जगम्मनपुर। अथाह जलराशि वाला पंचनद संगम अब नदियों की टूटती जलधारा से अपने वजूद को बचाने के लिए छटपटा रहा है। इस कारण यहां की जल राशि में रहने वाले जल जंतुओं का वजूद भी खतरे में पड़ता दिखाई दे रहा है।
ज्ञात हो कि जालौन, इटावा, औरैया की सीमा का विभाजन करता पंचनद भारत का एकमात्र संगम स्थल है जहां पांच नदियों का मिलन होता है। यहां यमुना, चंबल दो बड़ी नदियों के अतिरिक्त सिंधु, कुंवारी, पहुज नदी जो सदैव कलकल करते हुए प्रवाहित रहती थी। पिछले सात आठ वर्षों से ग्रीष्मकाल में कुंवारी नदी की जलधारा टूटने लगी है लेकिन गत तीन वर्षों में अवैध खनन के कारण ग्रीष्मकाल में सिंध नदी का भी पानी सूखने लगा है। शेष तीन नदियां यमुना, चंबल, पहुज जो निरंतर बहती हैं किंतु इन दो वर्षों में चंबल नदी के पानी में भी कमी आ रही है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश में आबादी क्षेत्रों से दूर जंगल तथा घाटियों के बीच से निरंतर बह रही चंबल नदी का जलस्तर लगातार गिरने से जलीय जंतुओं के अस्तित्व के लिए भी खतरा बनता जा रहा है। ज्ञात हो कि चंबल नदी जिस इलाके से गुजरती है उसे सेंचुरी क्षेत्र घोषित किया गया है। वर्ष 1979 में 5400 किलोमीटर क्षेत्र चंबल सेंचुरी बनाया गया जिसमें उत्तर प्रदेश में 635 वर्ग किलोमीटर में है। चंबल में लगभग 1680 की संख्या में घडिय़ाल, 610 मगरमच्छ तथा लगभग एक सैकड़ा डाल्फिन हैं। इसके अतिरिक्त हजारों की संख्या में कछुआ भी इसी जल में संरक्षित है। पानी के निरंतर गिरते जलस्तर से इन जल जंतुओं का अस्तित्व खतरे में पड़ता नजर आ रहा है। आगरा के बाह्य क्षेत्र से पंचनद तक ऐसे अनेक स्थान हैं जहां चंबल नदी को पैदल पार किया जा सकता है। इसका मुख्य कारण यह है कि राजस्थान तथा मध्य प्रदेश सरकारों ने चंबल नदी का पानी पंप कैनालों के अथवा बांध बनाकर नगरीय एवं ग्रामीण क्षेत्रों में सप्लाई करना प्रारंभ कर दिया है इसलिए यह स्थिति उत्पन्न हुई है। चंबल नदी में पानी की मात्रा कम होने से पंचनद पर संगम के दोनों तटों की दूरी भी कम होती जा रही है। नदियों के किनारे पानी के अंदर रहने वाली चट्टानें खुलती जा रही हैं जो आने वाले भविष्य के लिए चिंता का विषय है। उक्त संदर्भ में जिम्मेदार अधिकारियों से बात करने पर उन्होंने बताया कि चंबल में जल प्रवाह को बढ़ाने के लिए कोटा बैराज अधिकारियों को पत्र लिखा गया है।

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