आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की 156 वी जन्म तिथि के अवसर पर 10 मई 2020 दिन रविवार को आचार्य द्विवेदी राष्ट्रीय स्मारक समिति की ओर से ई परिचर्चा आयोजित की गई.

परिचर्चा में राजसभा टेलीविजन के सीनियर एसोसिएट एडिटर एवं देश के वरिष्ठ पत्रकार लेखक श्री अरविंद सिंह , श्रीमती कुसुम लता सिंह (प्रबंध संपादक ककसाड, नई दिल्ली) आचार्य पथ स्मारिका के संपादक एवं गीतकार आनंद स्वरूप श्रीवास्तव प्रोफेसर एके शुक्ला (बांदा), वरिष्ठ पत्रकार हेमेंद्र प्रताप सिंह तोमर (लखनऊ), श्रीमती स्नेह लता तिवारी (लखनऊ), श्री संजीव कुमार  संपादक ( युगवार्ता पाक्षिक पत्रिका नई दिल्ली ), श्रीमती निधि द्विवेदी  (लखीमपुर  खीरी) अनुपम सिंह परिहार (इलाहाबाद), श्रीमती  डॉ संध्या सिंह (प्रोफ़ेसर हिंदी डीएवी कॉलेज लखनऊ), डॉक्टर रामनरेश (पूर्व प्राचार्य उन्नाव), केंद्रीय विद्यालय के शिक्षक श्री महेंद्र तिवारी (जम्मू), डॉक्टर संदीप सिंह  (अध्यक्ष, हिंदी भाषा एवं साहित्य विभाग, राजकीय डिग्री कॉलेज बगहा पश्चिम चंपारण बिहार ),शोध छात्रा सुश्री रजिता दुबे ( चंडीगढ़), इंजीनियरिंग के छात्र से शिवम सिंह (वाराणसी) एवं श्री प्रसाद चौबे (जौनपुर) ने प्रतिभाग किया. नेट कनेक्टिविटी  ना हो पाने से परिचर्चा में प्रख्यात समालोचक एवं लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष आचार्य डॉक्टर सूर्य प्रसाद दीक्षित जी के आशीर्वचन सुनने से प्रतिभागी वंचित रहे.

2 घंटे चली इस ऑनलाइन परिचर्चा में अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में श्री अरविंद सिंह ने कहा कि आचार्य द्विवेदी हिंदी के पहले ऐसे साहित्यकार है जो तकनीक के भी जानकार थे. कोरोना संकटकाल में उनकी जन्म तिथि के अवसर पर तकनीक पर आधारित परिचर्चा का अपना महत्व है. उन्होंने आचार्य द्विवेदी के समग्र व्यक्तित्व को समाज के सामने लाने के लिए अभी और अधिक काम की जरूरत जताई. उन्होंने कहा कि विश्व में हिंदी ने अपना स्थान अवश्य बनाया है लेकिन आचार्य द्विवेदी के सपनों के अनुसार गुणवत्ता परक हिंदी की और जरूरत है.

पत्रकार हेमेंद्र प्रताप सिंह तोमर ने कहा कि आज पत्रकारों को समाचार संकलन तो सिखाया जा रहा है लेकिन भाषा पर पकड़ और संवेदनशीलता गायब होती जा रही है इसका असर पत्रकारिता में साफ देखने में आ रहा है. मीडिया संस्थानों को चाहिए कि शब्दों के महत्व को समझें और अपने संस्थानों में कार्यरत पत्रकारों को पूर्वजों के इतिहास और संघर्ष से परिचित भी कराएं.

प्रोफ़ेसर एके शुक्ला ने आचार्य द्विवेदी द्वारा भाषा के परिष्कार और साहित्य के सृजन में की गई तपस्या का उल्लेख करते हुए कहा कि उनके द्वारा संपादित कृतियां कालजई हो गई. मैथिलीशरण गुप्त की साकेत उनमें से एक है. वह ने हिंदी साहित्य को कई ऐसे साहित्यकार दिए जो हिंदी को सक्षम बनाने में सफल रहे.

शोध छात्रा सुश्री रजिता दुबे ने व्याकरण हीन होती जा रही हिंदी की दशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि समय की जरूरत है कि हम हिंदी को एक बार फिर से आचार्य द्विवेदी की मेहनत और संघर्ष के अनुकूल समर्थ भाषा बनाएं. दूसरी भाषाओं के शब्दों को हिंदी में समाहित तो किया जाए लेकिन अपने व्याकरण का पूरा ध्यान रखना हम हिंदी वालों का ही कर्तव्य है.

शिक्षक महेंद्र तिवारी ने हिंदी के बिगड़ते स्वरूप पर चिंता जताते हुए हिंदी जीवियो से व्याकरण सम्मत हिंदी के प्रयोग और कम से कम दूसरी भाषाओं के शब्दों के उपयोग का आग्रह किया. इंजीनियरिंग के छात्र शिवम सिंह एवं प्रसाद चौबे ने कहा कि ऐसे साहित्य का सृजन हो जिसमें समाज को बदलने और सुधार करने की शक्ति हो. आज साहित्यकार सजन तो हो रहा है लेकिन उसका प्रभाव भावी पीढ़ी पर उतना नहीं पड़ रहा है जितना आचार्य द्विवेदी के काल में देखने में आया है.

प्रारंभ में स्वागत करते हुए आचार्य पथ स्मारिका के संपादक आनंद स्वरूप श्रीवास्तव ने कहा कि आचार्य जी की स्मृतियों को सहेजने के लिए हिंदी समाज को आगे आना होगा आचार्य द्विवेदी राष्ट्रीय स्मारक समिति इस दिशा में पिछले 2 दशक से अधिक समय से सक्रिय है पिछले 10 वर्षों से आचार्य पथ स्मारिका का निरंतर प्रकाशन एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखी जानी चाहिए

आचार्य द्विवेदी राष्ट्रीय स्मारक समिति के अध्यक्ष विनोद कुमार शुक्ल ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया. समिति के वरिष्ठ सदस्य करुणा शंकर मिश्र एवं नीलेश मिश्र ने परिचर्चा के तकनीकी पक्ष का प्रबंधन किया.

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