उत्तर प्रदेश केंद्र से भी ज्यादा वन मैन शो की राह पर आगे बढ़ता नजर आ रहा है। योगी आदित्यनाथ की टीम में दो उप मुख्यमंत्री शामिल हैं। भले ही उनकी डिमांड खुद योगी से कराई गई हो लेकिन सब जानते थे कि यह उन पर ऊपर से थोपी गई व्यवस्था है। योगी होने के नाते राज-काज की साम, दंड, भेद की कला से उनका कोई परिचय नहीं होगा। ऐसे अनुमान के चलते भाजपा हाईकमान ने उन्हें केवल शोपीस के लिए मुखिया बनाया और दो उप मुख्यमंत्रियों की व्यवस्था उनके साथ इसलिए की कि खांटी राजनीतिज्ञ होने के नाते शासन सूत्रों के सही संचालन के दायित्व उनसे पूरा करा लिए जाएंगे लेकिन एक पखवाड़ा भी नहीं बीता कि इन अनुमानों की हवा निकल गई। जिस तरह से काम हो रहा है उससे जाहिर होता जा रहा है कि अन्य मंत्रियों को ही नहीं उप मुख्यमंत्री तक को पता नहीं रहता कि योगी के इरादे क्या हैं और होना वही है जो योगी चाहते हैं।
जाहिर है कि योगी यह साबित करते जा रहे हैं कि शोपीस वे नहीं उनके साथ सम्बद्ध किए गए उप मुख्यमंत्री हैं। मीडिया तो यह तक भूल गई है कि उत्तर प्रदेश में पहली बार दो उप मुख्यमंत्री तैनात किए गए हैं। मीडिया की सुर्खियों में केवल योगी का नाम छाया हुआ है। योगी के समानांतर कोई और नहीं है।
यह स्पष्ट हो चला है कि योगी की स्टाइल अलग है। आक्रामक और नाटकीय अंदाज की बजाय योगी खामोशी और सहजता के साथ बड़े बदलावों को अंजाम दे रहे हैं। शासन के हर सेक्टर में उनकी छाप लोग अब पहचानने लगे हैं। सोशल मीडिया पर भाजपा विरोधी तबका तक यह लिखने लगा है कि योगी मोदी से भी बेहतर हैं जिन्होंने तीन वर्ष गुजर जाने के बाद अभी तक कोई ऐसा काम नहीं किया जिसमें उनके हस्तक्षेप को लोग महसूस कर सकें जबकि योगी ने शपथ ग्रहण करते ही अपने अंदाज के फैसले लागू कराने की क्षमता प्रमाणित कर डाली है।
इस तरह के प्रचार से योगी का कद भले ही बढ़ रहा हो लेकिन उन्हें यह अच्छी तरह एहसास है कि प्रदेश में कुछ कर दिखाने के लिए उन्हें राज्य की सत्ता की पिच पर मजबूती से पैर जमाकर दिखाना होगा। जिसके लिए अपरिहार्य है कि पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व पूरी तरह उनके साथ हो। अगर उन्होंने बिना आगा-पीछे सोचे सरपट भागने की कोशिश की तो पीएम मोदी को लोग उनके प्रति संशयग्रस्त कर देंगे इसलिए उनकी पहली प्राथमिकता मोदी को हर तरह से विश्वास में लेना है। प्रदेश की राजधानी लखनऊ की हजरतगंज कोतवाली का आकस्मिक निरीक्षण उन्होंने सबसे पहले किया। जिसमें कानून व्यवस्था और अपराध नियंत्रण के बिंदुओं की चर्चा न कर उन्होंने साफ-सफाई की नसीहत देने पर पूरा जोर दिया। लोगों के मन में इसके औचित्य को लेकर तमाम सवाल थे लेकिन अब यह स्पष्ट होता जा रहा है कि योगी बहुत दूर तक की सोचते हैं। वे पेशेवर राजनीतिज्ञों की तुलना में कहीं बहुत ज्यादा मंजे हुए खिलाड़ी हैं।
मोदी ने स्वच्छ भारत के नारे के साथ इतिहासपुरुष के रूप में अपने को स्थापित करने के लिए जो आगाज किया था उसमें पार्टी शासित दूसरे राज्य उनके साथ कर्मकांडी स्तर से ज्यादा कदमताल नहीं कर पा रहे। योगी ने मोदी के लिए इस नारे को साकार रूप देने का महत्व बखूबी समझा। इसलिए अपने को मुख्यमंत्री बनाने के अहसान का रिटर्न गिफ्ट मोदी को देने के बतौर उन्होंने यूपी को साफ-सफाई के मामले में देश का सबसे अग्रणी मॉ़डल राज्य बनाने की योजना बुन ली। पुलिस तक को साफ-सफाई में प्रमाणिकता से जुटाने के पीछे योगी का निहितार्थ स्पष्ट होता जा रहा है। मोदी का भरोसा जीतने का कारगर उपाय इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता। यह यूपी में स्वच्छंद तरीके से काम करने के लिए कितना लाजिमी है, यह बात योगी से ओझल नहीं है।
योगी ने पार्टी के विधायकों को अनुशासन की हद में बांध दिया है। कल्याण सिंह के समय ही भाजपा को चाल, चरित्र और चेहरे के मामले में अलग दिखाने का दंभ भरा गया था। केंद्र में लालकृष्ण आडवाणी ने भाजपा की अलग छवि के लिए पार्टी विद् ए डिफरेंस का स्लोगन गढ़ा लेकिन व्यवहार में वे इसे चरितार्थ नहीं कर पाये। इस अधूरे काम को पूरा करने का बीड़ा योगी अपनी पारी में बिना औपचारिक ऐलान के उठा चुके हैं। उन्होंने जिस तरह से हनक बनाई है उसके मद्देनजर कोई विधायक उनके द्वारा बनाई गई लक्ष्मण रेखा को लांघने की जुर्रत शायद ही कर पाए। विधायक ही नहीं मंत्रियों पर भी उन्होंने बंदिशों की जकड़ लगाई है। प्रदर्शन से बचें, हूटर बजाकर और काफिले के साथ न चलें, अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग के लिए दबाव न डालें, निजी स्टाफ में स्वच्छ छवि के लोगों को ही शामिल करें, योगी की यह आचार संहिता अंदर से भले ही मंत्रियों को भारी लग रही हो लेकिन उनकी हनक ऐसी है कि हर मंत्री ने लो-प्रोफाइल में रहकर काम करने की नियति स्वीकार कर ली है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं चुनाव अभियान में किसानों के कर्जमाफी जैसी तमाम बढ़बोली घोषणाएं की थीं जिनका अमल व्यवहारिक कारणों के चलते सत्ता में आने के बाद टेढ़ी खीर महसूस किया जाने लगा था पर योगी ने साफ कर दिया है कि पीएम के हर ऐलान को पूरा किया जाएगा। फिर चाहे वह कर्जमाफी का ऐलान हो या पिछली सरकार के समय जमीनों पर किए गए कब्जों को हटवाने का। उन्होंने अभी नौकरशाही को नहीं फेरा है, शायद वे यह कदम नवरात्र के बाद आगे बढ़ाएंगे लेकिन जमीनों पर कब्जे चिन्हित करने के लिए उन्होंने अफसरों के वर्तमान सेटअपर में ही प्रदेश, मंडल और जिला स्तर पर टास्क फोर्स के गठन की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इस कार्रवाई को फाइनल चट देने के लिए उनकी निगाह डीजी अभियोजन सूर्यकुमार शुक्ला को डीजीपी की कुर्सी पर लाने पर है जो कई जिलों में गरीबों के मकान-प्लाट बिना अदालती झंझट के दबंगों के कब्जे से खाली कराने की महारत दिखा चुके हैं।
योगी के दिमाग में यह नक्शा साफ है कि जमीनों-प्लाटों और मकानों पर अवैध कब्जे हटवाने में सफलता मिलती है तो उतर प्रदेश में कानून के राज की बहाली की दिशा में यह न्यूयार्क पुलिस के जीरो टालरेंस के फार्मूले से ज्यादा असरदार कार्रवाई होगी। योगी स्लो मोशन में काम कर रहे हैं जिसके पीछे उनकी रणनीतिक योजना है। लेकिन वे एक्शन में आने के पहले परफेक्ट प्लान बनाने में विश्वास रखते हैं इसलिए उनकी कार्रवाइयां स्थायी तौर पर परिणामपरक होंगी इसमें कोई संदेह नहीं है।
योगी ने अवैध बूचड़खाना बंद कराने जैसे मोर्चे पर अति सक्रियता दिखाई, शायद वे हिंदुत्व के एजेंडे को प्राथमिकता के साथ आगे बढ़ाने का संदेश देना चाहते थे ताकि भाजपा को चुनाव में समर्थन देने वाले वर्ग को तुरंत ही उनकी आकांक्षा के अनुरूप काम होने का अहसास कराया जा सके। लेकिन इस मामले में मुस्लिम मीट व्यापारियों से उन्होंने जिस तरीके से बात की उससे यह भी साफ हो गया कि वे शासन के किसी भी फैसले में हठधर्मिता से काम न लेकर सभी को विश्वास में लेकर आगे बढ़ने की कोशिश करेंगे। मुस्लिम समाज के लिए उनका यह रुख बेहद आश्वस्तकारी है। इसी कारण उनसे मिलकर लौटने के बाद तत्काल मीट व्यापारियों ने अपनी हड़ताल खत्म करने का ऐलान कर दिया।
भाजपा ने भारतीय संस्कृति की दुहाई हमेशा दी है लेकिन अभी तक अमल में इसके लिए कोई शिद्दत किसी स्तर पर देखने को नहीं मिली। योगी ने सीएम आवास पर फलाहार पार्टी का आयोजन करने से लेकर रहन-सहन और खान-पान में दिनचर्या के स्तर पर जो व्रत अपनाए हैं उनसे ऐसा लगता है कि पहली बार सत्ता के केंद्र में भारतीय संस्कृति और तौर-तरीकों को लाने का काम शुरू हुआ है। ईमानदारी और सादगी की मिसाल पेश करने की जो उन्होंने ठानी है उसका नैतिक प्रभाव राज-काज में हर स्तर पर महसूस किया जाने लगा है।
योगी राजनीतिक दांव-पेंच में भी कमतर नहीं हैं। मुलायम सिंह यादव के दूसरे पुत्र प्रतीक और उनकी पत्नी अपर्णा के साथ लगातार सम्पर्क बनाए रखकर प्रतिपक्ष को परेशान रखने का ऐसा ताना-बाना वे बुन रहे हैं जो समाजवादी पार्टी को न उगलते बनने वाला है न निगलते। लब्बोलुआब यह है कि योगी भले ही पहली बार सत्ता के गलियारों में पहुंचे हों लेकिन सरकार चलाने के गुण उनमें वे अच्छे-अच्छों से ज्यादा घुटे-मंजे हुए हैं।







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