-के पी सिंह
योगी सरकार ने हाल में शीर्ष स्तर पर बड़े प्रशासनिक फेर बदल को अंजाम दिया है। इसके तहत 16 वरिष्ठ आईएएस अधिकारी इधर से उधर किये गये हैं। लेकिन इन परिवर्तनों में सबसे ज्यादा चर्चा मुख्य सचिव के विभागों में किये गये फेर बदल को लेकर है। उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्य सचिव शशि प्रकाश गोयल अभी तक छुटटी पर थे। दरअसल उन्होंने अपनी दिल्ली यात्रा के समय कुछ तकलीफ महसूस होने पर नोयडा के एक निजी अस्पताल में हैल्थ चैकप कराया था जिसमें पता चला कि उन्हें हृदय संबंधी गंभीर समस्या है। डाक्टरों ने उन्हें तुरंत बाईपास सर्जरी कराने को कहा। इसके बाद वे वहीं भर्ती हो गये और गत 19 अगस्त से अवकाश पर चले गये। बताया गया था कि वे नवरात्र के पहले दिन 22 सितम्बर को कार्यभार ग्रहण कर लेगें। इस बीच मुख्यमंत्री ने कृषि उत्पादन आयुक्त दीपक कुमार को उनकी जिम्मेदारी सौंप दी थी।

मुख्य सचिव की वापसी के पहले ही उन्हें मिला झटका
लेकिन मुख्य सचिव शशि प्रकाश गोयल फिर से कमान संभालते इसके पहले ही अचानक बड़ा परिवर्तन करते हुए मुख्यमंत्री ने वे तमाम महत्वपूर्ण विभाग जिनकी वजह से मुख्य सचिव पद के आभा मण्डल की चमक और ज्यादा बढ़ गयी थी उनके हाथ से लेकर स्थाई तौर पर दीपक कुमार के हवाले कर दिये। मुख्यमंत्री के इस फैसले को लेकर अभी तक अटकलों का बाजार गर्म है। अधिकांश लोग इसे सामान्य फैसला बता रहे हैं। उनका कहना है कि बाईपास सर्जरी के बाद व्यक्ति को दिनचर्या और खान-पान के मामले में बहुत ऐतिहात बरतने की जरूरत पड़ती है। जिसके दृष्टिगत डाक्टरों ने उन्हें सलाह भी दी थी कि वे काम पर लौटने के बाद भी ध्यान रखे कि ज्यादा लोड न लें। एसपी गोयल ने इसे देखते हुए स्वयं ही मुख्यमंत्री से अपनी जिम्मेदारियां कम करने की गुजारिश कर रखी थी। मुख्यमंत्री ने इसे स्वीकार कर लिया और तमाम विभागों का काम राहत देने के लिए उनसे हटा लिये।

फ्री हैंड के लिए छटपटाते योगी आदित्यनाथ
लेकिन कुछ सूत्र ऐसे भी हैं जिनका कहना है कि बात इतनी सीधी-सादी नही है। मुख्यमंत्री शशि प्रकाश गोयल के इतने लंबे समय तक छुटटी पर रहने से खिन्न थे। एसपी गोयल को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कुछ वजह से शक की निगाह से भी देखते थे। भले ही वे मुख्यमंत्री कार्यालय के तब से सर्वेसर्वा रहे हों जब से योगी पदासीन हुए थे। इस कारण स्वाभाविक रूप से माना जा सकता है कि उनमें और योगी आदित्यनाथ में अच्छी टयूनिंग रही होगी। पर यह भी सच है कि मुख्य सचिव पद के लिए उनका नाम मुख्यमंत्री ने अपनी पसंदीदा लिस्ट में सबसे ऊपर नही रखा था। योगी आदित्यनाथ के नाम को मुख्यमंत्री पद के लिए 2017 में हरी झंडी भले ही दे दी गयी हो लेकिन भाजपा हाईकमान ने शुरू में उनसे प्रशिक्षु की तरह का बर्ताव रखा। इस कारण कामकाज के मामले में उन्हें फ्री हैंड करने में संकोच दिखाया गया। दुर्गा शंकर मिश्रा को रिटायरमेंट के एक दिन पहले सेवा विस्तार देकर दिल्ली से बतौर मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश भेजा गया था। यह एक तरह से मुख्यमंत्री के ऊपर मेन्टर तैनात करने जैसा कदम था। दुर्गा शंकर मिश्रा को लगातार सेवा विस्तार दिया गया जो योगी आदित्यनाथ को कभी रास नही आया। अतंतोगत्वा जब केंद्र ने उनकी पसंद के मनोज कुमार सिंह को प्रदेश का मुख्य सचिव बनाने की हरी झंडी दे दी तो योगी को तसल्ली हुई। उन्हें लगा कि अब वे खुलकर बैटिंग कर सकेगें। लेकिन मनोज कुमार सिंह को ज्यादा दिन नही रहने दिया गया। उनके सेवा विस्तार की फाइल मुख्यमंत्री ने दिल्ली भेज रखी थी। लेकिन मुख्यमंत्री को यह आभास था कि शायद केंद्र इसको मंजूर न करे तो उनके उत्तराधिकारी के रूप में जो नाम उन्होंने सबसे ऊपर दर्ज कर रखा था वह थे दीपक कुमार। कोई दीपक कुमार के लिए मुख्यमंत्री की चाहत में जातिवादी आसक्ति का ऐगिंल ढूढ़े तो ढ़ूढ़े लेकिन सही बात यह है कि दीपक कुमार उत्तर प्रदेश की नौकरशाही के शानदार नगीनों में गिने जाते हैं। शशि प्रकाश गोयल से उम्र में भले ही वे बड़े हों लेकिन ऊर्जा में वे तमाम नौजवान अफसरों से भी आगे हैं। डीएम के रूप में पोस्टिंग के समय से ही उन्हें दृढ़ता, त्वरित कार्य निष्पादन, कर्मठता और साफ-सुथरी छवि के लिए पहचाना जाता रहा है जो लोगों के लिए समय-समय पर बहुत मददगार भी साबित हुए हैं।

योगी शुरू से ही थे दीपक की कार्य क्षमता के कायल
योगी आदित्यनाथ ने जब पद भार संभाला था दीपक कुमार प्रतिनियुक्ति पर केंद्र सरकार की सेवा में थे और लखनऊ लौटने का उनका इरादा भी नही था। उनके पास उस समय मुख्यमंत्री का संदेशा पहुंचा कि योगी को प्रशासन में एक बहुत सक्षम टीम की जरूरत है जिसके लिए वे आपकी सेवाएं चाहते हैं। बताया गया था कि मुख्यमंत्री की पहली प्राथमिकता कानून व्यवस्था को मजबूत करना है और इसमें उन्होंने आपको गृह विभाग का दायित्व सौंपने का मन बना रखा है। इस पर दीपक कुमार राजी हो गये। हालांकि योगी चाहकर भी दीपक कुमार को प्रमुख सचिव गृह नही बना पाये थे। दीपक कुमार को बीच में लगा था कि अगर उन्हें अपनी क्षमता के मुताबिक जिम्मेदारी मिलने की आशा लखनऊ में नजर नही आ रही तो उनके लिए फिर से दिल्ली लौट जाना उचित होगा। दीपक कुमार ने इसके लिए प्रयास किये लेकिन सफल नही हो पाये। इस बीच 2024 के लोक सभा चुनाव में जब चुनाव आयोग ने मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव संजय प्रसाद से गृह विभाग वापस लेने का आदेश जारी कर दिया तो कुछ समय के लिए उन्हें गृह विभाग की अतिरिक्त जिम्मेदारी सौंपी गयी थी। लेकिन बाद में यह जिम्मेदारी यथावत संजय प्रसाद को लौटा दी गयी।

योगी को घेरने के लिए ली गई मनोज कुमार की बलि
तो मुख्यमंत्री की चलती तब दीपक कुमार ही मुख्य सचिव बनते। लेकिन उन्हें मन मसोस कर मनोज कुमार सिंह का रिटायरमेंट झेलना पड़ा और मुख्य सचिव पद के लिए शशि प्रकाश गोयल के नाम पर हस्ताक्षर बनाने पड़े। पर योगी आदित्यनाथ के सलाहकारों में कई उन्हें नौकरशाही में केंद्र के भेदियों से सावधान रहकर चलने का मशविरा देते थे। इसी आधार पर दूसरे सूत्रों का कहना है कि शशि प्रकाश गोयल के कद में कटौती के लिए मूल पद को छोड़कर उनके सारे पद दीपक कुमार के सुपुर्द कर दिये गये हैं। इतना ही नही मुख्यमंत्री के अपर मुख्य सचिव संजय प्रसाद की भी ये सलाहकार केंद्र के आदमी के रूप में शिनाख्त करते हैं। वे भी फेर बदल में प्रभावित हुए हैं। उनसे नागरिक उडडयन विभाग छीनकर यह विभाग भी दीपक कुमार को दे दिया गया है।

बिना तेल-बाती का अलादीनी चिराग- अरविंद शर्मा
तबादलों की इस झड़ी में एक और नाम चर्चा हो रही है- पी गुरु प्रसाद हैं। उनके बारे में बताने से पहले कैबिनेट मंत्री अरविंद शर्मा की चर्चा करना प्रासंगिक होगा जो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नवरत्नों में शुमार रहे हैं। अरविंद शर्मा रहने वाले तो उत्तर प्रदेश के मऊ जनपद के हैं लेकिन आईएएस में उन्हें गुजरात कैडर मिला था। नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री बने तो वे उनके नजदीक आ गये। इतने नजदीक कि मोदी जी दिल्ली पहुंचे तो उन्हें अपने साथ दिल्ली लाये। पीएमओ की कमान उन्हें सौंप दी। कुल मिलाकर उन्हें एक बहुत करिश्माई अफसर के रूप में पेश किया गया। बाद में उत्तर प्रदेश संभालने के लिए मोदी जी ने उनको स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति दिलाकर लखनऊ भेज दिया। यहां उनके साथ जो हुआ बहुत चर्चा हो चुकी है लेकिन अंततोगत्वा 2022 के लोकसभा चुनाव के बाद जब योगी ने दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो उन्हें मंत्रिमंडल में जगह देना स्वीकार कर लिया।

निजीकरण का एजेंडा लेकर शर्मा ने किया लखनऊ में पदार्पण
उन्हें दो बेहद चुनौतीपूर्ण विभाग सौंपे गये ऊर्जा और नगर विकास। उम्मीद यह थी कि अरविंद शर्मा इन विभागों का कायापलट कर देगें। लेकिन ऊर्जा विभाग में श्रीकांत शर्मा ने अपने कार्यकाल में जितना सुधार किया था वह भी चौपट हो गया। बहुत जल्दी ही ऊर्जा विभाग को प्राइवेट सेक्टर को सौंपने का उनका असल इरादा सामने आया तो विभाग में इंजीनियर से लेकर कर्मचारियों तक ने बगावत कर डाली। केंद्र में भी अरविंद शर्मा इसी हुनर के चलते हाईकमान के प्रिय बने होगें। निजीकरण के नाम पर इस निजाम में क्या हो रहा है सबके सामने इसकी किताब खुल चुकी है। प्रतिस्पर्धा आयोग तक आपत्ति जता चुका है। बिना टेंडर कॉल किये हवाई अडडे, रेलवे स्टेशन बगैरह किन लोगों को औने-पौने में सुपुर्द कर दिये गये यह किसी से छुपा नही रह गया। जो लोग इसका रोड मैप तैयार करते होगें मतलब अफसर बगैरह उनको मोटा कमीशन मिलता होगा यह अंदाजा लगाया जा सकता है। बहरहाल जब अरविंद शर्मा ने विद्युत अव्यवस्था को लेकर जनाक्रोश का ज्वालामुखी फटते देखा तो वे प्रपंच करने लगे। इंजीनियरों को बुलाकर कहा कि मुझे मालूम है कि कौन मेरी बदनामी कराने की सुपारी दे रहा है। मैं एक-एक से निपट लूंगा। मुझे तो एक जेई तक का ट्रांसफर करने का अधिकार नही है तो विभाग की गड़बड़ी के लिए मुझे क्यों जिम्मेदार कहा जा रहा है। बहरहाल इस नौटंकी का कुछ असर नही हुआ उल्टे अरविंद शर्मा की करतूतें ही लोगों के सामने आ गयीं। उनके इतने हाथ-पैर मारने के बावजूद योगी ने पावर कारपोरेशन के ईमानदार चेयरमैन आशीष गोयल को पद से नही हटाया।
70 प्रतिशत कमीशन वाला नगर विकास विभाग

अब बारी उनके नगर विकास विभाग की है जो सरकारी खजाने पर बहुत बड़ा बोझ साबित हो रहा है। इस विभाग में बजट का 70 प्रतिशत तक कमीशन के रूप में हड़प हो जाता है। ईओ की नियुक्तियों में सरेआम पैसा लिया जाता है। ऐसे में मुख्यमंत्री ने अब नगर विकास विभाग के प्रमुख सचिव का अतिरिक्त दायित्व पी गुरु प्रसाद को सौंप दिया है जो ईमानदार और धाकड़ अफसर के रूप में मशहूर हैं। प्रशासनिक बारीकियों में उनकी पकड़ की चर्चाएं होती हैं। पी गुरु प्रसाद को इसलिए मुख्यमंत्री ने यह विभाग सौंपा है कि इसमें कमीशन खोरी कम से कम हो और बजट का लगभग पूरा हिस्सा कार्यों पर वास्तविक रूप से खर्च हो। इससे कस्बों, नगरों और महानगरों की सूरत बदलेगी। सरकार की छवि से इसका गहरा संबंध है। कस्बे और नगर साफ-सुथरे और भव्यता लिए हुए दिखेगें तो लोगों की जोरदार शाबासी सरकार को मिलेगी। हो सकता है कि पी गुरू प्रसाद के अपने विभाग में आने के कारण एक बार फिर अरविंद शर्मा को हाय-तौबा करनी पड़े।







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