निपटाने के खेल से बाज नही भाजपा का शीर्ष नेतृत्व


पिछले कुछ महीनों से भारतीय जनता पार्टी का शीर्ष नेतृत्व सांसत में है, उसका हर पासा उल्टा पड़ रहा है, पार्टी के भीतर भी उसके खिलाफ बगावत के सुर उठने लगे हैं लेकिन तो भी उसे अपनी आदतों से बाज आना मंजूर नही है। अपने समानान्तर उठते पार्टी के नेताओं को निपटाने के अभियान में इस कठिन मौके पर भी वह कोई चूक नही होने दे रहा। हाल में तीन चुनावी राज्यों में भाजपा ने प्रभारी और सह प्रभारी नियुक्त करने की घोषणा की है। जिसमें सबसे उल्लेखनीय बिहार के लिए धर्मेंद्र प्रधान के साथ उत्तर प्रदेश के डिप्टी चीफ मिनिस्टर केशव मौर्या को सह प्रभारी का दायित्व सौंपे जाने की घोषणा है। केशव मौर्या पर एक बार फिर नजरे इनायत दिखाकर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को परेशान करने के अपने इरादे का इजहार कर डाला है।


क्रेडिट लेने के चक्कर में दुस्साहसी बन गये केशव मौर्य
2017 में उत्तर प्रदेश विधान सभा के चुनाव उस समय हुए थे जब सारे देश में नरेंद्र मोदी के नाम की तूती बोल रही थी। संयोग से केशव मौर्या उस समय उत्तर प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष थे। सितारे उनका जबर्दस्त तरीके से साथ दे रहे थे जिसमें अमित शाह के हाथ में उत्तर प्रदेश में भाजपा संगठन की बागडोर होना भी शामिल रहा था। अमित शाह के संगठन कौशल और हर चुनाव को जीतकर दिखाने की उनकी क्षमता को लोहा तो भाजपा के विरोधी भी मानते हैं। इन अनुकूल कारकों के बीच जब उत्तर प्रदेश के विधान सभा के चुनाव हुए तो उसे रिकार्ड तोड़ बहुमत हासिल हो गया। बिल्ली के भाग्य से छीका टूटने की तरह इस उपलब्धि का श्रेय एक वर्ग केशव मौर्या के खाते में भी जोड़ने लगा। खुद केशव मौर्या को अपने बारे में तमाम गलत फहमी हो गयी। लेकिन भाजपा और संघ के कर्ताधर्ताओं को उनके असल वजन की परख थी। इसलिए मुख्यमंत्री बनाने के लिए नाम तय करने की कवायद शुरू हुई तो केशव मौर्य शीर्ष नेताओं के पैरों के बीच से अपना सिर निकालकर सभी को दिखाने का जतन करते हुए पाये गये फिर भी उन्हें गंभीरता से नही लिया गया। इसकी बजाय कभी राजनाथ सिंह को लखनऊ बुलाकर उन्हें यह पद सौंपने, कभी मनोज सिन्हा को गददी देने पर विचार होता रहा। लेकिन भाजपा के निर्णायक मंडल के किसी सदस्य ने बेगानी शादी में दीवाने बन रहे अब्दुल्ला यानी केशव मौर्य का नाम नही लिया। कई दिनों तक चली माथापच्ची के बाद अप्रत्याशित रूप से गोरखनाथ पीठ के अधिष्ठाता योगी आदित्यनाथ के नाम पर संघ ने मोहर लगायी जिसमें अपने-अपने गणित के तहत मोदी और शाह ने भी अपनी सहमति जोड़ दी। उल्लेख करने की बात यह भी है कि उस समय योगी आदित्यनाथ प्रदेश विधान मंडल के किसी सदन के सदस्य नही थे। वे उस समय लोक सभा के सदस्य थे। इसलिए यह नही कहा जा सकता कि उन्होंने केशव मौर्य या किसी और का अवसर छीनकर अपनी गोटी लाल की हो। बल्कि केशव मौर्य का नाम तो भाजपा के निर्णायक मंडल ने मुख्यमंत्री पद की रेस में शामिल करने लायक ही नही समझा था।

सीएम योगी ने भी दिखायी चरखा दांव की उस्तादी
फिर भी पता नही केशव मौर्य ने कैसे समझ लिया कि योगी आदित्यनाथ परसन नॉन ग्राटा थे जिनके द्वारा मुख्यमंत्री पद संभालना अनधिकार चेष्टा की तरह है। उनको न स्वीकार कर पाने की अपनी भावना का इजहार करते हुए उन्होंने एनेक्सी के पांचवे तल पर जहां मुख्यमंत्री बैठते हैं उस चेयर पर सदलबल जाकर कब्जा जमा लिया और अपनी नाम पटिटका भी लगवा दी। केशव मौर्य के इस दुस्साहस की व्यापक चर्चा हुई थी। बाद में उनका कब्जा खत्म कराया गया और नेम प्लेट हटवाई गयी। पर अपने को ही मुख्यमंत्री पद का नैतिक और वैधानिक उत्तराधिकारी मानते हुए पहले पांच वर्षों में केशव मौर्य ने योगी की चूलें जितनी हो सकती थी हिलाने में कसर नही रखी। लेकिन योगी ने 2022 का चुनाव आया तो उनका यह पूरा मुगालता मिटटी में मिला दिया। जब वे खुद ही विधान सभा का चुनाव हार गये। हालांकि इस बात के तो कोई सबूत नही हैं कि सिराथू में उन्हें हराने के लिए योगी आदित्यनाथ ने कोई भितरघात किया था लेकिन राजनीतिक विश्लेषक यह मानते हैं कि मुख्यमंत्री के लिए उनकी अवमाननाकारी सोच ही उनकी पराजय का कारण बनी। अब जो आदमी खुद चुनाव न जीत सकता हो वह कहे कि 2017 में उसने पार्टी को उत्तर प्रदेश में बहुमत दिलाया था तो कोई उसकी बात को प्रमाणित नही कह सकता।


मोहरे आगे बढ़ाने के खेल की बिडंबना
इस तरह योगी आदित्यनाथ ने केशव मौर्य को प्रतिस्पर्धा में अपने से बहुत पीछे धकेल दिया था। लेकिन इस बीच प्रदेश की राजनैतिक तस्वीर बदल चुकी थी। अगर यह माना जाये कि अमित शाह का केशव मौर्य पर शुरू से अनुग्रह था तो 2017 के चुनाव परिणामों के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए शाह ने केशव मौर्य का नाम चाहा होता पर तब तो उन्होंने उनके नाम पर कोई जददोजहद नही की। उस समय तो लक्ष्य उत्तर प्रदेश में क्षत्रिय नेता के रूप में राजनाथ सिंह की सर्वमान्यता को भेदना था। जिसके लिए योगी आदित्यनाथ का नाम आया तो मोदी-शाह को खूब सुहा गया। पर जब योगी कटटर एजेंडे को दुस्साहस पूर्वक लागू करते हुए खुद को स्थापित करते दिखे तो भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के पेट में मरोड़ पैदा हो गयी। अमित शाह ने इसके बाद केशव मौर्य को बार-बार ताकत दी जो संगठन सरकार से बड़ा होता है की बहस छेड़कर योगी का कद घटाने में जुट पड़े। इस दौरान बात ज्यादा बढ़ती देख संघ को हस्तक्षेप करने की जरूरत हुई तो केशव मौर्य इस बात के लिए मान गये कि वे सार्वजनिक रूप से ऐसा कोई वक्तव्य नही देगे न कदम उठायेगें जिससे योगी का तिरस्कार प्रतीत होता हो। लगा था कि इस युद्ध विराम के बाद उत्तर प्रदेश में स्थितियां कुछ ठीक हो जायेगीं |

मुख्य सचिव की कुर्सी की उठापटक ने फिर सुलगा दी आग
पर भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व जिस तरह अपनी राज्य सरकारों को लाभकारी उपक्रम समझते हुए दिल्ली से उन्हें हांकना चाहता है उसे योगी पूरी तरह बर्दास्त कर जायें यह संभव नही है। जब अमित शाह ने योगी के चहेते मुख्य सचिव को जबरिया रिटायरमेंट पर जाने के लिए मजबूर कर दिया और अपना मुख्य सचिव बिठवाकर उसके जरिये से खुद लखनऊ की सरकार चलानी शुरू कर दी तो योगी को बेहद नागवार गुजरा। जल्द ही योगी के सामने यह भी स्पष्ट हो गया कि केंद्रीय नेतृत्व ने उनको बंधक मुख्यमंत्री जताने के लिए अपने आदमी को थोपने के नाम पर एक बीमार अधिकारी को प्रदेश के प्रशासनिक तंत्र का सेनापतित्व सुपुर्द करा दिया है तो वे अंदर ही अंदर बुरी तरह बिफर गये। केंद्र के चहेते मुख्य सचिव बाईपास सर्जरी के बाद जब तक लौटकर आये उसके पहले ही योगी आदित्यनाथ ने उन्हें पैदल करते हुए उनके सारे विभाग एपीसी दीपक कुमार को सौंप दिये। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री के बहुत दुलारे अरविंद शर्मा जो कि हर सरकारी उद्यम को औने-पौने में उनके खास कारपोरेट मित्रों की गोद में डालने का टास्क लेकर किसी जगह पर बैठते हैं उनके नगर विकास विभाग में 70 प्रतिशत कमीशनखोरी के धंधे पर रोक लगाने के लिए योगी ने ईमानदार और तेज-तर्रार आईएएस पी गुरुप्रसाद को उनके विभाग में प्रमुख सचिव बनाकर बिठा दिया। अरविंद शर्मा के पास बिजली विभाग भी है जहां चेयरमैन के रूप में योगी ने पहले से ही टेढ़े अफसर माने जाने वाले आशीष गोयल को तैनात कर रखा है। जिनकी कंट्रोलिंग से बौखलाकर अरविंद शर्मा को पिछले दिनों बड़ा विधवा विलाप करना पड़ा था लेकिन अंत में उन्हें अपनी ही फजीहत कराकर खामोश हो जाना पड़ गया था |

मौर्य को योगी के समकक्ष ताकत देने की मुहिम
बहरहाल प्रशासन में यह फेर बदल अमित शाह को अपने लिये चुनौती की तरह चुभ गया तो उन्होंने एक बार फिर केशव मौर्य के कंधे पर रखकर बंदूक चलानी शुरू कर दी। केशव मौर्य का कद योगी आदित्यनाथ से ऊपर करने के लिए अमित शाह भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में उनका नाम उछलवा चुके हैं। लेकिन संघ ने अभी जो पेंच फंसा रखा है उसके चलते जेपी नडडा के पास ही दोहरे दायित्व रखना मोदी-शाह की मजबूरी बन गयी है। सो उन्होंने फिलहाल केशव मौर्य को बिहार विधान सभा चुनाव के लिए सह प्रभारी बनाने की घोषणा करवा दी तांकि देश भर में पार्टी के स्टार प्रचारक के बतौर योगी आदित्यनाथ के समानान्तर उनका नाम भी चमकाया जा सके। अमित शाह का यह पैतरा निश्चित रूप से योगी को रास नही आ रहा होगा। योगी की तरफ से अब क्या जबाबी कार्रवाई होती है राजनैतिक विश्लेषकों की निगाह इस पर टिकी हुई है। 

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