तात्कालिक विषाक्त माहौल से बहुत चितिंत होने की आवश्यकता नही है। वर्तमान में संक्रमण कालीन स्थितियां हैं लेकिन भारतीय मानस का स्थाई स्वभाव और सोच दूसरे किस्म का है। भारतीय मानते हैं कि ईश्वर के कई नाम हो सकते हैं और अलग-अलग लोग ईश्वर को अलग-अलग रूप में देख सकते हैं। लेकिन सभी का ईश्वर एक है। इसलिए देश में इतने निर्गुण, सगुण और अन्य विविध विचार धाराओं के पंथ चले सभी को यहां मान्यता मिली। दूसरे धर्मों के रीति-रिवाज और पूजा स्थलों का अनादर करने में इसी मानसिकता के कारण यहां के लोगों का दिल कांप जाता है। जिन धर्म भीरूओं का सिर हर मंदिर-मठ को देखकर अनायास झुकता है वे अगर किसी मस्जिद, गिरजाघर को देखें तो भी वे इस आदत को नही भूल पाते।
ईश्वर और धर्म की एकता की इस अवधारणा के कारण यहां हर धर्म की अच्छाइयों की ग्राहता है। लोग उनकी निंदा करके पाप के भागी नही होना चाहते। यहां तक कि मुगलों के काल में मुसलमानों ने हिंदू देवी-देवताओं की वंदना में पद्य रचे तो उन्हें रोका नही गया और न ही इस कुफ्र के लिए उन्हें कोई सजा देने का प्रयास हुआ। इस समय मुसलमानों का रमजान का महीना चल रहा है। आज आखिरी रोजा रखा जायेगा और सोमवार को ईद मनेगी तो हिंदू भी इस धार्मिक अनुष्ठान में हाथ बंटाकर शबाब बटोरने के लोभ का संवरण नही कर पा रहे हैं। मां वैष्णों देवी ट्रस्ट ने उनके भवन में क्वारंटाइन कर रहे मुस्लिम अकीदतमंदों का इसी भावना के नाते ख्याल रखा और हर रोज उनके सहरी व अफ्तार के प्रबंध किये।
इस्लाम में कई अच्छी बातें हैं जो कि सभी धर्म के लोगों के लिए अनुकरणीय हैं। दरअसल यह अमल का धर्म है और कोई धर्म या सिद्धांत तभी सफल होता है जब उसके मानने वाले परउपदेश कुशल बहुतेरे पंथ का न होकर अपने जीवन को वैसे सिद्धांतों में ढालने वाले हों। लाकडाउन ने इस बार धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन की खूब याद दिलाई। रमजान का महीना संयम का महीना है। आध्यात्मिक अनुभूतियों में पूरी तरह डूबने के लिए इस महीने मोमिनों को इंद्रियों को चंचल करने वाले सारे शौक त्यागने और हर तरह के संयम व सादगी का परिचय देने का आदेश है। हर धर्म में इस तरह के पर्व आते हैं और उस दौरान ऐसे ही अमल के निर्देश रहते हैं। लेकिन गड़बड़ी तब होती है जब लोग व्रत भी रखते हैं और सांसारिक कार्यों में लीनता भी नही छोड़ते। ईश प्रार्थना करने की बजाय इन पर्वों में भी चौबीस घंटे अपने दिमाग में पैसे की हानि-लाभ का गुणा-भाग चलाते रहते हैं। रमजान में तराबीह और अन्य अनुष्ठानों में चौबीस घंटे मोमिनों को इस तरह बांध दिया जाता है कि वे अन्य गुणा-भाग भूल जायें। दूसरे धर्मों में भी सारे व्रत-त्योहार ऐसे ही समर्पण से मनाये जाने चाहिए। यह कुदरत या ईश्वर की मांग है। अधूरे मन से धार्मिक कर्तव्यों के निर्वाह का लोगों का गुनाह पनप कर ही कुदरत ने ऐसी स्थितियां पैदा की जिससे लोगों को लाकडाउन झेलना पड़ा और इस दौरान अपने आप सारी सांसारिकता छूट गई। लाकडाउन-1 में कुदरत के इस तरह के संकेतों को डिकोड करके दिनचर्या को नये सिरे से व्यवस्थित करने का विमर्श जोर पकड़ा था लेकिन लोग आदत से इतने मजबूर हो चुके हैं कि ढील मिलते ही उन्होंने सारे सबब भुला दिये। इसी मौके पर रमजान आया जिसकी मोमिनों के अलावा दूसरे लोग भी देखा-देखी करेगें यह बहुत प्रासंगिक है। सारे धर्मों की एकरूपता का एक और उदाहरण इस्लाम में भी देखने को मिलता है। जिसकी चर्चा इस मौके पर की जानी चाहिए। यह है ध्यान का महत्व। गौतम बुद्ध को भी बोधि ज्ञान ध्यान लगाने पर हुआ जिसे उन्होंने सम्यक समाधि का नाम लिया। सारे भारतीय ऋषियों ने ध्यान के दौरान ही तत्व ज्ञान पाया। इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद साहब पर भी पहली बार जिब्राइल तब उतरा जब वे हिरा की गुफा में समाधिस्थ थे। ध्यान और समाधि ऊर्जा के परमपुंज से करंट लेने का साधन है तो दिनभर के लिए शारीरिक और मानसिक स्फूर्ति के अर्जन की भी प्रक्रिया है।






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