीएम मोदी और अमित शाह की अपने ऊपर मेहरबानी के गुणगान का सम्पुट लगाना नहीं भूलते। भाजपा शासित किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री की तुलना में वे इस मामले में बहुत आगे हैं। उन्होंने तो इंतहा कर दी जब यह कहा कि लोग तो साधू-संतों को भीख तक नहीं देते मोदी ने तो देश के सबसे बड़े राज्य की सत्ता उनके हवाले कर दी। योगी का अंदाज-ए-बयां ऐसा है तो मोदी और शाह क्यों न उन पर वारे जाएंगे।

लेकिन योगी आदित्यनाथ के पत्ते भांप पाना इतना आसान काम नहीं है। चुनाव के समय भाजपा का प्रतिनिधिमंडल बार-बार निर्वाचन आयोग से मिलकर डीजीपी जावीद अहमद को हटाने की मांग के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाए था लेकिन योगी आदित्यनाथ ने उन्हें तक अभी नहीं छुआ है। जो नौकरशाही उऩके सीएम बनने से सिहर रही थी वह अब योगी के धैर्य की कायल दिख पड़ रही है। अफसर कहने लगे हैं कि योगी को पहली बार सत्ता की कमान संभालने का मौका भले ही मिला हो लेकिन वे अपने किसी भी पूर्ववर्ती की तुलना में ज्यादा परिपक्व हैं।

नौकरशाही के खिलाफ उग्र तेवर दिखाने वाले योगी राज्य की सरकार के मुखिया बनने के बाद इतने कूल-कूल हो गए हैं कि लोगों को उनका बदला रवैया पहेली सा लग रहा है। हालांकि सही बात यह है कि योगी को अंदाजा है कि उन्हें जितना खतरा बाहर से नहीं है उतना अपनी ही पार्टी में है। राज-काज के किसी भी शक्ति संतुलन में नौकरशाही महत्वपूर्ण हो जाती है इसलिए योगी नौकरशाही को अपने प्रति सशंकित नहीं होने देना चाहते। वे तबादले करेंगे लेकिन एक नीति के तहत ताकि कोई अन्यथा संदेश न जाए। मायावती की तरह हनक दिखाने के चक्कर में नौकरशाही को बार-बार दंडित करने से परहेज करके योगी ने अफसरों को न केवल राहत प्रदान की है बल्कि उन्हें अपना मुरीद बनने को मजबूर कर दिया है। कूल-कूल बने रहकर अपने उद्देश्यों के लिए नौकशाही की क्षमताओं का अधिकतम इस्तेमाल कोई सरकार कैसे कर सकती है योगी का अंदाज कुछ दिनों में लोगों को इस हुनर से बखूबी परिचित कराएगा।

शासन-प्रशासन की प्राथमिकताओं के मुताबिक कार्ययोजना बनाने की बजाय योगी ने सिलेक्टिव तरीके से काम करने की नीति जान-बूझकर अपना रखी है। दरअसल उनकी सोच यह है कि काम शुरू करने के पहले उनको शिखर पर अपने पांव मजबूती से जमा लेने की चिंता करनी चाहिए और वे यही कर रहे हैं। उनकी प्राथमिकताएं इसी के मुताबिक हैं। चुनाव के पहले लव जिहाद के खिलाफ मोर्चा डांटने की कारगुजारी की अनुगूंज के बीच उन्होंने एंटी रोमियो अभियान जिस शिद्दत के साथ छेड़ा उसके निहितार्थों को समझा जाना चाहिए। बूचड़खाने के खिलाफ मुहिम में इतनी ऊर्जा लगाने के पीछे भी एक खास मंतव्य है, जिसे समझने वाले समझ रहे हैं। 5 कालीदास मार्ग स्थित सीएम आवास के रखरखाव में भी उन्होंने रणनीतिक कौशल से काम लिया। सीएम आवास के गेट पर स्वास्तिक बनाने की बात हो या सीएम के बंगले के भीतर हिंदू धार्मिक विश्वासों की हर कदम पर परवाह करने की बात, हरेक में एक सधी हुई चाल है। सीएम आवास के गृहप्रवेश के लिए हिंदू मुहूर्त विधान का पूरा ख्याल उन्होंने रखा जिसकी वजह से चैत्र प्रतिपदा की तिथि आने तक वे 5 कालीदास मार्ग पर आने की बजाय वीवीआईपी गेस्ट हाउस में ही डेरा डाले रहे। गृहप्रवेश के अनुष्ठान का मुख्य अतिथि उन्होंने योगगुरु बाबा रामदेव को बनाया। यह गोरखनाथ पीठ की उस अवधारणा के अऩुरूप रहा जिसने धार्मिक पवित्रता को किसी जाति विशेष की जागीर मानने से इंकार किया है। बगावत की इस परम्परा का निर्वाह करते हुए योगी आदित्यनाथ ने बगावत की बू तक लोगों को महसूस नहीं होने दी। यही तो उनका कौशल है।

योगी आदित्यनाथ ने यह सारे ठठकर्म इसलिए किेए हैं ताकि भाजपा में सर्वोच्चता का सबसे मुख्य आधार धर्म ध्वजावाहक के रूप में अपने को सबसे अग्रणी सिद्ध करना है इसलिए उन्होंने सब कुछ भाजपा में व्याप्त वर्गसत्ता का नायक बनने के लिए किया है। लेकिन अभी इसे उनके राजकाज की शुरुआत नहीं मानी जानी चाहिेए। योगी अभी पिकप बना रहे हैं, स्टार्ट होंगे तब उनका स्टेयरिंग कैसे घूमेगा, यह देखने वाली बात होगी। कहने का मतलब यह है कि योगी जैसा लोगों को लग रहा था वैसे सरल नहीं हैं। वे गूढ़ हैं, पेचीदा हैं इसलिए उनकी उड़ान आसमान की किन बुलंदियों तक पहुंचेगी यह अंदाजा लगाना अभी से बहुत मुश्किल होगा।

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