उरई। जिला मुख्यालय की नाक के नीचे सिसकता विकास प्रगति के लंबे चैड़े दावों की पोल खोल रहा है। आधा दर्जन गांवों के लोगों के लिए जिला मुख्यालय आने-जाने का सुगम रास्ता तक मुहैया नही है। कई बार तो इसके चलते मरीज को अस्पताल पहुंचने के पहले ही बेमौत जीवन लीला समाप्त कर देनी पड़ गई। आक्रोशित ग्रामीण लोकसभा चुनाव के मौके पर क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों से इसका जबाव मांगने की तैयारी कर रहे हैं।
दूर-दूर तक विकास का उजियारा फैला देने के व्यवस्था के कर्ता-धर्ताओं के दावे किताबों में पढ़ने और मंच पर सुनने में ही अच्छे लगते हैं। लेकिन जमीनी सर्वे में जब हकीकत पता चलती है तो ये भ्रम खत्म हो जाते हैं। विकास के इस मुगालते को टूटते जालौन टाइम्स की टीम ने तब देखा जब हम कुइया रोड पर पहुंचे।
उरई से कुइया के लिए बाबा आदम के जमाने का बना रोड पूरी तरह जर्जर हो चुका है। वाहन तो क्या इस सड़क से पैदल तक चलना मुश्किल है। इसके बावजूद सांसद, विधायक और अन्य जनप्रतिनिधियों ने कभी इस पर गौर करने की जहमत नही उठाई। जबकि यह कोई दूरस्थ दुर्गम इलाका न होकर जिला मुख्यालय के नजदीक का क्षेत्र है।
भुक्त भोगी ग्रामीणों ने बताया कि कुइया, धमनी, धरगुवां, ऐर और खरका तक रोड की बदहाली की वजह से उन्हें गुफा काल में जिंदगी गुजारने का गुमान महसूस करना पड़ता है। उस पर तुर्रा यह है कि बालू घाट से मौरम भरकर आने वाले ट्रकों द्वारा रौंदे जाने की वजह से इस रोड पर हर रोज गडढे और गहरे होते जाते हैं।
इस दशा के कारण इस रोड पर कोई धंधा और बाजार भी विकसित नही हो पा रहा है। अगर कोई इमरजेंसी हो तो आसानी से व्यक्ति जिला मुख्यालय तक नही पहुंच सकता। मरीजों की तो इससे शामत ही आ गई है। कई मरीज तो समय पर अस्पताल न पहुंच पाने की वजह से बीच रास्ते में ही दम तोड़ गये।
अपनी अनदेखी से खार खाये बैठे ग्रामीणों ने कहा कि अगर उनके यहां कोई विधायक, जिला पंचायत, क्षेत्र पंचायत प्रमुख अथवा सांसद उम्मीदवार वोट मांगने आया तो हम लोग उसकी अच्छी तरह खबर लेने की तैयारी किये बैठे हैं। नेताओं को रोड की दशा की खबर भले ही इतने सालों में न लग पाई हो लेकिन ग्रामीणों के गुस्से की बात उनके कानों तक पहुंच चुकी है। नतीजतन चुनाव के दौरान इस क्षेत्र के ग्रामीणों का सामना कैसे करें। वे इसकी तरकीब सोचने में परेशान हैं।






Leave a comment