उरई। साधारण किसान से बिजनेस में शिखर को छूने तक जा पहुंचे राघवेंद्र सिंह भाई जी का सफर किसी फिल्म से कम दिलचस्प, नाटकीय और रोमांचक नही है। महेंद्रा ट्रैक्टर्स में सिर्फ 8 वर्ष पहले उन्होंने फ्रेन्चाइजी लेकर छोटी सी शुरूआत की थी। लेकिन कुछ ही वर्षाें में अब वे उस मुकाम पर हैं जहां महेंद्रा ट्रैक्टर्स ने उन्हें उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा करोबार के लिए नवाजने का एलान किया है। 2016-17 के वित्तीय वर्ष में उन्हें उत्तर प्रदेश में महेंद्रा ट्रैक्टर्स के सबसे अग्रणी डीलर के सम्मान के लिए चुना गया है।

घर में कोई नही जानता था बिजनेस की एबीसीडी
माधौगढ़ तहसील के छोटे से एक गांव अकबरपुर के रहने वाले राघवेंद्र भाई जी का परिवार पुस्तैनी तौर पर किसान है जिसे बिजनेस की एबीसीडी का भी पता नही था। उन्होंने एमएससी, एलएलबी किया जिसके बाद घरवालों की इच्छा थी कि वे नौकरी करें या वकालत। पर उन्होंने कारोबारी बनने की ठान रखी थी। घर के बड़े-बूढ़ों को लगा कि कारोबार का कोई बड़ा तजुर्बा होने से वे इस सनक में कहीं पुरखों की खेती ठिकाने न लगा बैठें। पर उनके इरादे की दृढ़ता और विजन से घरवाले भी प्रभावित हो गये। माता-पिता के अलावा भाईयों ने भी उन्हें करोबार का जोखिम उठाने में साथ देने का निश्चिय कर लिया। हालांकि उन्होंने बिजनेस में जो शुरूआती प्रयोग किये वे बहुत कामयाब नही रहे। पहले उन्होंने मिनी शुगर मिल खोली, इसके बाद मिल्क चिलिंग का प्लांट लगाया, फिर उरई में रहकर ट्रांसपोर्ट का बिजनेस स्टार्ट किया। इन प्रयोगों से उन्होंने बहुत सीखा जिससे अपेक्षित सफलता न मिलने के बावजूद उनकी औद्योगिक जिजीविषा बढ़ती चली गई। प्रयासों की दूरगामी संभावनाओं को परखने में उन्हें छठी इंद्रिय और तीसरे नेत्र के जाग्रत होने जैसी शक्तियां हासिल हो गईं।
2009 का वर्ष साबित हुआ टर्निंग प्वाइंट
2009 का वर्ष उनके लिए टर्निंग प्वाइंट रहा। उन्होंने महेंद्रा ट्रैक्टर्स की फ्रेंचाइजी लेकर काम शुरू किया। इसमें किसानों के साथ संवाद करके भरोसा जीतने का जो कमाल उन्होनें दिखाया वह ऊंची मंजिल तय करने के मामले में उनकी सीढ़ी बना। 2011 में उनकी प्रोग्रेस से प्रभावित होकर कंपनी ने उनको रेगुलर डीलरशिप दे दी। पहले साल उनके शो-रूम से केवल डेढ़ सौ प्लस ट्रैक्टर बिके थे। आज उत्तर प्रदेश में महेंद्र ट्रैक्टर्स के साढ़े सात सौ करोड़ के सलाना टर्न ओवर में सबसे ज्यादा भागीदारी का श्रेय उन्होंने हासिल कर दिखाया है। जबकि इस वर्ष परिस्थितियां पूरी तरह विपरीत थीं। सूखा पड़ जाने से खेती चैपट हो गई थी, काॅमर्शियल डिमांड भी खनन पर कोर्ट का शिकंजा जकड़ जाने से सिकुड़ गई थी और गत वर्ष के अंत में नोट बंदी के फैसले ने तो जैसे बिजनेस के ताबूत में अंतिम कील ही ठोक दी थी।
35 देशों में बिजनेस के ज्ञान के लिए फांकी धूल
भाई जी से जब पूंछा कि बिजनेस का इतना जबर्दस्त हुनर खानदानी पृष्ठभूमि न होते हुए भी आपने कैसे सीखा तो बात सामने आई कि इसकी चुनौती को उन्होंने संजीदगी से लिया और खिलवाड़ न करके वे बिजनेस की बारीकियों को समझते और अपनाते गये। भाई जी ने लगभग 35 देशों की यात्रा बिजनेस कांफ्रेस में भाग लेने के लिए की। जिससे दुनियां भर के उद्यमियों की सोच और फार्मूले को जानने का अवसर उन्हें मिला। देश में भी महेंद्रा की जितनी बैठकें होती हैं, कितनी भी दूर क्यों न हों भाई जी कोई आलस न करके उन्हें अटेंड करने पहुंचते हैं। ग्राहक को सर्विस देने के मामले में क्विक रहने का गुण उन्होंने कारोबारी सम्मेलनों में ही सीखा।
किसानों को मुरीद बनाने का अदभुद गुण
किसानों से लगातार संपर्क में रहना और ट्रैक्टर की खराबी की किसी भी शिकायत पर असाधरण तेजी से रेस्पांड करना उनकी खासियत है। उन्हें अपनी इंजीनियर, मैकेनिक को किसान के दरवाजे तक पहुंचाने में संकोच नही रहता। किसान शंका लेकर शो-रूम पर आये तो वे तब तक उसको समय देते है जब तक वह संतुष्ट न हो जाये जिसमें उनका धैर्य नही टूटता। जिले में ट्रैक्टर के कुल बिजनेस में 60 परसेंट से ज्यादा शेयर की स्थिति उन्होंने यूं ही नही बना ली। जो किसान उनसे जुड़ जाता है वह इतना मुरीद हो जाता है कि हमेशा के लिए उन्हीं का बन जाता है।
खड़ा कर लिया बड़ा बिजनेस अंपायर
उनका बिजनेस अब इतने विस्तार पर है कि वे पूरा अंपायर खड़ा करके बुंदेलखंड के एक बड़े बिजनेस टायकून बनने की ओर अग्रसर हैं। टाटा हिटैची की भी डीलर शिप उनके पास आ गई है और टीवीएस की भी। कह सकते हैं कि भाई जी का बिजनेस के क्षेत्र में तरक्की का यह आकर्षक सफर नव उद्यमियों के लिए बहुत ही स्फूर्ति और प्रेरणा दायक है।

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