सुजवांन में आर्मी कैंप पर हमला। इसके 48 घंटे के अंदर श्रीनगर के करन नगर स्थित सीआरपीएफ की 23वें बटालियन की हमले की कोशिश। सीमा पर लगातार फायरिंग और बमबारी पाकिस्तान जानबूझ कर खिझाने के लिए दुस्साहस कर रहा है या मकड़ी की तरह वह अपने ही बने जाल में फंस गया है। जिसकी वजह से स्थितियां उसके वश में नही रह गईं जो वह भारत के साथ हम तो डूबेगें सनम तुम्हें भी ले डूबेंगे जैसा आत्मघाती खेल खेलने में लगा है।
उधर भारत सरकार भी तो चैन में नही है। पहले कश्मीर में फिदाइन हमला या सीमा पर युद्ध विराम का उल्लंघन दुष्ट पड़ोसी के साथ रुटीन का निर्वाह था जिससे पार पाने के लिए उसके अन्य तरीके से खोखले होने का इंतजार किया जा रहा था। लेकिन एक के बदले 10 सिर काटकर लाने की डींग के साथ सत्ता में आये नये निजाम में लोग पाकिस्तान की एक भी हरकत से अधीर हो जाते हैं। भारत सरकार भी समझने लगती है कि उसे कुछ कर दिखाना होगा वरना लोगों का गुस्सा उसे ले डूबेगा। अपने ही कारणों से जम्मू कश्मीर की स्थितियों को लेकर भारत सरकार जबर्दस्त दबाव मे है।
एक बार सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम देकर और उसे खुलेआम प्रचारित करके सरकार जनता को यह भरोसा दिलाने में कामयाब रही थी कि उसने पाकिस्तान को अपनी हद में रहने के लिए सबक पढ़ा दिया है। लेकिन इस सांकेतिक कार्रवाई का असर अब खत्म हो चुका है। आंकड़े बता रहे हैं कि हाल में पाकिस्तान का दुस्साहस काफी बढ़ा है। 2015 में उसने सिर्फ 152 बार युद्ध विराम तोड़ा था (सिर्फ क्यो यह आगे के आंकड़ो से जाहिर हो जायेगा), इसके बाद 2016 में उसके द्वारा 328 बार युद्ध विराम तोड़ा गया। लेकिन 2017 में उसने सारी सीमाएं पार कर दीं। उसने 860 बार सीमा पर युद्ध विराम का उल्लंघन कर गालियां और गोले बरसाये जिससे भारत को सैन्य बल और नागरिक दोनों ही स्तर पर भीषण जानी नुकसान झेलना पड़ा। इस वर्ष डेढ़ महीने में ही पाकिस्तान की ओर से युद्ध विराम की 240 हरकतें अंजाम दी जा चुकी हैं।
इतना ही नही एक दशक बाद जनवरी और फरवरी महीने में संघर्ष विराम और आतंकी हमलों में जम्मू कश्मीर में मौतों का सिलसिला अप्रत्याशित तौर पर बढ़ा है। 2007 में इन दो महीनों में 43 मौतें हुई थी इसके बाद किये गये इंतजामों से इसमें काफी हद तक कमी रही। लेकिन इस वर्ष फिर डेढ़ महीने में ही 27 लोगों की शहादत हो चुकी है। इस कारण पूरे देश में उत्तेजना का माहौल है। 5 फरवरी को पुंछ-राजौरी सीमा पर पाकिस्तान की गोलबारी में एक कैप्टन और चार सैनिक शहीद होने के बाद भी पाकिस्तान को चेतावनी दी गई थी कि अब इस हिमाकत की जबावी कार्रवाई हमारे एक्शन से खुद बयां होगी। इस बीच सुजवांन में आर्मी कैंप पर हमले के बाद रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने फिर कहा है कि सेना कैंप पर हमले में पाकिस्तान के हाथ होने के सुबूत भारत के पास हैं और उसे भेजे जा रहे हैं। सुबूत भी भेजे जायेगें और साथ-साथ मे जबाव भी दिया जायेगा।
रक्षा मंत्री की इस घोषणा के बाद सनसनी फैली हुई है। हालांकि रक्षा मंत्री ने यह स्पष्ट नही किया है कि जबाव किस रूप में होगा लेकिन लोग अंदाजा लगा रहे है कि सीमा के नजदीक पाकिस्तान में चल रहे आतंकवादी शिविरों पर भारतीय सेना का हमला हो सकता है। पाकिस्तान भी भारतीय रक्षा मंत्री की प्रतिक्रिया से थोड़ा सहमा नजर आ रहा है। हालांकि उसने कहा है कि भारत की आदत हो गई है कि बिना जांच किये हुए किसी भी घटना को पाकिस्तान के मत्थे मढ़ देना। जबकि जम्मू कश्मीर में लोगों ने अवैध कब्जे के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह छेड़ रखा है जिसका वह क्रूरता पूर्वक वह दमन कर रहा है। पाकिस्तान ने यह भी याद दिलाया है कि वह परमाणु शक्ति संपन्न देश है। ऐसे में अगर उसकी सीमा पार कर कार्रवाई करने की जुर्रत की जाती है तो अनर्थकारी परिणाम हो सकते हैं।
जाहिर है कि भारत के लिए इन स्थितियों में सीधी कार्रवाई का फैसला आसान नही है। पाकिस्तान जब तक सतर्क है तब तक सर्जिकल स्ट्राइक भी शायद आसान न हो। हो सकता है कि उसने कुछ समय के लिए अपने आतंकवादी कैंप भी सीमा के पास से शिफ्ट कर दिये हों। दूसरी ओर मोदी सरकार ने पाकिस्तान की नाक में नकेल डालने के लिए जल संधि रदद करने और उसे व्यापार में तरजीह देश का दर्जा खत्म करने जैसे विकल्पों पर पहले विचार किया था। लेकिन अब इन पर चर्चा क्यों नही हो रही।
ऐसा नही है कि पाकिस्तान का राजनैतिक प्रतिष्ठान भारत से सीधे उलझने पर होने वाली गत से नाबाकिफ है। लेकिन वहां सेना का नियंत्रण है जो भारत के प्रति शत्रुतापूर्ण उन्माद से भरी हुई है। उसके सामने पाकिस्तान की राजनैतिक सत्ता लाचार है। पहले भारत पाकिस्तान के झगड़े में अमेरिका यथा संभव तटस्थता बरतता था लेकिन अब अमेरिका भी खुलेआम पाकिस्तान को फटकार रहा है। उसने पाकिस्तान को दी जाने वाली अपने देश की सहायता रोक दी है। पहले अमेरिका नाराज होता था तो पाकिस्तान की हवा निकल जाती थी लेकिन अब अमेरिकी सहायता रोके जाने पर उसने जो जबाव दिया उससे जाहिर होता है कि वह अमेरिका का भी अदब नही कर रहा। वजह है कि उसे चीन से शह मिल रही है जिससे उसकी गुस्ताखी बढ़ गई है। चीन चाहता है कि भारत उससे प्रतिस्पर्धा करने की बजाय पाकिस्तान से तनातनी में उलझा रहे। लेकिन दोनों देशों में सीधा युद्ध छिड़ जाये ये चीन भी नही चाहेगा। चीन का भी बहुत कुछ पाकिस्तान में दांव पर लगा है। जिसे भारत के साथ युद्ध की स्थिति में भारी नुकसान पहुंच सकता है। इसलिए चीन की पाकिस्तान को उकसावे की एक सीमा है।
इस बीच फ्रांस में आतंकवाद के खिलाफ होने वाली बैठक में अपने ऊपर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध लगने से डरे पाकिस्तान ने एक अध्यादेश लागू किया है जिसमें हाफिज सईद के संगठन जमात-उद-दावा, फलाह-ए-इंसानियत और कुछ आतंकी संगठनों को उसने प्रतिबंधित कर दिया है। जानकार बता रहे हैं कि पेरिस में फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स यानि एफएटीएफ की 18 से 23 फरवरी तक बैठक होगी जिसमें 2012 की तरह पाकिस्तान को एक बार फिर ब्लेक लिस्टिड किया जा सकता है। पाकिस्तान तब लगातार तीन साल काली सूची में रहा था जिसका उसे बड़ा नुकसान झेलना पड़ा था। इससे बचने के लिए उसने फिलहाल आतंकी संगठनों पर अपने को पाक साफ दिखाने की कोशिश की है। लेकिन उसने यह कार्रवाई अध्यादेश के माध्यम से की है जिससे उसकी धूर्तता स्पष्ट है। अगर वह अधिनियम पारित करवा कर आतंकी संगठनों पर प्रतिबंध लगाता तो माना जा सकता था कि उसने इन पर स्थाई शिकंजा कसा है। भारत एफएटीएफ की बैठक में पाकिस्तान की इस पैतरेंबाजी की भद जरूर पीटेगा और उसे अमेरिका का भी समर्थन मिलेगा। इसलिए उम्मीद है कि पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध के दायरे में आने से बच नही पायेगा जिससे उसकी हेकड़ी जरूर ढीली होगी।
उधर जम्मू कश्मीर से आवाजें उठ रही है कि पाकिस्तान से जंग लड़कर कुछ हल नही होगा भारत उसके खिलाफ तीन जंग जीत चुका है लेकिन क्या शांति कायम हुई। इसलिए उसके साथ बातचीत की जाये तभी कुछ रास्ता निकल सकता है। इस आवाज में पीडीएफ और नेशनल कांफ्रेंस दोनों के सुर मिले हुए हैं। लेकिन सवाल यह है कि बातचीत की कुछ सार्थकता हो सकती है। मोदी सरकार ने भी इसके लिए कितने विनम्र प्रयास किये लेकिन सारे पूर्वानुभव बताते हैं कि बातचीत से पाकिस्तान को सुधारना मात्र प्रवंचना है कैसे भी हो जब तक पाकिस्तान पस्त नही पड़ेगा तब तक वह कश्मीर को लेकर अपनी जिद छोड़ने वाला नही है जो झगड़े की असल वजह है। इस बीच भारत ने अपनी सेना को मजबूत करने के लिए 15 हजार 935 करोड़ रुपये के रक्षा सौदों को मंजूरी दी है। पाकिस्तान भी इसकी प्रतिस्पर्धा में रक्षा पर और खर्च करने को तत्पर होगा। जबकि युद्धोन्माद में क्षमता से ज्यादा सैन्य खर्च की वजह से ही उसकी हालत यह हो गई है कि वह चीन के कर्जे में पोर-पोर धंसकर उसका उपनिवेश बन गया है जिसके खतरों को लेकर पाकिस्तान के बुद्धिजीवी भी कम चितिंत नही हैं।

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