मुलायम सिंह यादव के अनुज और समाजवादी पार्टी के कर्ताधर्ताओं में से रहे शिवपाल सिंह यादव की मुलाकात सीएम योगी आदित्यनाथ से हुई। पहले तो यह लगा कि सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी शिवपाल यादव को दिव्य पुरुष के रूप में तसलीम कर रखा है इसलिए उनसे मुलाकात उन्होंने इस नाते रखी होगी ताकि उनका मुख्यमंत्री बनने के बाद हैसियत के मुताबिक कद ऊंचा हो सके लेकिन यह मुलाकात केवल 10 मिनट में सिमट गई। जाहिर हो गया कि योगी आदित्यनाथ कहीं से भी हीन भावना से ग्रसित नहीं हैं। संस्कारवान होने के नाते जो आदमी कई वर्षों तक प्रदेश सरकार वरिष्ठ मंत्री का ओहदा संभालता रहा हो, शिष्टाचार के नाते उसने अगर आग्रह किया है तो मुख्यमंत्री को उससे मुलाकात जरूर करनी चाहिए। योगी आदित्यनाथ ने केवल एक सामाजिक मर्यादा का निर्वहन उनसे मुलाकात करके किया लेकिन 10 मिनट में उन्हें योगी से कोई गूढ़ मंत्रणा करने का मौका नहीं मिल पाया होगा, यह बात तय रूप में कही जा सकती है। उन्होंने योगी को मुख्यमंत्री बनने की बधाई दी होगी और योगी ने इसके बदले उन्हें प्रति धन्यवाद देकर चाय पिलवाई होगी। इस बीच में पूरी मुलाकात निबट गई होगी।
इस बीच शिवपाल यादव की खूबियों के बारे में कई चीजें स्मरण की जानी चाहिए। इन पंक्तियों का लेखक उनमें से है जिन्होंने शिवपाल का राजनीतिक आदिम जीवन देखा है। मुलायम सिंह भले ही कहते हों कि जब वे इमरजेंसी में बंद थे तो शिवपाल गुपचुप रूप से उनके लिए खाना लेकर आते थे और उनका संदेश लेकर कार्यकर्ताओं को पहुंचाते थे। पार्टी की सेवा में उन्होंने उसी समय से अप्रतिम योगदान किया था, लेकिन सही बात यह है कि इमरजेंसी के समय मुलायम सिंह यादव खुद भी बहुत छोटे स्तर के नेता और सही कहा जाए तो उस समय की पार्टी के एक मामूली कार्यकर्ता थे। कोई यह नहीं कहता था कि उन्होंने पार्टी बचाने के लिए बहुत प्रयास किया हो तो उनके परिवार के लोग पार्टी की सेवा कर रहे थे, यह बात तो कोई मान ही नहीं सकता।
शिवपाल यादव से इन पंक्तियों के लेखक की मुलाकात सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी एसएन चक के आवास पर हुई थी। तब वे इटावा में पीएसी के कमांडेंट थे। हम लोगों ने साथ-साथ खाना खाया था। उस समय पंक्तियों के लेखक की बहुत गहरी मित्रता कमलेश पाठक से थी। हालत यह थी कि शिवपाल यादव ने कई बार इन पंक्तियों के लेखक से कहा कि भइया को समझाएं, कमलेश पाठक कुछ नहीं हैं। उन्हें आगे बढ़ाएं तो पार्टी का कुछ भला होगा। जहां तक मुझे याद पड़ता है शिवपाल यादव का इटावा से बाहर कोई कार्यक्रम उरई में पहली बार आयोजित हुआ था जो इन पंक्तियों के लेखक ने कराया था। जालौन जिले का एक गांव है कुरसेंड़ा, जहां के एक तांत्रिक थे शुक्ला जी, अभी भी होंगे, जिनके शिवपाल यादव परम शिष्य थे, उनका दावा था कि उन्हें जिन्न सिद्ध है। उऩका कोई मुरीद जिस सुगंध की मांग करे, अपने जिन्न के द्वारा वे उस सुगंध को अपनी हथेली की ऊपरी पोर मलकर सुंघा देते थे। शिवपाल सिंह यादव भी उनकी इस सिद्धि से बहुत चमत्कृत थे।
बाद में शिवपाल यादव का कद कमलेश पाठक जैसे मुलायम सिंह के वास्तविक तौर पर अनन्य सहयोगियों की तुलना में बढ़ता गया। इटावा में चुनावी नामांकन के समय उन्नाव के निवासी दरोगा आरपी सिंह की हत्या हुई। बात सही हो या झूठ लेकिन इसका आरोप शिवपाल यादव के ऊपर लगा। बहुत बाद में रहस्यमय परिस्थिति में एमएलसी अजीत सिंह उन्नाव में एक पारिवारिक आयोजन के दौरान मारे गये। जिसका रहस्य अभी तक नहीं खुला लेकिन संदेह की उंगलियां शिवपाल यादव के ऊपर उठीं। राजनीति में वीरभोग्या वसुंधरा के सूत्रवाक्य के मुलायम सिंह तो शुरू से मुरीद रहे लेकिन शिवपाल यादव ने इस सूत्रवाक्य को चरितार्थ रूप में कितना मजबूत किया उसका कोई सानी नहीं है। इसी राजनीति के आगे बढ़ने के चलते लगातार जनमानस में उपजी वितृष्णा का ही परिणाम रहा कि 2017 में भाजपा को उत्तर प्रदेश में न भूतो न भविष्यतो जैसा समर्थन मिला।
बहरहाल अखिलेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद कहीं न कहीं शिवपाल को यह अहसास हुआ कि सत्ता केवल बंदूक की नाल से निकलती है, यह उद्घोष पर्याप्त नहीं है इसलिए उन्होंने पार्टी में अपने को थिंक टैंक के रूप में स्थापित करने की जबर्दस्त कवायद की। समाजवादी दर्शन के तमाम मसीहा चाहे वह आचार्य कृपलानी हों या लोकनायक जयप्रकाश नारायण अथवा डा. राममनोहर लोहिया, उनकी जयंती या निर्वाण दिवस पर पैसे देकर इसीलिए प्रमुख हिंदी अखबारों में शिवपाल के नाम से उनके विचारों पर अग्रलेख छपते रहे लेकिन शिवपाल के सारगर्भित भाषण से जो लोग परिचित थे उन सबको यह भान था कि यह आदमी ऐसे लेख लिख ही नहीं सकता इसलिए लोग शिवपाल से कतई अप्रूव नहीं हो रहे थे बल्कि पेन प्रॉस्टीट्यूट मीडिया की कल्पना को वे इस आचरण में पूरी तरह प्रमाणिक प्राप्त कर रहे थे।
मुलायम सिंह ने बहुत गुणगान किया कि शिवपाल ने अखिलेश के मंत्रिमंडल के किसी भी सदस्य से ज्यादा काम किया है लेकिन इस सफेद झूठ पर कभी किसी को विश्वास नहीं रहा। वे लोक निर्माण मंत्री रहे। उन्होंने सड़क निर्माण में जैसी बर्बादी की उसका कोई सानी नहीं था। उनके पास सिंचाई विभाग का भी ओहदा रहा लेकिन सिंचाई अभियंताओं को सार्वजनिक रूप से टर्मिनेट और सस्पेंड करने की घोषणा करने के बाद वे क्यों उन्हें बचा लेते थे, यह किसी से छिपा नहीं था। शिवपाल ने योगी से मिलने का फैसला तब किया जब गोमती रिवरफ्रंट से जुड़़े उनके चहेते अधिकारी सीएम योगी द्वारा जांच की घोषणा के दायरे में आ गये। इसके साथ-साथ जवाहर बाग कांड की जांच सीबीआई ने टेकअप कर ली और इसकी आंच भी शिवपाल के करीब तक पहुंचती दिखने लगी।
शिवपाल इसी घटनाक्रम के घटाटोप के बीच सीएम योगी आदित्यनाथ से अपने बेटे आदित्य यादव के साथ जाकर मिले। योगी आदित्यनाथ को भी पता था कि इसमें जरा सी चूक मुलाकात का क्या अर्थ देगी, इसलिए उन्होंने मुलाकात के समय को बहुत सीमित कर दिया। जिसमें कोई डिटेल बातें सम्भव ही नहीं थीं। हलो-हाय करके शिवपाल को रुखसत हो जाना पड़ा। जाहिर है कि मामला चाहे गोमती रिवरफ्रंट का हो या जवाहर बाग कांड का, शिवपाल यादव अगर इन प्रकरणों में फंसते नजर आएंगे तो योगी उनका बचाव नहीं करेंगे। यह बहुत बड़ी आश्वस्ति है अन्यथा लोग कहने लगे थे कि नेताओं के मामले में चोर-चोर मौसेरे भाई का सूत्र सही समझा जाना चाहिए।
मुलायम सिंह यादव मोदी पर दबाव डालकर अपने दूसरे बेटे प्रतीक और बहू अपर्णा यादव की भी मुलाकात योगी आदित्यनाथ से करा चुके हैं। इसके बाद योगी आदित्यनाथ लखनऊ नगर निगम की कब्जियाई हुई जमीन पर प्रतीक और अपर्णा द्वारा बनवाई गई गौशाला का भी निरीक्षण कर चुके हैं। लेकिन जिन लोगों ने यह समझा था कि योगी के यह करतब समाजवादी पार्टी के भ्रष्टाचार और मनमानी के आगे उनके सरेंडर का द्योतक है, बहुत जल्दी उन्हें अपने आंकलन पर पुनर्विचार करना होगा। योगी राजनीतिक लाभ के लिए किसी भी धारा के आगे सरेंडर नहीं कर सकते इसलिए मुलाकातों के बावजूद उनके मुख्यमंत्री रहते हुए सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव, उनके बेटे प्रतीक यादव और बहू अपर्णा यादव का वे क्या हश्र करेंगे, इसका सिर्फ अनुमान लगाया जा सकता है।
मुलायम सिंह यादव को इस समय केवल अपने परिवार की चिंता है। उन्होंने अखिलेश को तो सेट कर ही दिया है। अब वे शिवपाल, प्रतीक और अपर्णा को सेट कराने की जद्दोजहद में लगे हैं। किसी समय उन्होंने कहा था कि अयोध्या विवादित स्थल पर केवल मस्जिद थी जिसको बचाने के लिए कितने भी हिंदू कारसेवकों को कुर्बान उन्हें करना पड़े, वे पीछे नहीं हटेंगे लेकिन आज मुलायम सिंह विवादित स्थल पर सिर्फ मस्जिद होने का स्टैंड भुलाकर यह कह रहे हैं कि उस जगह चाहे मंदिर बने या मस्जिद, पहली ईंट वे ही रखेंगे। अगर उस जगह उनके यकीन में सिर्फ मस्जिद थी तो मंदिर के लिए भी उन्हें ईंट क्यों रखना चाहिए। धन्य है मुलायम सिंह की अवसरवादिता।
मुलायम सिंह अब अपने दूसरे कुनबे को भाजपा में दाखिला दिलाने के लिए हर जतन करने में जुटे हैं। उन्होंने अपने सबसे प्रिय आजम खां का साथ भी नई परिस्थितियों और नये तकाजों के चलते छोड़ दिया है। वक्फ परिसंपत्ति के दुरुपयोग के बहाने आजम खां के खिलाफ जो जांच चल रही है उसमें आजम खां को पूरी तरह जकड़ने का प्लान बनाया गया है और यह प्लान अचूक है। इस प्लान को साजिशी करार देने का राग अलापने के लिए आजम खां को खुद प्रलाप करना पड़ रहा है। न तो मुलायम सिंह न समाजवादी पार्टी इसमें उनका कोई प्रभावी सहयोग कर रही है। मुसलमानों ने जिन्होंने सपा और मुलायम सिंह पर बहुत विश्वास किया वे उऩकी असलियत सामने आने से निश्चित बेहद खिन्न हैं। लेकिन इससे क्या होगा, चैनलों से आये दिल्ली के पत्रकार स्थानीय समाचारनवीसों के मेहमान हैं इसलिए उनकी मजबूरी है उनकी पूरी खिदमत पर ध्यान दें और उनकी संलिप्तता के संबंध में कोई सवाल न पूछें।







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