उरई | टीईटी (टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट) को अनिवार्य बनाने के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ एससी-एसटी बेसिक टीचर वेलफेयर एसोसिएशन के सदस्यों ने सोमवार को जोरदार नारेबाजी करते हुए जिलाधिकारी कार्यालय पहुँचकर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के नाम एक मांग पत्र सौंपा। इस प्रदर्शन ने शिक्षकों के बीच व्याप्त असंतोष को साफ तौर पर उजागर किया, जो वर्षों से चली आ रही नियुक्ति नियमों में बदलाव से आहत हैं।
राजपत्र और अधिनियम का हवाला देकर जताया विरोध
एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष राम प्रकाश गौतम ने बताया, “भारत सरकार के राजपत्र संख्या 39 के अनुसार, निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 लागू किया गया था। इसकी धारा 23 में कक्षा 1 से 8 तक के शिक्षकों की भर्ती के लिए न्यूनतम योग्यताएँ निर्धारित की गईं। वर्ष 2009 से पूर्व नियुक्त शिक्षकों को टीईटी से मुक्त रखा गया था, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इसे अनिवार्य कर दिया है, जिससे शिक्षकों में गहरा रोष है।” उन्होंने सरकार से अपील की कि अधिनियम में संशोधन कर 2009 से पहले नियुक्त सभी शिक्षकों को टीईटी अनिवार्यता से छूट दी जाए।
शिक्षकों का आह्वान: न्याय और संशोधन की मांग
प्रदर्शनकारियों ने जोर देकर कहा कि यह फैसला उन शिक्षकों के साथ अन्याय है, जो वर्षों से सेवा दे रहे हैं। उन्होंने सरकार से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की, ताकि पुराने शिक्षकों की नौकरी और योग्यता पर कोई सवाल न उठे। इस मुद्दे ने शिक्षक समुदाय में एकजुटता पैदा की है, जो अब बड़े स्तर पर आंदोलन की तैयारी में जुट गए हैं।
ये शिक्षक रहे मौजूद
कार्यक्रम में एसोसिएशन के कई प्रमुख सदस्य उपस्थित रहे, जिनमें अरविंद खबरी, देवेंद्र कुमार जाटव, डॉ. अमित कुमार, योगेंद्र सिंह, महेंद्र भास्कर, केदारनाथ, छत्रपाल, भगवती शरण, दीनदयाल, अनिल जाटव, संत कुमार, अवधेश गौतम, उषा सिंह, आशा दोहरे और निशा आदि शामिल थे। उनकी उपस्थिति ने प्रदर्शन को और मजबूती प्रदान की।
शिक्षा व्यवस्था में सुधार की दिशा में एक आवाज
यह प्रदर्शन न केवल टीईटी अनिवार्यता के खिलाफ एक विरोध का प्रतीक बना, बल्कि एससी-एसटी शिक्षकों के अधिकारों और पुरानी नियुक्तियों की रक्षा की मांग को भी मजबूत आवाज दी। यदि सरकार इस मुद्दे पर ध्यान नहीं देती, तो आने वाले दिनों में यह आंदोलन और तेज हो सकता है, जो उरई की शिक्षा व्यवस्था पर गहरा प्रभाव डाल सकता है।







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