-रवि निरंजन
 दुनिया में आई कोरोना वायरस की महामारी की सबसे बड़ी मार देश के मजदूरों पर पड़ी है। आज प्रथम लॉक डाउन  के 52 दिन हो चुके हैं और हर तरफ प्रवासी मजदूरों की घर वापसी के सफर की दर्दनाक तस्वीरें बताती हैं कि इस लॉक डाउन ने उनके ऊपर कितनी अमानवीय परिस्थितियां पैदा कर दी हैं।
                    भारत में करीब  23 करोड़  प्रवासी मजदूर हैं जो कम से कम प्रति महीने 8000 रुपए अपने रहने खाने पर खर्च करते हैं | अगर 20 करोड़ प्रवासी मजदूर भी अपने घर वापसी कर रहे हैं तो यह शहरों में उनके द्वारा प्रतिमाह 1लाख 60 हजार करोड़ का बाजार जो कि सालाना 19 लाख 20 हजार करोड़ होता है जो हमारी सालाना अर्थव्यवस्था 204 लाख करोड़ का लगभग 10% है। इतनी सारी क्रय शक्ति महानगरों से चली जाती है तो इसका निश्चित तौर पर हमारी अर्थव्यवस्था पर बहुत बड़ा नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा | प्रवासी मजदूरों की कमाई से शहरों में रहने वाले लोगों को किराए के मकानों का किराया मजदूरों द्वारा खाने पीने का सामान कपड़े, दवाईयां परिवहन, मनोरंजन उद्योग आदि की कमाई पर सीधा असर पड़ेगा| कोरोना वायरस के पहले से ही हमारी अर्थव्यवस्था नोटबंदी और जीएसटी के कारण बहुत अच्छी हालत में नहीं चल रही थी जिस कारण यह पलायन और भी बड़ी मुसीबत साबित होगा|
          2019 में हमारे देश की कुल जीडीपी लगभग 200 लाख करोड़ थी जिसमें सर्विस सेक्टर का योगदान 61% इंडस्ट्री , 23% और कृषि क्षेत्र का योगदान लगभग 16% था| इस 23%  इंडस्ट्री को यही प्रवासी मजदूर अपने खून पसीने से चला रहे थे| अब मजदूरों के पलायन से निश्चित तौर पर इंडस्ट्री का योगदान कम हो जाएगा क्योंकि अगर मजदूर नहीं होंगे तो मशीनों पर कौन काम करेगा जिससे भारत में उत्पादन पर बहुत ही नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा| आज हमारी अर्थव्यवस्था के दो ही पहिए थे एक किसान दूसरा मजदूर और सरकारों के ध्यान न देने से दोनों ही पहिए जर्जर हो चुके हैं।
        लॉक डाउन के 2 महीने लगातार चलने से देश के सारे व्यापारिक क्रियाकलाप एकदम से ठप पड़े हुए हैं| इन 2 महीनों में शादी समारोह का जो बड़ा बाजार था वह भी खत्म हो गया है| पर्यटन, होटल रेस्टोरेंट, टैक्सी, एयरलाइन्स आदि उद्योग पूरी तरह से तबाह हो गये है । जिसके फलस्वरूप लोगों की रोजी रोटी जा रही है| आज बेरोजगारी शहरों में 30% और गांव को मिलाकर लगभग 27% पहुंच गई है जिससे लोगों की क्रय शक्ति लगभग आधे से भी कम हो चुकी है| अगर पूरे देश के हालातों पर नजर डालें तो कमोबेश पूरे देश की स्थिति यही |है लोगों के पास पैसा नहीं है और जब पैसा नहीं है तो मांग नहीं हो सकती और बिना मांग के  अर्थव्यवस्था को रसातल में जाने से कोई नहीं रोक सकता है।
                  सभी जानते हैं कि हमारे देश में हम आयात अधिक करते हैं और निर्यात कम जिससे हमारे देश का जो ट्रेड डिफिसिट है उसकी भरपाई हमारे देश के बाहर काम कर रहे लोग  हैं  जो देश में अपने घर विदेश से पैसा डॉलर में भेजते हैं। इस कोरोना संकट से भारत के बाहर काम कर रहे लोगों के   भी रोजगार खत्म हो गए हैं |  लाखों की संख्या में विदेश में काम करने वाले मजदूर भी भारत में अपनी घर वापसी कर रहे हैं|  अब देश को मिलने वाले करोड़ों डॉलर का नुकसान होना तय है।
         सरकार के समक्ष 2 सबसे बड़ी चुनौतियां हैं जिसमें एक है कोविड-19 से संक्रमित होने वाली लोगों की संख्या को जितना कम से कम हो किया जा सके जिससे कम से कम जनहानि हो और दूसरी तरफ देश की बे पटरी हुई अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाना।
                सरकार ने र 20 लाख करोड़ के राहत पैकेज की घोषणा की है लेकिन इस पैकेज की जो बातें सामने आ रही है उससे यही लगता है कि  यह आंकड़ों की बाजीगरी है|  सरकार से जब पूछा गया यह पैसा सरकार कहां से जुटाएगी तो सरकार का कहना है उधार लेकर|  सरकार निश्चित तौर पर अपने बांड बेचेगी या फिर आरबीआई को अधिक नोट छापने के लिए कहेगी जिससे मुद्रास्फीति की दर बढ़ेगी और देश में महंगाई बढ़ेगी जो तत्कालिक फायदा तो दे सकती है पर लंबे समय में अर्थव्यवस्था को नुकसान देगी।
                            सरकार का पहला प्रयास यह होना चाहिए जो मजदूर अपने घर को पहुंच रहे हैं उनके जीवन यापन की व्यवस्था हो ।मजदूरों  के लिए मनरेगा स्कीम ही एकमात्र साधन है जिसके द्वारा इतनी बड़ी संख्या मे रोजगार का सृजन किया जा सकता है|  यह मनरेगा ही थी जिसने दुनिया में 2008 में आए हुए मंदी के दौर को भी गांव तक नहीं पहुंचने दिया था क्योंकि 100 दिन के रोजगार गारंटी योजना के तहत मजदूरों को पैसा मिल रहा था और उस पैसे से ग्रामीण क्षेत्र की मांग कायम चल रही थी  , अर्थव्यवस्था का पहिया घूम रहा था|  सरकार को गांव स्तर पर, तहसील स्तर पर छोटे व्यापारियों को छोटे उद्योग धंधे को आर्थिक मदद देकर के इस काबिल करना होगा जिससे वह उत्पादन कर सकें और नए रोजगार को पैदा कर सकें।
                  इस समय  जिन लोगों को यह लगता है  कि कोविड-19 की मार से वह बच गए हैं तो यह उनकी गलतफहमी है|  कोविड-19 के अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव से  कोई भी  वर्ग नहीं बच सकता,वो भी उस हालात मे जब देश ने अपनी श्रम शक्ति को अमानवीय हालात में छोड़ दिया हो बस इंतेजार कीजिये देश को मजदूरों के आंसुओं की सजा भुगतनी होगी।

Leave a comment

I'm Emily

Welcome to Nook, my cozy corner of the internet dedicated to all things homemade and delightful. Here, I invite you to join me on a journey of creativity, craftsmanship, and all things handmade with a touch of love. Let's get crafty!

Let's connect

Recent posts