लाॅक डाउन के फिलहाल हटने के आसार नजर नहीं आ रहे। 5 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आवाहन पर जब रात में नौ बजे सारे लोगों ने घरभर की लाइटें बन्द करके दरवाजे के पास नौ मिनट तक एक रोशनी करने का टोटका किया था उस समय तमाम लाल बुझक्कड यह बताने के लिए सक्रिय हो गये थे कि वाह मोदी जी कितने विलक्षण ज्ञानी है आप जो आप से कोई़ क्षेत्र छूट कर नहीं रह गया है । दरअसल 5 अप्रैल 2020 को रात नौ बजे वही मुहुर्त आ रहा है जो द्धापर में था जब भगवान श्रीकृष्ण ने ऐसे ही मुहूर्त में रोशनी कर के लक्ष्य संधान कर लिया था । इसलिए ऐसे मुहुर्त में देश में अंधकार के बीच सामूहिक रोशनी जलाने का अनुष्ठान कोरोना से सारे देश को मुक्त करने के रूप में फलित होगा । लाल बुझक्कडों ने इसे लेकर प्रधानमंत्री को अग्रिम बधाई भी दे दी थी। लेकिन अगले दिन कोरोना की चपेट ने देश में रिकार्ड तोड दिया तो हाहाकार मच गया ।
वैसे प्रधानमंत्री का इसमे कोई दोष नहीं था। सामूहिक रोशनी कराने का इवेन्ट उन्होने सामूहिक संकल्प के प्रदर्शन के लिए कराया था जो इस समय देश के मनोबल पर छाये विषाद के घटाटोप को देखते हुए आवश्यक था । इसके कारण लम्बे लाॅक डाउन के चलते उपजी एकरसता भी टूटी जो लोगो को मनोरोगो की ओर धकेल रही थी लेकिन यहां व्यक्ति पूजा का रोग ऐसा है कि लोग जिस पर रीझ जाये उसमें न जाने कितने गुण ढूढकर ला सकते है । अतीत में नेहरू के प्रति भी ऐसा ही सम्मोहन था आज मोदी के लिए है लेकिन यह अन्ध भक्ति लोकतांत्रिक अपेक्षाओं के विरूद्ध है । लोकतन्त्र में मतदाता न्यायधीश की भूमिका में होता है इसलिए उसे निर्मोही होना चाहिए। सम्पूर्णता में कोई नेता बहुत सक्षम हो सकता है लेकिन यह जरूरी नहीं है कि उसका हर कदम अचूक हो । इसलिए मतदाता जहा नेता से चूक हो वहां उसे टोकने के लिए चैकन्ना रहे लोकतन्त्र में यह गुण उसमें होना अपरिहार्य है । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हाजिरजबाव है लेकिन उनका सामान्य ज्ञान कमजोर है यह कई बार प्रदर्शित हो चुका है । इसके वावजूद यह उनकी कला है कि अपनी हाजिर जबावी की चकाचैंध मंे वे अपनी इस कमजोरी को ढांप सकते है । इसलिए उनकी मेरिट जब देखी जाती है तो किताबी ज्ञान को लेकर उन पर बहुत ध्यान नहीं दिया जाता । तात्पर्य यह है कि जब मोदीजी का सांसरिक विषयों का ज्ञान अधिकार पूर्ण नहीं है तो परासांसरिक विषयों में उनकी निपुणता स्थापित करने की जबर्दस्ती अतिश्योक्ति की इंतहा है जिससे बचा जाना चाहिए वरना इस ढंग से उनकी प्रशंसा न केवल प्रभाव खो सकती है बल्कि उल्टे प्रभाव का कारण बन सकती है।
अब ज्यादा बडा मुददा इसमें यह है कि मुहूर्त और मंत्रो से कार्य को सिद्ध करने की फंतासी से हम कब मुक्त हो पायेंगे । इतिहास बताता है कि अपने लक्ष्यों के लिये पुरूषार्थ पर विश्वास करने के बजाय मुहूर्त पर आश्रित होने की वजह से बार-बार भारतीयों को ठोकर खानी पडी है। फिर भी वे अपने को अन्ध विश्वास से उबारने पर ध्यान नहीं दे रहे जबकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी कोरोना के सन्दर्भ में जब भी चर्चा की है लोगों से अन्ध विश्वास से बचने को कहा है । अन्ध विश्वास के विरोध को भी लोग देश में धर्म के विरोध से जोडने लगे है क्योंकि धर्म की जिन कामो से यहां पहचान करायी जा रही है वे यहां उलटे है। धर्म लोगों को कामनाओं से दूरी के लिए प्रेरित करना चाहता है यहां धर्म अपने कारोबार ,कैरियर या चुनाव की सफलता जैसी कामनाओं के लिए याद कराया जाता है । किसी सांसारिक लाभ के लिए किसी पूजा या अनुष्ठान की आयोजना धर्म विरोधी है । धर्म के कारण लोगों में वैभव की तृष्णा का विलोप होना चाहिए यहां धर्माचार्य जिस भव्यता से रहना चाहते है वह उलटी शिक्षा है । धर्म अपरिग्रह के लिये कहता है यहां धार्मिक स्थल प्रचुर सम्पदा के भंडारण के अड्डे बना दिये गये है। इसके बाबजूद कोरोना विपत्ति से निपटने में सहायता के लिए कोई धार्मिक स्थल आंगे नहीं आ रहा । समाज को राजनीतिक सुधार के साथ -साथ धार्मिक सुधार के लिए भी आवाज उठानी होगी । शुद्ध धार्मिकता ही लोगों के संस्कार निर्मल बना सकती है । आज हमारे राष्ट्रीय चरित्र पर जिस तरह से भ्रष्टाचार ,भाई भतीजावाद, अनुशासनहीनता ,रेप की बढती घटनायें आदि को लेकर उंगलियां उठ रही है उसको देखते हुए धर्म की जरूरत बहुत है लेकिन एक ओर आप धर्म आधारित राजनीति की बात करेंगे दूसरी ओर उपभोग पर आधारित जीवन शैली में ढालने के लिए कांन्वेट स्कूलों को भी प्रोत्साहन देंगे तो कथनी और करनी का सांमजस्य कैसे होगा ।
बहरहाल अब फिर आते है कोरोना और लाॅक डाउन पर । प्रधानमंत्री ने लाॅेक डाउन में बोर हो रहे लोगों के मन बहलाव के लिए एक बार श्ंाख फुकवा कर थालियां पिटवा दी और दूसरी बार घरो में अंधेरा करवा कर मोमबत्तियां जलवा दी लेकिन किसी अंधविश्वास के सहारे रहने के बजाए उन्होंने कोरोना को रोकने के लिए ठोस कदम उठाये । उधर धर्माचार्य होते हुये भी कार्य सिद्धि के लिए कोई अनुष्ठान कराने के बजाए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी ठोस पुरूषार्थ किया जिससे कोरोना काफी हद तक नियन्त्रित हो गया है । दोनो नेताओं के इस माामले में कटिबद्ध प्रयासो की सराहना होनी चाहिए। इस के बाबजूद जब तक कोरोना मरीजों का क्रम जारी है तब तक लाॅक डाउन एक दम से हटाना बेहद रिस्की होगा । प्रधानमंत्री ने संभी पार्टियों के नेताओं से इस मामले में वार्ता की है । इससे लाॅक डाउन बढाने को लेकर आम सहमति बन गयी है । आम लोग भी मांनसिक रूप से कोरोना को एक घक्का और लगाने के जोश के साथ लाॅक डाउन को और आंगे बर्दाश्त करने के लिए तैयार है इसलिए लाॅेेक डाउन वढना तय है ।

 

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