
माधौगढ़। इसे प्रशासन की बेशर्मी कहें या सत्तारूढ़ भाजपा की विफलता कि बीस दिन बाद भी गाय को न्याय नहीं मिल सका बल्कि गाय पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों के ऊपर कानूनी शिकंजा कसने की पूरी तैयारी हो रही है।
गाय के मुद्दे पर प्रशासन अपनी लापरवाही छिपाना चाहता है तो सत्तासीन भाजपा अपने चेयरमैन को बचाने के चक्कर में द्वंद्व में अटकी हुई है जिसके कारण बीस दिन बाद भी जांच और कार्रवाई किसी अंजाम तक नहीं पहुंच सकी है। महज औपचारिकता के लिए गुरुवार की देर रात सीडीओ प्रशांत कुमार श्रीवास्तव और एडीएम प्रमिल कुमार सिंह गौशाला में जांच के लिए पहुंचे जहां कार्रवाई की जगह एडीएम ने ग्रामीणों पर ही उल्टा रौब गांठते हुए उन्हें गौशाला की जिम्मेदारी देने और सबको अपने घरों में दो चार गौवंश रखने की नसीहत दे दी जिससे क्रुद्ध ग्रामीण भडक़ गए और मौके से चले गए। जांच के दौरान चेयरमैन ने युवाओं के खिलाफ लिखा मुकदमा सही ठहराते हुए आलाधिकारियों के सामने नगर पंचायत कर्मचारी से मारपीट होने की पुष्टि कर दी जिससे लोगों का गुस्सा भाजपा चेयरमैन के खिलाफ भी पनपने लगा। वैसे भी गौशाला के मुद्दे पर लोग चेयरमैन से लेकर पूरी नगर पंचायत को दोषी मान रहे हैं। हालांकि देर रात हुई जांच में कोई निष्कर्ष नहीं निकला। ग्रामीणों और गौशाला प्रकरण की पैरवी कर रहे लोगों ने पूरे मुद्दे पर अधिकारियों की जांच पर सवालिया निशान खड़े कर दिए क्योंकि गौवंशों की मौत, उनके बीमार हालत में तड़पते हुए दम तोडऩे, उन्हें बिना पोस्टमार्टम के दफना देने, उचित प्रबंधन न होने, युवाओं पर लिखा फर्जी मुकदमा आदि जैसे बिंदुओं पर जांच होने के मामले पर अधिकारी चुप्पी साध जाते हैं जबकि जांच इन बिंदुओं पर होनी चाहिए कि गौवंशों की मौत कैसे और क्यों हुई। इस सबकी बजाय एडीएम ने अपने अधीन नगर पंचायत की कमियों का बचाव करते हुए ग्रामीणों को ही गौवंश देने की बात कह दी जबकि गौसेवा आयोग के सदस्य कृष्ण कुमार ने भी गौशाला में कमियों और लापरवाही को सार्वजनिक स्वीकार करते हुए जिम्मेदारों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का भरोसा दिया था लेकिन 2 जून से हुई घटना पर प्रशासन और भाजपा सरकार मौन धारण कर निर्दोष युवाओं के कानूनी झमेले में फंसने का इंतजार कर रही है।






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