उरई। गर्मियों के सीजन में गांव गांव में फेरी लगाकर आइसक्रीम बेचने वाले रामस्वरूप की जिन्दगी में अंधेरा छा गया है। यह स्थिति अकेले रामस्वरूप की नही है, सीजनल काम करने वाले हजारों लोग ऐसी ही परेशानियों से दो-चार हो रहे है।
रामस्वरूप आम दिनों में घर के रोज के खर्च के लिए फुटकर काम कर लेते थे। लेकिन सीजन में आइसक्रीम बेचकर उन्हें खासी कमाई हो जाती थी। बेटे-बेटियों की शादी का खर्चा, इलाज का खर्चा और तमाम अन्य आकस्मिक खर्चों की पूर्ति इसी आमदनी के सहारे थी।
सीजन की आस में बडे खर्च के लिए चार पांच परसेन्ट के ब्याज पर आसपास के साहूकारी करने वाले दबंग से कर्जा लेना भी उनके स्वभाव में शामिल हो गया था। लेकिन इस साल उनका सीजन मारा गया। लाॅक डाउन तीन मई को समाप्त होने जा रहा है पर स्थिति सामान्य होने के आसार अभी कई महीने नही है। मतलब हुआ कि इस सीजन में वे आइसक्रीम बेचने के लिए फेरी पर नहीं निकल पायेंगे। इससे उनके घर की अर्थव्यवस्था पूरी तरह गडबडा गयी है। खर्चे तो है ही जो कर्जा लिया है उसका मूलधन तो दूर सूद तक कैसे चुकाये इसकी चिन्ता मंे रातो नींद नहीं आ रही।
आइसक्रीम बेचने वाले, शादियों में कन्धे पर लाइट लादकर चलने वाले, बैण्ड कम्पनियों में काम करने वाले इत्यादि की जिन्दगी अनिश्चित राह पर चल पडी है जो बन्द गुफा में प्रवेश कर जाती है। सरकार ने वैसे तो ऐसे लोगो को भी श्रम विभाग की असंगठित क्षेत्र योजना में सामाजिक सुरक्षा के तहत कवर कर रखा है। लेकिन यह कवायद कागजी बनी हुयी है। रामस्वरूप जैसे लोगों का अभी तक श्रम विभाग में पंजीकरण भी नहीं है।
कोरोना संकट ने गरीब आबादी के अस्तित्व को बचाये रखने के मामले में सरकार के लिए बडी चुनौती खड़ी कर दी है। विडम्बना यह है कि सरकार की इच्छाशक्ति प्रशासन के भ्रष्ट और अकर्मण्य तत्वो पर व्यापक कार्रवाई करने की नहीं है। जिससे निजाम बदलने के बाबजूद प्रशासन का ढ़र्रा नहीं बदला है। नतीजतन गरीबो के लिए सरकार यह स्थिति बनी रहने पर चाहे जितनी योजनायें घोषित करे उनसे अधिकारियों, बाबूओं और दलालों की चांदी होगी, गरीबों का भला नहीं होने वाला।






Leave a comment