
उरई, । बुंदेलखंड के तीर्थ क्षेत्र पंचनद के पास पूर्व सेंगर राजवंश की राजधानी रहे जगम्मनपुर में भगवान लक्ष्मी नारायण शालिग्राम की शोभा यात्रा जगम्मनपुर किले से निकलकर नगर भ्रमण कर बाजार में लक्ष्मी नारायण चबूतरे पर आम दर्शनार्थियों के लिए रोकी गई ।
ज्ञात हो कि आज से 414 वर्ष पूर्व विक्रमी संवत 1660 में गोस्वामी तुलसीदास जी भ्रमण करते हुए पंचनद धाम पर आए उसी समय जगम्मनपुर के किला का निर्माण चल रहा था। तत्कालीन महाराजा जगम्मनदेव पंचनद पर गए और गोस्वामी तुलसीदास को जगम्मनपुर ले आए । कुछ दिन विश्राम के बाद गोसाई महाराज ने जगम्मनपुर किले में दरवाजे पर देहरी का रोपण किया और भगवान शालिग्राम जी की मूर्ति ,दाहिनावर्ती शंख ,एकमुखी रुद्राक्ष राजा जगमंदिर को भेट करते हुए कहा कि प्रतिवर्ष कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को किले के मंदिर से बाहर निकाल कर नगर भ्रमण करवाएं तथा वर्ष में एक बार आम लोगों को भगवान शालिग्राम जी के दर्शन करने दे उसी समय से यह परंपरा आज तक चली आ रही है । जगम्मनपुर राज्य के राजा भगवान के सिंहासन को कंधा देकर नगर भ्रमण कराते हैं। आज से 20- 30 वर्ष पूर्व भगवान शालिग्राम जी के दर्शन करने के लिए हजारों लोगों की भीड़ उमड़ती थी लेकिन अब लोगों में श्रद्धा के अभाव के कारण भीड़ में कमी होती जा रही है। बीती रात भारी जन समुदाय के बीच वर्तमान राजवंशज सुकृत शाह जूदेव ने भगवान शालिग्राम सिंहासन को कंधा देकर लक्ष्मी नारायण चबूतरे तक जगम्मनपुर बाजार में ले आए। वहां हजारों लोगों ने आरती के साथ भगवान के दर्शन किए। प्रसाद चढ़ाया देर रात तक भजन कीर्तन होता रहा।






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