
शिराजुल हक मामू उस जमाने में पत्रकारिता में आये थे जब जुगाड़ करके किसी ब्राण्डेड अखबार या चैनल का संवाददाता बन जाने भर से लोग किसी को बड़े पत्रकार की मान्यता नहीं दे देते थे। वह लखनऊ से प्रकाशित नवजीवन के संवाददाता बने जिसकी जिले में चन्द प्रतियां आती थी लेकिन इसक बावजूद धारदार और खोजी रिपोर्टिंग की बदौलत मामू ने अपने नवोदित काल में ही धमाकेदार पहचान बना ली थी।
वह 85-86 का दौर था। उस समय प्रमुख अखबार मठाधीशो के पास थे लेकिन उन्हें जल्द ही नये लड़कों की तिकड़ी चुनौती देने लगी जिसमें शिराजुल हक मामू के अलावा संजय श्रीवास्तव और इन पंक्तियों का लेखक शामिल था। मामू से मेरा परिचय दैनिक अग्निचरण के प्रकाशन के समय हुआ और परिचय के साथ ही हमारे संबंध प्रगाढ़ हो गये। स्व0 कृष्ण बल्लभ भारती की छत्रछाया में संसाधन विहीन होते हुए भी दैनिक अग्निचरण को मैं कुछ ही महीनों में जिले के सबसे धाकड़ अखबार के रूप में सबसे आगे लाने में सफल हो गया था जिससे मेरे संपादन का सिक्का जम गया। आज मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि मेरी इस सफलता के पीछे मामू जैसे विश्वसनीय सहयोगियों का श्रेय था। बाद में पूरे तामझाम के साथ मेरे संपादन में दैनिक लोकसारथी शुरू हुआ तब तक मामू नवजीवन और संजय श्रीवास्तव अमृत प्रभात के माध्यम से पत्रकारिता में सीधी इंट्री कर चुके थे। इस तरह जालौन जिले की पत्रकारिता में एक मजबूत तिकड़ी सामने आ गई। हम लोग नई-नई खबरें लाते थे, प्रस्तुतीकरण में जान डालने में भी कसर नहीं छोड़ते थे। इसलिए जिले में पत्रकारिता की चर्चा छिड़ने पर इस तिकड़ी के ही चर्चे होते थे। इस तिकड़ी की चकाचैध के सामने प्रमुख संवाददाताओं का अस्तित्व वरिष्ठ और अनुभवी होने के बावजूद धूमिल पड़ जाता था।
शिराजुल हक दिलेर पत्रकार थे। उन्होंने कई ऐसी खबरें लिखी जिनका इम्पेक्ट यादगार बन गया। लालकृष्ण आडवाणी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में उरई आये तो स्थानीय आयोजकों ने उनकी गाड़ी जिसे शख्स से ड्राइव कराई उसे लेकर सनसनीखेज विवाद पैदा हो गया। शिराजुल हक ने इसकी तस्वीर हासिल कर ली। उस समय वीपी सिंह का आंदोलन जोर पकड़ चुका था। जिसमें भारतीय जनता पार्टी पूरा सहयोग कर रही थी। कांगेसी प्रकाशन होने की वजह से नवजीवन के लिए यह खबर बहुत काम की थी। नवजीवन के साथ-साथ नेशनल हेराल्ड और और इस ग्रुप के उर्दू दैनिक कौमी आवाज में भी यह खबर पहले पन्ने पर छपी। स्वच्छ राजनीति के लिए वीपी सिंह के साथ संधर्ष का दम्भ भर रही भाजपा के लिए यह खबर उसकी नैतिक साख पर जबरदस्त चोट का कारण बन गई। पार्टी के मुम्बई अधिवेशन में इस पर हलचल मची रही। स्व0 बाबूराम जी के खिलाफ कार्यवाही के नौबत आ गई। शिराजुल हक के प्रति खतरनाक दुश्मनी पनप गई पर वे विचलित नहीं हुए। मै उन्हें लगातार सावधानी बरतने के लिए आगाह करता रहा पर मामू की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा।
कल्याण सिंह जब पहली बार मुख्यमंत्री बने उस समय शिराजुल की नवजीवन में अवैध खनन को लेकर एक खबर ब्लैक हुई। यह इतनी सटीक खबर थी कि राज्य सरकार को इसे संज्ञान में लेना पड़ा। एक आदेश जारी हुआ कि कदौरा और डकोर थानों में पिछले तीन साल में जो दरोगा थानाध्यक्ष तैनात रहे थे उन्हें फील्ड से हटाकर लूप लाइन में डाल दिया जाये। इस आदेश के कारण एक साथ 13 दरोगाओं पर गाज गिरी और उनकी परिसंपत्तियों की जांच आर्थिक अपराध अनुसंधान विभाग को सौप दी गई। पुलिस विभाग में लखनऊ तक इस खबर की वजह से तहलका मचा रहा।
एक और खबर याद आती है जो मामू ने ब्रैक की थी। रामपुरा ब्लाक में वर्षो से कृषि रक्षा इकाई कीटनाशक दवाओं का फर्जी वितरण कर रही थी। दवायें प्राप्त करने वालों की उसकी सूची में कई ऐसे नाम होते थे जिन्हें दिवंगत हुए जमाना गुजर चुका था। मामू ने यह पूरी सूची अपने कब्जे में कर ली और खबर में इसका भंडाभोड़ कर दिया। नतीजा यह हुआ कि रामपुरा ब्लाक में पिछले कुछ वर्षो में तैनात रहे 6 खण्ड विकास अधिकारी एक साथ निलंबित कर दिये गये। मामू की खबर का शिकंजा एक विधायक के कैरियर पर भी जकड़ गया था। जिन्होंने ब्लाक प्रमुख रहते हुए गोबर गैस के लिए अनुदान तो हतिया लिया लेकिन इसका प्लांट नहीं लगाया। जवजीवन में खबर छपने पर शासन को इसकी जांच के लिए मंडलायुक्त को भेजना पड़ा जिसके बाद विधायक की सदस्यता पर बन आयी। भारी राजनीतिक दबाव जुटाकर वे विधायक अपनी सदस्यता बचा सके।
एसोसिएट प्रेस पर ताड़ा पड़ जाने के बाद जब नवजीवन का प्रकाशन बंद हो गया तो मामू पीटीआई से जुड़ गये। अच्छे पत्रकार होने के साथ-साथ मामू राजनीतिक सामाजिक कार्यकर्ता और कुशल संगठन कर्ता भी थे। लखनऊ विश्वविद्यालय छात्रसंघ के चुनाव में वे लम्बे समय तक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे। स्व0 समरपाल सिंह और राकेश राणा के अध्यक्ष चुने जाने में मामू का योगदान भुलाया नहीं जा सकता। बुन्देलखण्ड के छात्रों पर मामू की बहुत अच्छी पकड़ रहती थी नतीजतन वे जिस उम्मीदवार का समर्थन करते थे उसी की गोटी लाल हो जाती थी।
मुझे कई बार डीएम एसएसपी स्तर के अधिकारियों का कोप भाजन अपनी वेवाक खबरों के कारण बनना पड़ा इस दौरान मेरे विरूद्ध संगीन मुकद्दमें कायम करा दिये गये जिससे भय का ऐसा माहौल बन गया कि लोग मेरा साथ छोड़ गये पर मामू इन लड़ाइयों में पूरी निर्भीकता से मेरे साथ जुटे रहे। राजीव भटनागर जैसे खतरनाक अंतरराष्ट्रीय गैंगस्टर के बारे में लिखने की वजह से जब मेरी जान खतरे में पड़ गई तो प्रशासन ने मुझे गनर की सुरक्षा उपलब्ध कराई। लेकिन भयानक हालातों में मुझे पुलिस की सुरक्षा से ज्यादा मामू के साथ ने हौसला दिया। हम लोग पत्रकारिता के माध्यम से समाज में बदलाव लाने का स्वप्न देखते थे लेकिन हर किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता जब तक उम्र थी हम लोग अपने आदर्शो के लिए जूझते रहे पर अंततोगत्वा हमें पस्त होना पड़ा। फिर भी अभी सब कुछ चुका नहीं था। मामू की शायद अभी भी बहुत जरूरत थी। वे उस मशाल को थामें रखने में कारगर थे जो अपने नवोदित काल में हम लोगों के जज्बे की तड़प से जलायी गई थी।






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