कालपी-उरई। कार्तिक मास शुरू होते ही लोग आकाश दीप जलाकर दीपावली के कुछ दिन पूर्व से ही धन संपदा की देवी मां लक्ष्मी जी का पूजन करना शुरू कर देते है। महिलाएं विष्णु भगवान के पूजन के साथ ही घर में तुलसी के सामने दीप जलाकर पूजन अर्चना करती हैं।
सूर्य अपनी तुला राशि में रहता है। शरद पूर्णिमा एक ओर जहां लक्ष्मी पूजन के विधान के शुभारंभ इसी तिथि से होने लगता है। दीप मालका के भावमंत्र व विशेष लक्ष्मी पूजन का संकेत दे दीपदान के साथ तुलसी पूजन करने से विशेष पुण्य, बल प्राप्त होता है। भगवान विष्णु को तुलसी अर्पण करके स्वयं ग्रहण करते हैं। जिससे विशेष फल प्राप्त होता है। बुंदेलखंड की धरा पर अनेक बुंदेली कन्याओें द्वारा यह खेल खेला जाता है। इसमें भाद्रो मास की पूर्णिमा के तत्काल बाद सुबह जागकर दीवार पर गोबर से चित्र बनाती है। एक पखवारे तक यह कार्य चलता रहता है। नवरात्र के अष्टमी पर दीवार पर सुआटा बनाया जाता हैं, जिसे भौंसासुर कहा जाता है, फिर प्रारंभ होता है कि चैथा व अंतिम चरण। दशहरा पर टेसू बनाते हैं व कन्याएं मिट्टी के दीप जलाकर झिंझिया बनाती है। फिर दोनों लोग शहर की गलियो में घूम घूम कर पैसा मांगते है। फिर उसके बाद टेसू झिंझिया बडे“ ही धूमधाम से लगती है। वहीं, जानकार बताते हैं कि इस विवाह के बाद सामाजिक तौर पर सहालग शुरू हो जाती है। शरद पूर्णिमा के पर्व पर आज नगर के मोहल्ला गणेशगंज, सत्य नारायन मंदिर पर सुंदर झांकी व भजन के बाद खीर वितरण किया गया।






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