प्रख्यात आलोचक नंदकिशोर नवल का  दुखद देहावसान हो गया. अपना उनसे सीधा नाता सिर्फ इतना भर है कि आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी स्मृति समारोह में वर्ष 2012 में आचार्य द्विवेदी राष्ट्रीय स्मारक समिति ने उन्हें अपना दूसरा प्रतिष्ठित सम्मान “डॉ राम मनोहर त्रिपाठी लोक सेवा सम्मान” समर्पित करने का निर्णय लिया था. दूसरा नाता महाप्राण निराला और महावीर प्रसाद द्विवेदी समेत साहित्य में किए गए उनके अतुलनीय योगदान के एक छोटे से पाठक के रूप में है. उस कार्यक्रम में डॉक्टर नवल शरीर इसलिए नहीं पधार पाए थे कि उनकी शारीरिक अवस्था अच्छी नहीं थी. उम्र अधिक हो जाने से उनका कहीं आना जाना संभव नहीं था.
उन्होंने अपना यह सम्मान ग्रहण करने के लिए नई दिल्ली में रह रही अपनी यशस्वी पुत्री श्रीमती पूर्वा भारद्वाज (पत्नी विचारक अपूर्वानंद) को भेजा था. हम लोगों ने पूर्वा जी में ही डॉक्टर नवल के दर्शन किए थे. श्रीमती पूर्वा भारद्वाज की सरलता और सहजता में माता पिता द्वारा दिए गए संस्कारों का परिचय पूर्ण रूप से प्राप्त भी हुआ था. वह दिन और आज का दिन श्रीमती पूर्वा भारद्वाज से अपना किसी न किसी रूप से छोटा सा जुड़ाव बना ही हुआ है.
डॉक्टर नवल की 1981 में साहित्य अकादमी से प्रकाशित होकर पुस्तक आई थी “महावीर प्रसाद द्विवेदी”. इस पुस्तक में उन्होंने आचार्य द्विवेदी के साहित्यिक अवदान को विस्तार से रेखांकित किया है. उनका वास्तविक काम महाप्राण निराला पर ही है. निराला रचनावली के आठ खंडों का संपादन डॉक्टर नवल के द्वारा ही हुआ है. डॉ नवल ने अपनी समीक्षात्मक किताब “निराला और मुक्तिबोध चार लंबी कविताएं” में शीर्षक के अनुरूप निराला और मुक्तिबोध के काव्य की समानता ओं का वर्णन तो किया ही है साथ ही निराला की सबसे प्रसिद्ध कविता “सरोज स्मृति” एवं “राम की शक्ति पूजा” को लेकर कुछ आलोचनाओं की काट भी बहुत विवेकपूर्ण ढंग से पाठकों के समक्ष प्रस्तुत की है. डॉक्टर नवल की यह किताब पढ़ते हुए आप महसूस करेंगे कि युग कभी महाप्राण निराला के साथ कहां न्याय हुआ और कहां अन्याय..
अपनी आलोचना पुस्तक “निराला और मुक्तिबोध 4 लंबी कविताएं” ने महाप्राण निराला की 2 लंबी रचनाओं की आलोचना करते हुए डॉ नवल ने लिखा है- सरोज स्मृति के अंतिम अनुच्छेद का हिंदी में अर्थ का अनर्थ किया जाता रहा है. आश्चर्य यह देखकर होता है कि इसकी शुरुआत किसी और के द्वारा नहीं स्वयं डॉ रामविलास शर्मा के द्वारा की गई थी. तब से निराला संबंधी साहित्यिक चर्चा में लगातार उसी की आवृत्ति होती रही है. इस अनुच्छेद की आरंभिक 4 पंक्तियों में निराला सरोज को संबोधित कर कहते हैं:
मुझ भाग्यहीन की तू संबल
युग वर्ष बाद जब  हुई विकल,
दुख ही जीवन की कथा रही
क्या कहूं आज, जो नहीं कही!
डॉक्टर शर्मा साहित्य के साथ-साथ भाषा के भी पंडित हैं. इसलिए वे यह लक्षित किए बिना ना रह सके कि उनका अर्थ मानें तो वाक्य रचना गड़बड़ा जाती है लेकिन अपना भाष्य बदलने से बेहतर उन्होने यह समझा कि निराला पर ही यह आरोप लगा दे कि शोक की विहवलता मे वे दुरुस्त वाक्य लिखने का सामर्थ्य खो बैठे और उनका वाक्य विश्रंखल हो गया. कह रहे थे वे सरोज के बारे में और कह बैठे अपने बारे में में. डॉक्टर नवल स्पष्ट करते हैं कि इस प्रसंग में ज्ञातव्य है कि सरोज स्मृति के शेष अंशों में निराला ने अपने जिस असाधारण रूप से सजग भाषा बोध और शिल्प बोध का परिचय दिया है वह यहां भी पूरी तरह से दृष्टिव्य है. विश्रंखल शोकाधिक्य से निराला का वाक्य नहीं हुआ है विचलित आलोचक की दृष्टि हुई है क्योंकि वह वहां भी निराला पर ही केंद्रित है जहां उसे सरोज पर होना चाहिए..(पेज नंबर 37- 39).
 डॉ नवल की यह आलोचनात्मक पुस्तक का प्रथम संस्करण राधाकृष्ण प्रकाशन से 1993 में प्रकाशित हुआ था. तीसरा संस्कार 2004 में आया. निराला की दो महान रचनाओं को समझने के लिए आज के पाठकों को इस किताब से होकर जरूर गुजरना  चाहिए..
डॉक्टर नवल का जन्म 2 सितंबर 1937 को बिहार के वैशाली जिले में हुआ था. पटना विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग में प्रोफेसर रह चुके डॉ नवल की अब तक 12 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है आपने 5 वर्षों तक ट्रैमासिक पत्रिका आलोचना का भी सह संपादन किया.
आलोचना साहित्य के स्तंभ डॉ नवल के दुखद देहावसान पर हम सब उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि उन्हें अपने श्री चरणों में स्थान प्रदान करें.
 गौरव अवस्थी
रायबरेली
91-9415-034-340

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