राजनीति की फार्मूला फिल्म के हिट डायरेक्टर अब बेवसी में घिरे


देश के शीर्ष उद्योगपति मुकेश अंबानी की अमीरी कई पीढ़ियों की बात नही है। उनके एक पीढ़ी पहले ही उनके पिता धीरू भाई अंबानी पंप पर पेट्रोल भरने की नौकरी करते थे। बाद में उन्होंने स्वयं का व्यवसाय शुरू किया और प्रतिभा व उद्यमिता के दम पर अपने समय ही उद्योग जगत के शीर्ष स्थान तक की सीढ़ियां चढ़ लीं। मुकेश अंबानी की दास्तान सुनाने का मकसद यह है कि क्या आज वे इस बात के अधिकारी हैं कि अपने पिता के किसी समय गरीब होने की दुहाई दें। उन पर छापा पड़ जाये तो कहें कि जांच करने आये आईआरएस अधिकारी नामदार हैं इसलिए एक गरीब के बेटे को नीचा दिखाने के लिए उनके यहां फौजफाटा लेकर आ पिले हैं। कुछ ऐसा ही माजरा है अपने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के मामले में।


गुजरात के मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री के पद पर रहने तक उनके लगभग 24 वर्ष पूरे हो चुके हैं। गत वर्ष अक्टूबर में सफल और सक्षम नेतृत्व के 23 वर्ष शीर्षक से गुजरात ने उनकी सफलता का राजकीय खर्चे पर जो जश्न मनाया था उसमें केवल मीडिया को दिये गये विज्ञापनों का खर्चा 8 करोड़ 81 लाख था। यह तो जग जाहिर हो चुका है कि हमारे प्रधानमंत्री कितने शौकीन मिजाज हैं। अगर कुछ लोगों को यह कहना आपत्तिजनक लगे तो कहे देते हैं कि उनका सुरुचि बोध कितना उन्नत है। हाल में एक आरटीआई के माध्यम से जानकारी आई थी कि गत 22-23 अप्रैल को उनकी सऊदी अरब यात्रा पर जो होटल लिया गया था उसका किराया 10 करोड़ 26 लाख रुपये था। यात्रा के बीच में ही पहलगाम हमला हो गया था जिससे 12 घंटे बाद ही यात्रा समाप्त कर वे स्वदेश लौट आये थे। एक आरटीआई कार्यकर्ता अजय वासुदेव बोस द्वारा मांगी गई जानकारी में बताया गया था कि 12 घंटे की उनकी सऊदी यात्रा पर कुल 15 करोड़ 54 लाख रुपये का खर्चा सरकारी खजाने को झेलना पड़ा। जिसमें 10 करोड़ 26 लाख रुपये अकेले जेददा के उस होटल का था जो उनके लिए बुक किया गया था। इसके अलावा स्थानीय परिवहन पर उनका खर्चा लगभग 4 करोड़ रुपये रहा था।


वे कौन सा और कितनी कीमत का विदेशी चश्मा लगाते हैं, घड़ी पहनते हैं, उन्होंने अपने लिए कौन सा प्लेन खरिदवाया है। कौन सी कार है जिसको उनकी इच्छापूर्ति के लिए आयात किया गया। इतने महगे शौक पालने वाले और इतने बड़े ठाट-बाट के अभ्यस्त होकर भी मोदी जी कहें कि उन जैसे गरीब को कुर्सी पर देखना नामदार राहुल को बर्दास्त नही हो रहा है तो यह प्रपंच की इन्तहा है। वर्तमान संदर्भ में जो राहुल आज तक मंत्री पद पर भी नही बैठ पाये वे अभी भी नामदार बने हुए हैं और आप दुनियां के रईस से रईस की विलासी जीवन शैली को मात करने वाली शानदार जिंदगी भोग रहे हैं तो भी कोई आपको दयनीय, हीन, गरीब समझकर तिरस्कृत कर रहा है आपकी इस शिकायत पर कोई क्यों न मर जाये।
एक समय था जब नरेंद्र मोदी के भावनापूर्ण भाषणों का हृदय स्पर्शी प्रभाव होता था। लेकिन काठ की हांडी बार-बार नही चढ़ती। जहां जाना वहीं से अपना पुराना रिश्ता बताने लग जाना, वहां की धरती और नदी को मां कहकर यह कहना कि मुझे मां ने अपनी सेवा के लिए बुलाया है, लोकल भाषा में बोलने लग जाना ये सारे चोचले अब लोगों को विद्रूप नजर आने लगे हैं। यही कारण है कि मतदात सूची धांधली के मुददे को लेकर राहुल गांधी का जो शोर देश भर में मच रहा है उससे आक्रांत मोदी के लिए राहुल की यह नई घोषणा कि उन्होंने कर्नाटक के महादेवपुरम निर्वाचन क्षेत्र में हुई धांधली का जो भंडाफोड़ किया था वह परमाणु बम का विस्फोट था। अब उनकी हाईड्रोजन बम का विस्फोट करने की तैयारी है। इसने मोदी को भयानक रूप से डरा डाला है। उनके सारे प्रतिरक्षात्मक औजार बेकाम हो चुके हैं। ऐसे में हाईड्रोजन बम को अपने ऊपर से भटकाने के लिए उन्होंने यह शोशा छोड़ा है कि उनकी दिवंगत मां को गालियां दी जा रही हैं जिस पर वे तो कुछ नही कहेगें लेकिन बिहार की जनता इसे माफ नही करेगी। यह इमोशनल कार्ड उन्होंने बिहार में बह रही राजनैतिक हवा का मिजाज बदलने के लिए छोड़ा था लेकिन अब इससे जुड़े प्रश्न उन्ही के गले पड़ने लगे हैं।
गोदी मीडिया से उन्होनें खूब प्रचार कराया कि मां को दी गई गालियां सुनकर मोदी जी किस कदर रो पड़े हैं। इसके बावजूद बिहार में अंधभक्तों को छोड़कर उनकी देखा-देखी किसी को रोना नही आया है। लोग गिनवाने लगे हैं कि अगर मोदी जी को मां-बहनों के सम्मान की इतनी ही परवाह है तो पहले खुद वे ऐसी भाषा का इस्तेमाल क्यो किये थे। खुद तो किये ही थे पार्टी में भी ऐसी क्षुद्र मनोवृत्ति के लोगों को प्रोत्साहित किये हुए थे। कांग्रेस के प्रवक्ता सुरेंद्र राजपूत तो अपना ताजा मामला उठा रहे हैं जिसका मोदी सेना को जबाव देते नही बन रहा। ध्यान रहे कि कुछ दिनों पहले एक टीवी डिबेट में भाजपा प्रवक्ता प्रेम शुक्ला ने सुरेंद्र राजपूत की मां को गंदी गालियां दीं। एकंर तक उनके दुस्साहस पर सकते में आ गया था। सुरेंद्र राजपूत अब पूंछ रहे है कि प्रधानमंत्री की मां और उनकी मां दोनों की इज्जत बराबर होनी चाहिए। लेकिन क्या मोदी ने अपने प्रवक्ता को इस बदतमीजी के लिए हटाने की चेष्टा की। क्या उससे माफी मंगवाई। मोदी जी के चेलों की तो क्या कहें खुद उनमें कम सौजन्य नही है। सोनियां गांधी के लिए जर्सी गाय, बार डांसर आदि विशेषणों से नवाजते समय उन्हें कोई सलीका ध्यान नही आया। रेणुका चौधरी के लिए जब उन्होंने सदन में कहा कि बहुत दिनों बाद सूपर्णखां का अटटाहस सुनने को मिला तब उनकी जीभ नही लड़खड़ाई। दिवंगत राजीव गांधी के लिए जब उन्होंने कहा था कि वह मिस्टर क्लीन बनकर आया था और कलंकित होकर मरा तब भी उन्हें नही लगा था कि देश के प्रधानमंत्री के बोलने में कुछ तो मर्यादा होनी चाहिए। पिछली लोकसभा में उनके लड़ैते सांसद रामसिंह विधूड़ी ने बसपा के उस समय के सांसद दानिश अली के लिए जो शब्द कहे वे भारतीय संसद की प्रतिष्ठा को कलंकित करने वाले थे लेकिन मोदी है तो मुमकिन है। निशिकांत दुबे तो उच्छृंखल शब्दावली के मामले में मोदी जी के छुटटा साड़ हैं। कर्नल सोफिया कुरैशी के बारे में प्रवचन करने वाले मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार के मंत्री विजय शाह का भी कौन सा बालबांका हो गया। गाली-गलौज की संस्कृति के असभ्य मानक देश के सार्वजनिक जीवन में इंजेक्ट किये जा रहे हैं। इसका प्रमुख रूप से जिम्मेदार कौन है।
विषयांतर न करते हुए मूल बात पर आते हैं कि प्रधानमंत्री की अपनी दिवंगत मां को मोहरा बनाकर की गई भावुक अपील आम जनमानस में कोई उबाल क्यों नही ला पा रही। इस नाम पर जो प्रायोजित प्रदर्शन हो रहे हैं उनमें केवल भाजपा के लोग दिखाई देते हैं आम लोग न इधर की सुनने में रुचि ले रहे हैं और न उधर की। इस बारे में भी मोदी किसी को बहका नही सकते कि जो गालियां बोली गई उनमें राहुल या तेजस्वी की सहभागिता है या सहमति है। सभी जानते हैं कि नेताओं का उस युवक की अभद्रता से कोई लेना-देना नही है। इसी कारण राहुल ने कह भी दिया है कि जिसने मोदी जी की मां को गालियां दी हैं उसको कड़ी सजा दी जाये। इसके बाद राहुल को घेरने का कोई अर्थ नही रह जाता। लेकिन मोदी जी और भाजपा ने समय-समय पर जो सूक्त वाक्य कहे हैं और उनकी हेकड़ी से दफन हो गये थे वे जबाव देने के क्रम में अब बाहर निकाले जा रहे हैं तो भाजपा की उल्टी फजीहत होने लगी है। मोदी जी की हालत हिंदी फिल्मों के उस पुराने डायरेक्टर की हो गई है जो एक समय गिने-गिनाये फार्मूलों के इस्तेमाल से फिल्म के हिट होने की गारंटी बने हुए थे। लेकिन बदले हुए जमाने के मुताबिक नवाचार की प्रतिभा उनमें नही है। जिससे वे फिल्मी दुनियां से आउट होने के लिए अभिशप्त हो गये हैं। 

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