उरई. कोरोना के कहर से दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने तक मानवता छटपटा रही है लेकिन यह प्रकृति के लिए अपनी उजाड़ नियति को भुला  कर फिर से सजने संवरने का मौक़ा बन गया है. माधौगढ़ तहसील में आमों पर आयी बहार इसकी बानगी दिखा रही है.
जल सम्पदा से समृद्ध माधौगढ़ तहसील अपने हरे भरे परिवेश के कारण शुष्क पहचान वाले जालौन जिले के लिए वरदान की तरह है. यहां की अमराई के अलग ही चर्चे रहे हैं. पर पर्यावरण के सार्वभौम क्षरण ने यहां भी ग्रहण लगा दिया था.
अब पहले जैसे आम के पेड़ों के झुण्ड यहां गायब हो चुके हैं. बौर में लगातार कमी से ग्रामीणों का इनसे मोहभंग होता गया नतीजतन कुछ दशकों में जम कर आम के पेड़ों की कटाई हुई.
ऊमरी के मान सिंह सेंगर क्षेत्र के उन किसानों में हैं जो आमों में अभी भी दिलचस्पी ले रहे हैं.
   उन्होंने एक बाग़ तैयार किया है जिसमें आम के दो दर्जन बड़े बड़े पेड़ हैं. मान सिंह बताते हैं कि कई  वर्षों बाद यह अवसर आया है जब यहां पेड़ों पर इतनी जल्दी आम लद गये. ख़ास बात यह है कि इस बार हर साल के आमों से डेढ़ गुना बड़े आम आये हैं.
इसी गांव के भूरे सेंगर बताते हैं कि यहां के पूर्वज आमों का व्यापार नहीं करते थे. यहां के कच्चे आम मध्य प्रदेश में उनके रिश्तेदार अचार बनाने के लिए जाते थे जिससे रिश्ते हर साल नये सिरे से मजबूत होते जाते थे. यहां के पके आम लोक भाषा में टपका कहे जाते हैं जिनका स्वाद निराला होता है.

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