रामपुरा पुलिस की मनमानी – महिला के खेत में जबरन कटवाए कीमती यूकेलिप्टस

माधौगढ़-उरई | न्याय की चौखट पर खड़ी एक महिला की पुकार को रामपुरा पुलिस ने अनसुना कर दिया। उच्च न्यायालय की स्पष्ट गाइडलाइन को ताक पर रखते हुए पुलिस ने केरल कैडर के एक आईपीएस अधिकारी के दबाव में आकर ऐसा कदम उठाया जिसने न केवल कानून बल्कि इंसाफ को भी शर्मसार कर दिया।

धरमपुरा जागीर गांव की बहू अंजना उपाध्याय के नाम दर्ज खेत में खड़े कीमती यूकेलिप्टस के पेड़ों को पहले तो पुलिस ने कटने से रोक दिया, लेकिन मात्र दस दिन बाद उसी खेत की लकड़ी को आईपीएस बलराम उपाध्याय के ठेकेदार के हवाले कर दिया। महिला अपने 86 वर्षीय ससुर के साथ थाने की चौखट पर न्याय की गुहार लगाती रही, लेकिन पुलिस ने मनमानी दिखाते हुए ठेकेदार को ट्रैक्टर-ट्रॉली सुपुर्द करवा दी।

महिला के नाम दर्ज खेत पर जबरन दखल

जानकारी के अनुसार, ओमप्रकाश उपाध्याय ने अपनी बहू अंजना उपाध्याय को दानपत्र द्वारा लगभग 8 बीघा खेत हस्तांतरित कर दिया था। खतौनी में महिला का नाम दर्ज भी हो चुका है। बावजूद इसके, अंजना के जेठ और केरल में तैनात आईपीएस बलराम उपाध्याय ने एसडीएम कोर्ट में आपत्ति दाखिल कर दी। इसी आपत्ति को आधार बनाकर 20 अगस्त को पुलिस ने अंजना को पेड़ काटने से रोका।

लेकिन हैरानी तब हुई जब 31 अगस्त को स्वयं बलराम उपाध्याय ने पुलिस की मिलीभगत से महिला के नाम दर्ज खेत के पेड़ कटवाने शुरू कर दिए। आपत्ति करने पर रामपुरा पुलिस ने आधा सैकड़ा पुलिसकर्मियों के साथ मौके पर पहुंचकर महिला की दलीलों को दरकिनार करते हुए लकड़ी से भरी ट्रैक्टर-ट्रॉली को ठेकेदार के हवाले कर दिया।

कानून और इंसाफ दोनों पर चोट

महिला बार-बार अपने खेत के कागजात पुलिस को दिखाती रही, लेकिन पुलिस ने सिर्फ एक ही जवाब दिया—“कोर्ट जाइए।” हैरानी की बात यह है कि उच्च न्यायालय पहले ही साफ कर चुका है कि राजस्व व जायदाद संबंधी विवादों में पुलिस हस्तक्षेप नहीं करेगी, लेकिन रामपुरा पुलिस ने इस आदेश को धज्जियों की तरह उड़ा दिया।

जनप्रतिनिधियों की अनदेखी

घटना की जानकारी मिलते ही भाजपा जिलाध्यक्ष से लेकर जिला पंचायत अध्यक्ष तक ने पुलिस अधिकारियों से संपर्क किया, लेकिन इंस्पेक्टर और पुलिसकर्मी आईपीएस के दबाव में ही काम करते दिखे। महिला और 86 वर्षीय बुजुर्ग गिड़गिड़ाते रहे, लेकिन पुलिस ने अपनी खाकी का रौब दिखाते हुए मनमानी जारी रखी।

बड़ा सवाल

क्या किसी बड़े ओहदे पर बैठा अधिकारी अपने प्रभाव के दम पर किसी का खेत जबरन कटवा सकता है? क्या न्याय के मंदिर कहे जाने वाले उच्च न्यायालय के आदेशों को इस तरह अनसुना किया जाएगा? और सबसे बड़ा सवाल—जब आम आदमी ही पुलिस की मनमानी और दबंगई का शिकार होगा, तो फिर न्याय आखिर मिलेगा कहां

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