पार्टी विद ए डिफरेंस का नारा भाजपा के लिए लालकृष्ण आ़डवाणी के जमाने में ही अभिशाप साबित हो गया था। आज पार्टी इसीलिए यह नारा भूल भले ही चुकी हो लेकिन पार्टी के ईमानदार वर्ग में अभी भी कसक है कि इसे अपने आचरण में साबित किया जाए। सीएम योगी आदित्यनाथ ने इसी के तहत 19 मार्च को मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण के बाद अपने मंत्रिमंडलीय सहयोगियों से 15 दिन के अंदर अपनी आय और चल-अचल संपत्तियों का ब्यौरा दाखिल कर देने को कहा था। पर मंत्रियों ने उनके इस निर्देश का अनुपालन करने में बहुत दिलचस्पी नहीं ली। अभी तक एक दर्जन से कुछ ही ज्यादा मंत्रियों ने यह ब्यौरा जमा किया है। इस बीच 13 अप्रैल को एक बार फिर तीन दिन की मोहलत देते हुए योगी आदित्यनाथ ने इसे दोहराया लेकिन इसके बावजूद ज्यादातर मंत्री अभी तक ब्यौरा देने के लिए आगे नहीं आये हैं। 3 दिन की डेडलाइन भी अब खत्म हो चुकी है। इसके बाद सीएम उन पर क्या कार्रवाई करते हैं, यह देखने वाली बात होगी। इस बीच मंगलवार को सीएम ने अपनी कैबिनेट की तीसरी बैठक की है। इसमें उन्होंने वरिष्ठ मंत्रियों को इस बारे में कितना डपटा, यह खबर छनकर सामने आने के लिए फिलहाल तो इंतजार हो रहा है।
सीएम योगी आदित्यनाथ खांटी राजनीतिज्ञ नहीं हैं इसलिए उऩकी चमड़ी उतनी मोटी नहीं हैं जितनी राजनेताओं की होनी चाहिए। वर्तमान राजनीति का जो जमाना है उसमें प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री इस किस्म के आदेश के अनुपालन को बहुत संजीदगी से नहीं लेते। अनुपालन हो या न हो मीडिया मैनेजमेंट करके वे जनमानस के बीच यह साबित करके निकल जाते हैं कि अगर उन्होंने कहा है तो मंत्री 18 घंटे काम कर रहे हैं। किसी मंत्रालय में दलाल फटक नहीं पा रहा है। फिजूलखर्ची समाप्त हो गई है। कोई मंत्री छुट्टी नहीं ले रहा है, वगैरह-वगैरह। जो दिखता है वह बिकता है।
लेकिन योगी का मर्ज अलग है। उन्हें दिखाने के साथ-साथ कराने की भी चिंता है इसलिए आय और परिसम्पत्तियों के मामले में मंत्रियों की आनाकानी उनको उद्देलित कर रही है। ऐसा नहीं है कि मंत्री उनकी इस मानसिकता से अपरिचित हों। उनमें योगी का भय केंद्रीय नेतृत्व से ज्यादा है। फिर भी अगर वे योगी के आदेश के पालन में टालमटोल कर रहे हैं तो यह संभव कैसे हो रहा है, यह एक पहेली है।
इसको लेकर भाजपा के अंदरखाने की स्थितियों पर कई किस्से सामने आने लगे हैं। ऐसे जानकारों का कहना है कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व पूरी तरह से व्यवहारिक है इसलिए कुछ चीजों की सीमाएं केंद्रीय नेतृत्व को पता ही नहीं हैं बल्कि पार्टी चलाने की मजबूरी के तहत कई गड़बड़ियों को उसका संरक्षण भी है। इसमें यूपी के कई मंत्री उसके सहयोगी हैं। ऐसे मंत्री जानते हैं कि केंद्रीय नेतृत्व उनकी उपयोगिता समझता है इसलिए उसके द्वारा योगी के कोप से उनका पूरा बचाव किया जाएगा। क्या यह भावना ही उनको ऐसा बल प्रदान कर रही है कि वे योगी के बार-बार कहने के बावजूद अपना ब्यौरा न दें। इस बारे में सच क्या है, यह सामने आने के लिए अभी इंतजार करने की जरूरत है।
इसी बीच योगी ने अधिकारियों के थोक तबादलों की पहली सूची जारी की है जिसमें 41 आईएएस अधिकारी बदले गये हैं। कई मंडलायुक्त और जिलाधिकारी इस फेरबदल में पैदल कर दिए गए हैं। यह सही है कि इनमें से ज्यादातर दागी हैं लेकिन कई ऐसे भी हैं जो दागी होने के बावजूद प्राइम पोस्टिंग पा गये हैं। साथ ही कई ऐसे हैं जो दागदार रिकार्ड के बावजूद मलाईदार पोस्टिंग से हटाये नहीं जा सके हैं। योगी की बेबाक छवि के मद्देनजर यह विसंगतियां क्यों, यह भी एक सवाल है।
बहरहाल शासन समझौतों का दूसरा नाम है। योगी सरकार भी एडजस्टमेंट के तकाजे से परे नहीं हो सकती। लेकिन अच्छी बात यह है कि अभी भी लोगों को यह विश्वास बना हुआ है कि योगी निर्लोभ हैं, त्यागी हैं और उनकी ईमानदारी 24 कैरेट तक खरी है। इसलिए व्यवहारिक तकाजों के तहत वे कितने भी समझौते करें लेकिन फिर भी उनके शासनकाल में राज-काज की गुणवत्ता बेहतर होगी। कामना यह है कि लोगों का यह विश्वास और धारणा अमल में सौ फीसदी सही साबित हो।







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