
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का बहुरूपियापन अब जुगुप्सा पैदा करने लगा है। आश्चर्य की बात यह है कि मोदी जी को भी इस बात का एहसास है कि उनके नाटकीय करतबों को लोग समझ चुके हैं और इस कारण वे चाहे जितना भावुक, चाहे जितना उत्तेजनात्मक भाषण करें लोग पहले की तरह उद्वेलित नहीं होते। जिन लोगों की आस्था अभी तक उनमें बनी हुई है वे तक उनके भाषणों पर विपरीत प्रतिक्रिया भले ही न करें लेकिन उन पर भरोसा न कर पाने की वजह से उनकी बातों को टाल जाते हैं। आत्ममुग्धता की बीमारी में मोदी ऐसे जकड़े हुए हैं कि नुकसान का अंदाजा होने के बावजूद वे काठ की हांडी बार-बार चढ़ाने की हरकत से बाज नहीं आ पा रहे।

अपनी मां को कथित तौर पर गाली दिये जाने के मुद्दे को उन्होंने गरमाने की बहुत कोशिश की लेकिन लोगों में कोई उबाल नहीं आया। उन्होंने इस मुद्दे पर बिहार बंद का आवाहन किया तो पार्टी के वे लोग जो अपनी डयूटी के मद्देनजर मजबूर थे उन्हें छोड़ कोई सड़कों पर नहीं उतरा। ऐसा नहीं है कि लोगों का संस्कार बोध इतना कमजोर पड़ गया हो कि अपने प्रधानमंत्री की मां को गाली दिये जाने पर उनमें बौखलाहट पैदा न हो लेकिन इसमें सच्चाई हो तब न। सभी जानते हैं कि गाली तब दी गई जब इंडिया गठबंधन के नेता मंच से नीचे उतर चुके थे। गाली देने वाला मौके पर ही पकड़ गया और उसका राहुल या तेजस्वी से कोई संबंध नहीं निकला। ऐसे में इस मुद्दे पर विपक्षी नेताओं के खिलाफ लोग क्यों कर भड़कते।

मोदी 2014 के चुनाव जैसी स्थिति की कल्पना कर रहे थे जब कांग्रेस के नेता मणिशंकर अययर ने एक इंटरव्यू में उनके लिए अंग्रेजी में कुछ कहा उसका नीच के रूप में हिन्दी अनुवाद को लपककर उन्होंने जो स्यापा किया उससे देश भर में कांग्रेस की चूलें हिल गई थी। जिस भाजपा को तमाम कसरतें करने के बावजूद दलित और पिछड़े संदेह की निगाह से देखते थे मोदी के शब्दजाल का करिश्मा था वे उन्हें अपने बीच का आदमी मानकर मणिशंकर अययर के कथन को अपनी अस्मिता पर चोट के रूप में संज्ञान ले बैठे। मोदी के अभिनय ने भाजपा के पक्ष में जबरदस्त जनज्वार पैदा कर दिया। 2019 में भी चैकीदार चोर के नारे को उन्होंने इमोशनल कार्ड खेलने के अपने हुनर का प्रदर्शन करते हुए ऐसा बूमरेंग किया कि इस नारे को ब्रह्मास्त्र के रूप में इस्तेमाल करने की सोच रहे राहुल गांधी खुद ही इसके ताप में भस्म हो गये।

पर 2024 आते-आते मोदी जी की ये क्षमतायें पूरी तरह चुक गई हैं। उनके फार्मूले जनमानस में इतने घिसे पिटे दिखने लगे हैं कि अब लोग उन सस्ते लटके-झटकों से ऊब महसूस करने लगते हैं। इसका असर पार्टी के अंदर उनकी पकड़ पर भी हो चला है। कान्स्टीट्यूशन क्लब के चुनाव में अपनी इस कमजोर स्थिति का प्रत्यक्ष अनुभव उन्होंने किया। मोदी निश्चित रूप से इस हालत से बेचैन हैं। संघ के लिए उन्हें जबरदस्त भक्ति भाव दिखाना पड़ रहा है। मोहन भागवत के 75 वर्ष पूरे होने पर अखबारों में लेख छपबाकर मोदी जी को जिस तरह से भागवत और संघ की स्तुति करनी पड़ी वह किसी से छिपा नहीं रह गया। बिहार के चुनाव को सर करने की उनकी छटपटाहट भी इस क्रम में गौर करने लायक है। दरअसल उन्हें यह दिखाना है कि अभी भी उनमें पार्टी को चुनाव जिताने की अदम्य क्षमता बनी हुई है। इस व्याकुलता में उन्होंने बिहार के चुनाव को अपने व्यक्तित्व के लिए जनमत संग्रह का रूप देने की चूक कर डाली है।

इसके लिए वे जो ठठकरम कर रहे हैं उससे उनकी स्थिति मतवालों जैसी हो गई है। राजनीति के लिए अपनी स्वर्गवासी मां का इस्तेमाल अब उनके खिलाफ एक बड़े मुद्दे के रूप में आकार लेता जा रहा है। मां को गाली के मुद्दे पर लोगों की ठंडी प्रतिक्रिया देखने के बाद उन्हें चुनाव जीतने के लिए अपने तरकस से कोई और तीर निकालने चाहिए थे पर मां पर ही केन्द्रित रहकर वे अपने फजीहत करा रहे हैं। उन्होंने अपनी मां का गया में तर्पण कराने की जो घोषणा की है उसमें राजनीतिक लोलुपता बहुत साफ होकर सामने आ रही है। गुजरात के लोग यह कहते हैं कि पूर्वजों के तर्पण के लिए गया से बड़ा स्थान गुजरात में सिद्धपुर है। फिर वे मां का तर्पण करने के लिए सिद्धपुर छोड़कर गया भाग रहे हैं साफ है कि बिहार में चुनाव हैं इस कारण। इस मामले में लोग गुजरात की परंपराओं का भी हवाला दे रहे हैं कि श्राद्ध कराने का अधिकार उसी को होता है जो दाह संस्कार करता है। मोदी की पूज्य मां हीराबेन का अंतिम संस्कार नरेन्द्र मोदी के भाई प्रमोद मोदी ने किया था और वे उनका श्राद्ध भी कर चुके हैं। ऐसे में नरेन्द्र मोदी जी के द्वारा मां का श्राद्ध करने की रट अब लगाने की क्या तुक है। पिता का दर्जा भी मां के बराबर होता है। पिता के श्राद्ध की याद नरेन्द्र भाई मोदी को उनकी मृत्यु के इतने सालों तक क्यों नहीं आयी जबकि इस बीच वे गुजरात के तीन बार मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। कुल मिलाकर ये बहुत ही बचकाने चोचलें हैं और मोदी जी दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री पद पर विराजमान हैं जिसकी गुरूता का एहसास उन्हें होना चाहिए। भारत के प्रधानमंत्री के एक-एक कदम पर दुनिया की निगाह रहती है उसमें कोई भी छोटापन राष्ट्रीय छवि को प्रभावित करने वाला होता है। आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जन्मदिन भी है। उन्हें बधाई के साथ-साथ ईश्वर से प्रार्थना है कि उन्हें सदबुद्धि दे ताकि वे हर तरह की क्षुद्रताओं को परे करके राष्ट्रीय गौरव बढ़ाने के कामों में अपने को तल्लीन कर सकें।







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