रोजगार, व्यापार, कार्य बंद होने से आर्थिक अभाव की स्थिति में कई परिवार
उरई। वैश्विक महामारी कोरोना के चलते लागू किया गया लाक डाउन अब मध्यम वर्ग के लिए भी भारी पडऩे लगा है। लगभग दो माह पूर्व इसके लागू किए जाने के तुरंत बाद से ही दिहाड़ी मजदूरों के लिए आय के सारे स्रोत बंद हो गए थे। सिर्फ दिहाड़ी मजदूरों, कामगारों आदि की आजीविका पर ही संकट नहीं आया वरन संपूर्ण बाजार बंद करवाए जाने से सभी प्रकार के व्यापारिक प्रतिष्ठानों के आय के स्रोत प्रभावित हुए। सभी तरह के उद्योग बंद करवा दिए गए। सभी तरह की व्यापारिक क्रियाओं को प्रतिबंधित करवा दिया गया। सभी तरह का व्यावसायिक परिवहन रोक दिया गया। अत्यावश्यक सेवाओं को छोडक़र सभी तरह की व्यापारिक गतिविधियों के ठप हो जाने से सारा जनजीवन रुक सा गया था।
लाक डाउन के आरंभिक दौर में सभी के सामने दिहाड़ी मजदूरों, कामगारों, रेहड़ी, पटरी वाले दुकानदारों की समस्याएं उभर कर सामने आई। इनकी समस्याएं वाकई प्राथमिकता में हल करने योग्य भी थी। एेसे लोगों के लिए रोज कुंआ खोद कर रोज पानी पीने वाली स्थिति थी जो लाक डाउन के कारण बंद हो गई थी। इस वर्ग का परेशान होना स्वाभाविक था। इन लोगों के सामने राशन भोजन पानी का संकट उत्पन्न होना स्वाभाविक था। इस गंभीर स्थिति को समझते हुए न केवल शासन प्रशासन ने बल्कि समाजसेवियों ने खुले हाथों से इनकी सहायता करना आरंभ कर दिया था। दिहाड़ी मजदूरों, कामगारों के साथ साथ रेहड़ी वाले, पटरी वाले, फेरी वाले भी इसी सहायता का लाभ प्राप्त करते रहे। सहायता के लिए उठे हाथों ने न केवल अपने शहर के एेसे मजबूर लोगों का साथ दिया वरन दूसरे जनपदों, राज्यों से आए मजदूरों को भी सहायता उपलब्ध करवाई। इस वर्ग के साथ साथ समाज में एक ऐसा भी वर्ग है जिसे दिहाड़ी मजदूर, कामगार अथवा दिहाड़ी कमाई वाला भले ही न समझा जाए मगर उसकी स्थिति लगभग इसी के जैसी होती है। रेहड़ी, पटरी वाले दुकानदारों के अलावा समाज में ऐसे हजारों दुकानदार हैं जिनकी पारिवारिक आजीविका उनके व्यापार पर ही केंद्रित है। हजारों की संख्या में ऐसे कर्मचारी भी हैं जो इन्हीं दुकानदारों की व्यापारिक संरचना में अपना भरण पोषण कर रहे थे। लाक डाउन के आरंभिक दौर में ऐसा महसूस हो रहा था कि कुछ दिन की इस असामान्य स्थिति से निकलने का उपाय खोज लिया जाएगा अथवा स्थिति स्वत: ही सामने आकर कोई न कोई रास्ता बनाएगी। दुर्भाग्य से एेसा कुछ न हो सका। समय के साथ कोरोना संक्रमण का आतंक बढ़ता ही रहा और उसी के साथ लाक डाउन की अवधि को और बढ़ाना पड़ा। इस संदर्भ में विचारणीय होना चाहिए कि छोटे और मंझोले दर्जे के दुकानदार, उनके कर्मचारी और एेसे मध्यम वर्गीय परिवार जिनकी आय सीमित है, जिनकी बचतें अल्प हैं, जिनके पास अपनी आजीविका को चलाने के लिए, अपने व्यापार को संचालित करने के लिए बैंक सहित अन्य वित्तीय संस्थाओं के ऋण हैं, वे भी दिहाड़ी मजदूरों, कामगारों की तरह अब संकट में हैं। विगत लगभग दो माह की अवधि में व्यापारिक गतिविधि का ठप रहना। वित्तीय संस्थाओं के ऋणों के ब्याज का चुकाया जाना, अल्प बचतों का पारिवारिक खर्चों में समाप्त हो जाना आदि एेसे परिवारों के लिए भी संकट का कारण बन रहा है। समाज से उठते सहायता के हाथ फुटपाथ पर जीवन गुजारने वालों, झुग्गी झोपड़ी वालों, बेसहारा लोगों तक तो पहुंच जा रहे हैं मगर अब उन बहुत से परिवारों को सहायता की आवश्यकता है जो अपने रोजगार, व्यापार, कार्य के बंद होने के कारण आर्थिक अभाव की स्थिति में आ गए हैं। छोटे मंझोले दर्जे के दुकानदारों, उनके कर्मचारियों, ऐसे वेतनभोगियों का जो किसी दूसरे संस्थान की आय पर निर्भर हैं उनका समय अब वाकई कठिनता से गुजर रहा है। एेसे परिवार, व्यक्ति अपने छोटे से व्यापारिक प्रतिष्ठान के चलते सामाजिक स्थिति प्राप्त किए हुए हैं जिसके चलते सहज रूप में समाज इनकी आर्थिक तंगहाली को स्वीकार नहीं कर पा रहा है। न केवल समाज को बल्कि शासन प्रशासन को एेसे परिवारों की तरफ भी मदद के हाथ बढ़ाने चाहिए। एेसा इसलिए क्योंकि इनको लाक डाउन खुलने के बाद भी अनेक तरह की नकारात्मक गतिविधियों का सामना करना पड़ेगा। लंबे समय से बंद इनके प्रतिष्ठानों में सामानों के खराब होने की आशंका भी है। इस नुकसान की भरपाई इन्हीं दुकानदारों को ही करना होगा। एेसे में भले ही लाक डाउन को शर्तों के साथ खोल दिया जाए मगर छोटे, मंझोले दुकानदारों और सीमित आय वाले मध्यमवर्गीय परिवारों के भरण पोषण के प्रति शासन प्रशासन को, समाजसेवियों को ध्यान देने की आवश्यकता है।

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