
माधौगढ़-उरई । होली के रंग-बिरंगे त्योहार में गांव में अपनी एक परंपरा आज भी जीवित है। रंग खेलने के साथ ग्रामीण क्षेत्र में होली के गीत गाकर मस्ती का जो अनूठा संगम होता है,उसे देखने और सुनने बाले भी झूम उठते हैं। शहरों से विलुप्त हो चुकी यह प्रथा सिर्फ गांव और वह भी सिर्फ बुंदेलखंड में जीवंत है। होली के अवसर पर शाम होते ही गांव की चौपालों में,मंदिरों और घरों पर सजने बाली फाग की महफिलों में ढोलक की थाप और मंजीरे की झंकार के साथ उड़ते हुए गुलाल-अबीर के साथ मदमस्त ग्रामीणों के फाग गाने का अंदाज-ए-बयां इतना अनौखा और जोशीला होता है कि श्रोता मस्ती में चूर होकर थिरकने,नाचने पर मजबूर हो जाते हैं।असहना गांव में फाग के जानकार अश्वनी निराला बताते हुए कहते हैं कि फाग के बोल किसानों के दिल की आवाज होती है।फाग के गीत के बोल जैसे ‘रण से भाग आयो भूपाला’ ‘कौरव दल साज रहो जा दिन भीमसेन कीचक मारो’ दिल और दिमाग मे छा जाते हैं। फाग के मशहूर गायक दिनेश परिहार,रामसेवक पाल,रामबाबू पाल, कुंजविहारी,कामता पाल, रामधनी,भगवानदास परिहार आदि बताते हैं कि फाग में विरह! श्रृंगार, ठिठोली और वीर रस भरे गीत गाये जाते हैं। इसलिए फाग का जादू बुंदेलखंड में सिर चढ़कर बोलता है।






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