
उरई। देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर अपने बीच के नेता को देखने की जिले के लोगो की हसरत लगभग ढाई दशक बाद पूरी हो पाई।
देश के सबसे पिछड़े बुन्देलखण्ड क्षेत्र के अत्यन्त पिछड़े जिले में शामिल जालौन जिले के लोगों को बड़ा सपना देखने की हिम्मत वैसे तो होती नही लेकिन अगर कभी उनकी हिम्मत खुली जो वे सबसे उंचें सोपान पर खड़े होकर ही सपना देखते है।
बात हो रही है 1993 मंे हुये उपराष्ट्रपति के चुनाव की जिसमें वी0पी0 सिंह द्वारा बनवाये गये अनुसूचित जाति, जनजाति सांसदों के फोरम की धमक के कारण कांग्रेस पार्टी को उपराष्ट्रपति पद के लिये दलित चेहरे की तलाश थी। गो कि उपराष्ट्रपति को ही आंगे राष्ट्रपति पद के लिये प्रस्तावित करने की परम्परा उस समय स्थापित चल रही थी।

इस क्रम में तीन बार लोक सभा और दो बार राज्य सभा के सदस्य, केन्द्रीय मंत्री व इन्द्रा युग में कांग्रेस पार्टी के महासविच और कोषाध्यक्ष जैसे शक्तिशाली पदों पर रहे चैधरी रामसेवक के नाम पर कांग्रेस नेतृत्व की निगाह जा ठहरी। उनके नाम पर पार्टी इतनी गंभीर थी कि उनके दिल्ली स्थित आवास पर कांग्रेस के सारे शिखर नेताओं का भोज आयोजित हुआ जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंहाराव ने 40 मिनट का समय दिया।
पूरा देश यह मान चुका था कि चैधरी रामसेवक फिलहाल उपराष्ट्रपति और अगले कार्यकाल में तय शुदा तौर पर राष्ट्रपति बनेगे। जालौन के लोगो का गुमान सांतवे आसमान पर पहुंच गया था। लेकिन कांग्रेस पार्टी के हमदर्द अंतिम समय में समीकरण बदल गये। पूर्व नौकरशाह के0आर0 नारायणन को उनके स्थान पर उपराष्ट्रपति के प्रत्याशी के बतौर लाया गया जो उपराष्ट्रपति के बाद राष्ट्रपति भी निर्वाचित हुए।
जालौन जिले के लोगो का सत्ताईस साल पहले देखा गया सुनहरा सपना इस तरह टूट गया जिसकी कसक यहा के लोग भूल नही पा रहे थे।
इस बीच सन-2014 के लोकसभा चुनाव के लिये भाजपा के निर्देश पर रामनाथ कोविंद जी जिले में आये। उन्होने अपने भावी कर्मक्षेत्र में पैठ मजबूत करने के लिये जालौन जिले के गांव-गांव में दौरे किये और हर गांव में अपने लोग बनाये लेकिन ऐन वक्त पर उन्हे बड़ी जिम्मेदारी सौपने के विचार के तहत पार्टी ने वापस बुला लिया।
जिले में रामनाथ कोविन्द के समर्थकों और प्रशंसकों को निश्चित तौर पर इससे बड़े सदमें का अहसास हुआ। उन्हे पता नही था कि कितनी बड़ी सौगात उनको रामनाथ कोविन्द जी के जरिये मिलने वाली है।
2017 के राष्ट्रपति के चुनाव में जब अप्रत्याशित रूप से भाजपा ने रामनाथ कोविन्द को अपना प्रत्याशी बनाने का फैसला किया तो जनपद के लोगों के विस्मय का ठिकाना नही रहा। हालांकि इसके पहले कोविन्द जी बिहार के राज्यपाल बनाये जा चुके थे। लेकिन पटना के राजभवन से जालौन जिले के लोगो का सीधा सरोकार नही हो सकता था इसलिए यह उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि मानकर लोगों ने इसके स्वागत की उदासीन सी औपचारिता पूरी कर दी थी।
रामनाथ कोविन्द के महामहिम बनने से जालौन जिले के लोगो को राष्ट्रपति भवन में अपने सीधे दखल का अभिमान महसूस हुआ और राष्ट्रपति ने भी उनके इस गुमान को चरितार्थ साबित करने में कोई कसर नही रहने दी। रामनाथ कोविन्द के महामहिम बनने के बाद जालौन जिले के तमाम लोग राष्ट्रपति भवन के आतिथ्य का गौरव प्राप्त कर चुके है।
कहते है कि कभी-कभी दूर के सपने भी साकार हो जाते है। ढाई दशक पहले के स्वप्न की अयाचित पूर्ति का अनिवर्चनीय सुख महसूस कर रहे जालौन जिले के लोगो से ज्यादा इसे कौन जान सकता है।
अब जबकि 17वीं लोक सभा के चुनाव की वेला है जिसमें अभी तक के सारे लोकसभा सदस्यों की फेहरिस्त पढ़ी जा रही है और इस बहाने रामसेवक चैधरी का नाम भी लोगो के जेहन में ताजा हो रहा है तो उस समय राष्ट्रपति पद से जुड़े जालौन जिले के लोगो की सरोकारों पर चर्चा भी प्रासंगिक है।






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