
लखनऊ। प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक एसएन चक ने भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता से अपने समाज से जुड़े मुद्दों की अनदेखी होने के कारण क्षुब्ध होकर इस्तीफा दे दिया है जिससे सत्तारूढ़ पार्टी में खलबली मच गई है।
सेवानिवृत्त होने के पश्चात सामाजिक मुद्दों पर संघर्ष छेड़ते हुए श्री चक ने एक अलग पार्टी का गठन किया था जिसका कुछ ही दिनों में जिलों-जिलों में विस्तार हो गया था। पर राष्ट्रवाद से प्रभावित होने के कारण गत वर्ष 12 मार्च को अपनी पार्टी भंग कर वे भाजपा में शामिल हो गये थे। उस समय भाजपा के नेताओं ने चक समाज की जायज मांगों पर सहानुभूति पूर्वक विचार करते हुए उन्हें पूरा कराने का आश्वासन दिया था लेकिन बाद में इन्हें अनसुना किया जाने लगा।
उन्होंने बताया कि इसी कारण गत 26 अप्रैल को इसी कारण वे भाजपा से इस्तीफा दे चुके हैं। उन्होंने बताया कि 1995 में मायावती ने अनुसूचित जाति में शामिल खटिक समुदाय के चक सरनेम लिखने वाले लोगों को पिछड़ी जाति की कोटि में डालकर उन्हें एससी के संवैधानिक अधिकारों और लाभों से वंचित कर दिया था। इस अन्याय को बदलने के लिए मई 2000 से चक पुकारे जाने वाले लाखों खटिक उनकी नेतृत्व में संघर्ष कर रहे हैं जिसके नतीजे में कई जिलों की सरकारी फील्ड सर्वे रिपोर्ट और यूपी पिछड़ा वर्ग आयोग की सकारात्मक संस्तुति राज्य सरकार को मिल चुकी है। बात केवल शासनादेश पर अटकी है जिसके लिए उन्होंने दो बार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी भेंट की पर कोई कदम नहीं उठाया गया। जब पार्टी में किसी स्तर पर सुनवाई नहीं हुई तो उन्होंने अपने को पार्टी से अलग करना ही बेहतर समझा।
उन्होंने साथ ही प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा कि लाॅकडाउन के एक सप्ताह पहले घर भेजने की व्यवस्था की जानी चाहिए थी। बाद में भी कोटा के बड़े घर के कोचिंग पढ़ने वाले लड़कों कें लिए तो राज्य सरकार का कलेजा निकल पड़ा लेकिन गरीबों की सुनवाई बहुत बाद में की गई। यह भेदभाव अन्यायपूर्ण और अमानवीय है। आगे के कदम के बारे में उन्होंने फिलहाल कुछ बोलने से इंकार कर दिया।






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