
कोंच } कभी कभी कलाकारों को सरकार और अन्य समाजसेवी संस्थाओं की आवाज और अभिव्यक्ति बनकर सामने आना पड़ता है। करोना के चलते हुए लाॅकडाउन पर बनी आलोक की ये कृति मानव मन में चल रहे भावनाओं और भावुकताओं की उलझी शिराओं की एक सुलझी अभिव्यक्ति है।
आलोक की ये चित्रकारी गौर से देखने पर साफ संदेश मिल जाता है कि करोना नाम की इस खतरनाक वैश्विक महामारी या दैवी प्रकोप के चलते शक्तिशाली से शक्तिशाली मनुष्य तो क्या भगवान को भी मास्क लगाने पर विवस कर दिया हैं, ऐसे में जब शरीर बंधनों में बंधा हो तो क्यूं न मन की उड़ान को खुला छोड़ दिया जाए । मन तो स्वभाव से ही चंचल होता है उसे स्थिर कर, उसमें सवार होकर मनुष्य कभी स्वप्न में तो कभी दिवास्वप्न में न जाने कहां कहां भ्रमण कर आता है। वहीं जब वास्तव में इस मन की उड़ान का आश्रय लेने का समय आया है तो क्यूं ये शरीर दर दर भटकने को छटपटाता है, और एक बार सोचने का विषय तो यह है कि जब सारा संसार एक समान खतरे में घिरा है तो फिर हम भला कहां जाने या भागने की सोच रहे हैं। वास्तव में यही तो समय है जब केवल मन के पंछियों को उड़ने दिया जाए और शरीर को स्थिर कर घर की दहलीज के भीतर ही रोक दिया जाए और जैसे नियमों का पालन करने का अनुरोध शासन, प्रशासन और अन्य संस्थाओं द्वारा किया जा रहा है, उनका हम पूरी ईमानदारी से पालन करें। जिससे हम, हमारा परिवार और सारा समाज सुरक्षित रहे।
आलोक सोनी ने कला की शिक्षा लखनऊ विश्वविद्यालय के कला एवं शिल्प महाविद्यालय से ग्रहण की और कला एवं शिल्प विषय को लेकर कई प्रदर्शनियां भी सरस आर्ट ग्रुप के माध्यम से भी लगाई गई हैं । काॅलेज के दौरान कई मैडल के विजेता के रूप में कई बार विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। वर्तमान में सूरज ज्ञान मॉडर्न पब्लिक स्कूल में कला शिक्षक के पद पर कार्यरत हूं । यूं तो आलोक वर्तमान में कई नई पेन्टिंग्स को लेकर व्यस्त हैं






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