भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के लिए क्यों इतने दुलारे हो गये ब्रजभूषण


पूर्व सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह पर भाजपा हाईकमान का लाड़ आजकल जिस तरह बरस रहा है वह चर्चा का विषय बना हुआ है। गत 19 अगस्त को ब्रजभूषण शरण सिंह के बेटे करण भूषण ने अपने बच्चों कामांक्षी सिंह और अमर्थ भूषण सिंह के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की। दोनों ही नेता बहुत व्यस्त रहते हैं। प्रधानमंत्री तो इतने व्यस्त रहते हैं कि हाल के महीनों में उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ कई बार उनसे मुलाकात करने दिल्ली गये लेकिन उनको अमित शाह और जेपी नडडा के दर्शन में ही संतोष करके वापस लौटना पड़ा। प्रधानमंत्री उनसे मुलाकात के लिए समय नही निकाल सके। हालांकि कई बार के प्रयास के बाद उन्हें किसी तरह प्रधानमंत्री से भेंट की इच्छा का सौभाग्य बाद में प्राप्त हो गया था। लेकिन करण भूषण सिंह पहली बार के निर्वाचित सांसद हैं और वह भी एवजी सांसद हैं। उनके पिता ब्रजभूषण के महिला पहलवानों पर दिखाई गई मर्दानगी के कारण भाजपा उनको 2024 का टिकट देने में सकुचा गई थी। लेकिन ऐसे पुण्य कर्ता से मुंह मोड़ने का पाप भी संभव नही था। इसलिए बात बनाई गयी और ब्रजभूषण के स्थान पर उनके बेटे करण भूषण को टिकट दे दिया गया तो करण भूषण एवजी सांसद हुए न।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राजनीति में वंशवाद के खिलाफ भी दिल्ली आने के बाद से परचम उठाये हुए हैं। लेकिन करण भूषण को मुलाकात का समय देते हुए इस मामले में उनको धर्म भ्रष्ट होने का डर नही सताया। प्रधानमंत्री की बहादुरी के ऐसे नमूने हर दिन और दिन में कई बार सामने आते हैं जब कई बार अपनी घोषित आन तोड़ने में लोकलाज उनके आड़े नही आ पाती। चूंकि वे अलौकिक प्रधानमंत्री हैं इसलिए उन्हें जवाबदेही के घेरे में लेना मुनासिब नही है।


महिला पहलवान जब उनके खिलाफ आसमान सिर पर उठाये हुए थीं तो उस समय प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृहमंत्री के लिए उनके गुणों को पहचानने का अवसर था। चूंकि देश के ये शिखर नेता इस मामले में असाधारण प्रतिभा के धनी हैं। इन्होंने कई बार अपनी गुण ग्राहक विशिष्टता का प्रदर्शन किया है। अजय मिश्रा टिन्नी के साहबजादे द्वारा अपनी थार जीप से किसानों को कुचलने के मामले में भी इन नेताओं की अडिगता का नमूना सामने आया था। अजय मिश्रा ने खुलेआम इस घटना को नकारने का प्रयास करके गृह राज्य मंत्री की अपनी हैसियत का उपयोग केस को ट्विस्ट करने की कोशिश की थी लेकिन इस दुस्साहस के बावजूद उनका विभाग तक बदलने की नही सोची गई। इसे प्रशासनिक दृढ़ता कहें या धृष्टता यह लोगों के विवेक पर निर्भर है। लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इतने साहसी नही हैं। वे मानते हैं कि लोकलाज भी कोई चीज है जिस पर आंच आते दिखती है तो वह हाथ खींचने में अपनी भलाई समझते हैं। महिला पहलवानों के मामले में केंद्रीय नेतृत्व के रवैये के विपरीत योगी का रुख अपने पुराने मित्र ब्रजभूषण के प्रति ऐसा रहा कि वे उसे दगा की तरह मानने लगे।


ब्रजभूषण और सीएम के बीच बोलचाल तक बंद हो गई। खबरें तो यहां तक हैं कि देवीपाटन मंडल में ब्रजभूषण शरण सिंह की सरकार के समानान्तर हुकूमत को खत्म करने तक का इरादा योगी ने बना लिया तांकि ब्रजभूषण सिंह को एहसास हो सके कि उनको सीमा का ध्यान रखना चाहिये था। पानी सिर से ऊपर चला गया तो कीमत चुकानी पड़ेगी। इसके तहत योगी ने पीडब्लूडी और अन्य विभागों में टेंडरों पर उनके एकाधिकार को रोक दिया। गोंडा के डीएम, एसपी को हिदायत दी गई कि वे ब्रजभूषण से दूरी बनाकर काम करें। देवीपाटन क्षेत्र में उन्होंने ब्रजभूषण शरण सिंह के बरक्स कीर्तिवर्धन सिंह का कद बढ़ाना शुरू कर दिया।
ब्रजभूषण ने अपना साम्राज्य खत्म होते देख केंद्रीय नेतृत्व का सहारा लिया तो केंद्रीय नेतृत्व ने योगी आदित्यनाथ को इशारा दिया कि ब्रजभूषण से राजनीतिक अदावत पार्टी को मंहगी पड़ सकती है इसलिए उन्हें मुलाकात का समय दें और उनसे दूरियां खत्म करें। योगी आदित्यनाथ ने इस पर यस कह दिया जिसके चलते 31 महीने के अबोलेपन के बाद 21 जुलाई को ब्रजभूषण लखनऊ में योगी के सरकारी आवास पर पहुंचे। योगी और उनके बीच कोई कहता है कि केवल 15 मिनट बात हुई और कोई कहता है कि मुलाकात 1 घंटे चली। लेकिन जो भी हो यह स्पष्ट रहा कि योगी ने मुलाकात में किसी ठोस मुददे पर चर्चा का अवसर नही आने दिया और उनकी और उनके परिवार की कुशलक्षेम पूंछने में मुलाकात का पूरा समय गुजार दिया। ब्रजभूषण योगी के इस रवैये से खिन्न होकर निकले लेकिन उन्होंने फिर भी संयम साधा। पर पत्रकारों से यह जताकर कि मुलाकात की पहल उन्होंने नही की थी मुख्यमंत्री की ओर से मिलने का संदेश आया तो वे चले आये ब्रजभूषण ने कहीं न कहीं भड़ास सी निकाली थी।
इसके बाद ब्रजभूषण के सामने यह स्पष्ट होता गया कि अभी भी देवीपाटन मंडल में उनका साम्राज्य बरकरार न रहने देने के योगी के निश्चय पर कोई अंतर नही आया तो ऐंठू मिजाज के ब्रजभूषण भी जबावी कार्रवाई के लिए तैयार हो गये। योगी से भेंट करने गये बाबा रामदेव को सार्वजनिक रूप से काना बाबा कहकर ब्रजभूषण ने एक तरह से योगी को चिहुकाने का काम किया। मीडिया में इस तरह की खबरे प्लांट कराई जाने लगीं जिससे ब्रजभूषण को उत्तर प्रदेश की राजनीति के अत्यंत सशक्त राजपूत नेता के रूप में जनमानस में स्थापित किया जा सके। यहां तक कि ऐसी खबरे भी चलवाई गईं कि ब्रजभूषण को भाजपा का हाईकमान योगी का विकल्प बना सकता है। जाहिर है कि ब्रजभूषण के कद संवर्द्धन की इस कवायद के पीछे भाजपा हाईकमान के अदृष्ट प्रयास रहे। इसी कड़ी में उनके पुत्र से परिवार सहित भेंट करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने समय निकाल लिया। चूंकि उनकी नजर में इस मुलाकात में बड़ी राष्ट्रीय उपयोगिता नजर आई होगी।


2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री थे तो तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह देश के सबसे बड़े क्षत्रिय नेता के रूप में आम धारणाओं में मान्य किये जा चुके थे। वैसे तो राजनाथ ने ही नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के चेहरे के रूप में पार्टी की ओर से पेश कराने मेें भूमिका निभाई थी। लेकिन कहा यह जाता है कि उनको यह उम्मीद नही थी कि चुनाव में भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिलेगा। इसलिए उन्होंने सोच रखा था कि गठबंधन में सहयोगी दलों को मोदी स्वीकार नही होगें और गेंद उनके पाले में आ जायेगी पर यह नही हुआ। कुर्सी पर आसीन होने के बाद ये चर्चाएं मोदी के कानों में भी पहुंची तो उन्होंने राजनाथ के कद के अल्पीकरण का इंतजाम किया। इसी के तहत उन्होंने नरेंद्र सिंह तोमर को अपने मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री बनाकर राजनाथ के समकक्ष खड़ा किया। उत्तर प्रदेश में भी क्षत्रियों के एकछत्र नेता के रूप में राजनाथ के कद को कट साइज करने के लिए ही उन्होंने योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाने पर सहमति दे दी। इस क्रम में शुरूआत में केंद्रीय नेतृत्व ने योगी को पर्याप्त प्रोत्साहित भी किया पर बाद में अपनी महत्वाकांक्षाओं के कारण जिसे दवा समझा गया था वे योगी केंद्रीय नेतृत्व के लिए दर्द बन गये। इस बीच राजनाथ चूंकि मोदी के सामने पूरी तरह सरेंडर कर गये थे इसलिए नरेंद्र सिंह में केंद्रीय नेतृत्व की रुचि समाप्त हो गई थी और उन्हें मध्य प्रदेश का विधानसभा अध्यक्ष बनाकर निपटा दिया गया था। अब योगी के मुकाबले नया ठाकुर चेहरा लाने की मशक्कत हो रही है। क्षत्रिय राजनीति की बिसात पर केंद्रीय नेतृत्व के मोहरेबाजी के खेल में फिलहाल ब्रजभूषण के नाम की गोटी लाल की जा रही।

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